मुंबई। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के रूप में जाना जाता है। इस एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन व्रत और तिल का उपयोग करने से अशुभ कर्मों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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षटतिला एकादशी व्रत की तिथियां:
षटतिला एकादशी - शनिवार, 25 जनवरी 2025
पारण का समय - 07:15 से 09:27 (26 जनवरी 2025)
पारण के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 20:54
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 24 जनवरी 2025 को 19:25 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 25 जनवरी 2025 को 20:31 बजे
षटतिला एकादशी का नामकरण और तिल का महत्व:
षटतिला एकादशी का नाम "षट" (छह) और "तिला" (तिल) से बना है। इसका अर्थ है इस व्रत में तिल के छह उपयोग—स्नान, दान, आहार, पूजन, तर्पण और हवन। इस दिन तिल का सेवन करने और इससे जुड़ी विधियों का पालन करने से शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध होते हैं।
व्रत करने की विधि:
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्नान के जल में तिल मिलाएं। व्रतधारी तिल से भगवान विष्णु की पूजा करें और तिल का दान करें। तिल का सेवन और तर्पण भी किया जाता है। तिल से हवन करना शुभ माना जाता है। तिल दान करने से पितरों का तर्पण होता है और वे संतुष्ट होते हैं।
भजन-कीर्तन और मंत्र जप:
षटतिला एकादशी की रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण की आराधना और भजन-कीर्तन करना चाहिए। "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु को तिल से बनी सामग्री अर्पित करें।
लाभ और फल:
षटतिला एकादशी का पालन करने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है। यह व्रत सभी पापों का नाश करता है और मोक्ष की ओर ले जाता है। तिल के दान से दानकर्ता को अखंड पुण्य की प्राप्ति होती है। इस प्रकार, षटतिला एकादशी का व्रत जीवन को पवित्र और सार्थक बनाता है।
-प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, बॉलीवुड एस्ट्रो एडवाइजर
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