नई दिल्ली/भरतपुर। शेर बूढ़ा हो जाता है, मगर अपनी दहाड़ नहीं छोड़ता है, बल्कि वह अभी भी दहाड़ रहा है। राजनयिक, राजनेता, साहित्यकार नटवर सिंह की शख्सियत कुछ ऐसी ही है। दुनियाभर की सैर कर चुके नटवर सिंह के पास हमेशा कहने के लिए बहुत कुछ रहता है, इसीलिए वे हमेशा प्रासंगिक हैं। जिंदगी के 90 वसंत देख चुके जाट नेता नटवर सिंह भरतपुर में पैदा हुए थे। आईएएनएस के साथ लंबी बातचीत में उन्होंने अपने आक्रामक अंदाज में कई मसलों पर बेबाक तरीके से अपनी बात रखी।
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सफेद कुर्ता-पाजामा और नीली बंडी की अपनी ट्रेडमार्क वेशभूषा में सिंह ने ढाई घंटे चली बातचीत में अत्यंत व्यवहार-कुशलता का परिचय दिया। उन्होंने अपने व्यक्तित्व में राजस्थानी, हिंदुस्तानी और इंसान का संगम बताया, जिसमें कोई टकराव नहीं है। जवाहरलाल नेहरू पर आपत्तिजनक व मिथ्यारोप पर हैरानी जताते हुए नटवर सिंह कहते हैं, इस बात को दोहराना अपमानजनक है। मुझे मालूम है कि कश्मीर या चीन को लेकर उनसे गलतियां हुईं, लेकिन उस समय किसने गलतियां नहीं की थी।
नटवर सिंह नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और यहां तक की मनमोहन सिंह की सरकार में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर चुके हैं। उन्होंने कहा, एफडीआर (फैंकलिन डी. रूजवेल्ट), स्टालिन, चर्चिल, माओ, आप नाम गिनिए, सबसे गलतियां हुई थीं। नेहरू भारत के निर्माता थे। एक सुई नहीं बनती थी इस देश में, उस आदमी ने इस्पात संयंत्र, चिकित्सा संस्थान, अंतरिक्ष संगठन, आईआईटी सब कुछ बनाकर दिया। उन्होंने इस देश के लिए जो किया, उसे देखिए। वे विश्वस्तरीय नेता और बौद्धिक महामानव थे।
उनकी किताबों में अनोखी विषय-वस्तु पढऩे को मिलती है। जिंदगी के 10 साल अंग्रेजों की जेल में बिताए। यह हास्यास्पद है कि बौने लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं। वे अशोक के बाद भारत में सर्वश्रेष्ठ (शासक) थे। इसके बाद उन्होंने कहा, भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) और मोदी ने सरदार पटेल को अपना बना लिया। वे नेहरू की सरकार में उपप्रधानमंत्री थे। हां, उन दोनों में मतभेद था, लेकिन उन दोनों के लिए अखंड भारत की भलाई उन मतभेदों से काफी बड़ी थी।
वे मानते थे कि भारत उन दोनों से बड़ा है। नटवर सिंह ने कहा, गांधीजी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में सरदार ने आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि उनके सारे बयान पूरी तरह सांप्रदायिक जहर से भरे थे, जिसके परिणामस्वरूप देश को गांधीजी की अनमोल जिंदगी का बलिदान करना पड़ा। उन्होंने कहा, नेहरू की निंदा करके आप स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी केंद्रीय भूमिका को नहीं झुठला सकते हैं।
क्या आडवाणी, अटलजी, हेडगेवार या गोलवलकर ने ब्रितानी जेलों में 10 साल की जिंदगी बिताई थी। लेकिन नेहरू और सरदार ने बिताई थी। उन्होंने कहा, वाजपेयी 1957 में सांसद बने। वे बहुत अच्छे वक्ता थे और नेहरू की काफी आलोचना करते थे, लेकिन वीर व्यक्ति नेहरू के निधन पर अपने भाषण में बिलख पड़ा था।
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