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सैयद हबीब, जयपुर। जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) में वर्ष 2018 में हुई आगजनी की घटना से जुड़े वित्तीय और प्रशासनिक लापरवाही के मामले अब खुलकर सामने आ रहे हैं। इस घटना में ₹9.99 लाख के आई.टी. उपकरण और 259 मूल पट्टे जारी पत्रावलियाँ नष्ट हो गईं, लेकिन इस महत्वपूर्ण हानि के बावजूद पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज नहीं करवाई गई।
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वित्त विभाग की स्वीकृति के बिना ही आई.टी. उपकरणों को अपलिखित (राइट-ऑफ) कर दिया गया।
जांच समिति द्वारा स्पष्टीकरण मांगे जाने पर संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया।
पर्दे के पीछे कुछ और? : प्रश्न उठता है कि जब सरकारी नियमों में हानि की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराने का स्पष्ट प्रावधान था, तो इसे क्यों टाला गया? क्या यह आगजनी मात्र एक दुर्घटना थी, या किसी प्रशासनिक चूक या षड्यंत्र का हिस्सा? इसके अलावा, अगर हानि की भरपाई करनी थी, तो क्या संबंधित अधिकारियों ने इसे जानबूझकर नजरअंदाज किया?
विभाग की निष्क्रियता पर सवाल : मामले को नगरीय विकास एवं आवासन विभाग के संज्ञान में पहले जून 2024 और फिर सितंबर 2024 में लाया गया, लेकिन विभाग की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई। आखिर, इतने बड़े प्रशासनिक अनियमितता पर विभाग की चुप्पी क्यों? क्या यह किसी बड़े घोटाले का हिस्सा तो नहीं?
28 नवंबर 2024 को इस प्रकरण पर समापन बैठक हुई, लेकिन जेडीए प्रतिनिधियों के उत्तर असंतोषजनक पाए गए। अब यह देखना होगा कि क्या इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी? जिन अधिकारियों ने नियमों की अनदेखी की, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी? नष्ट हुई मूल पट्टों की पत्रावलियों का पुनः सत्यापन कैसे होगा?
इस पूरे मामले ने प्रशासनिक अनदेखी, वित्तीय नियमों की अवहेलना और संभावित भ्रष्टाचार की ओर इशारा किया है। सवाल यह है कि क्या इस मामले में दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होगी, या यह भी अन्य सरकारी घोटालों की तरह फाइलों में दब जाएगा?
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