गुरुग्राम। धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) पर समर्पित यह ग्रंथ निस्संदेह भारतीय विधिक साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण और समयोचित योगदान है। डॉ. के.के. खंडेलवाल ने वर्षों के विधिक अनुभव, शोध और व्यावहारिक समझ के साथ इस पुस्तक को तैयार किया है, जो इसे एक साधारण टिप्पणी पुस्तक से कहीं अधिक बना देता है।
पुस्तक न केवल PMLA की व्याख्या करती है, बल्कि इसके विधायी इतिहास, प्रमुख संशोधनों—विशेष रूप से 2012 और 2019 के बदलावों—का गंभीर विश्लेषण प्रस्तुत करती है। लेखक ने अधिनियम के प्रत्येक खंड पर विस्तार से टिप्पणी करते हुए, उसे नवीनतम न्यायिक दृष्टिकोण और प्रासंगिक केस लॉ से समृद्ध किया है। यह इसे उन कानूनी पेशेवरों के लिए अत्यंत उपयोगी बनाता है जो इस अधिनियम के क्रियान्वयन से सीधे जुड़े हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक धन शोधन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर भी दृष्टिपात करती है—जो आमतौर पर विधिक टिप्पणियों में उपेक्षित रहता है। इस दृष्टिकोण से यह कार्य न केवल न्यायिक क्षेत्र बल्कि वित्तीय पेशेवरों, नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं के लिए भी पठनीय और उपयोगी बन जाता है।
लेखन की शैली स्पष्ट, तार्किक और गहन है। हर अध्याय में लेखक की सैद्धांतिक समझ और व्यावहारिक अंतर्दृष्टि झलकती है। पाठक को यह पुस्तक केवल कानून का अध्ययन नहीं कराती, बल्कि उसे समझने और उसकी आत्मा को ग्रहण करने का अवसर देती है।
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