उदयपुर। संकल्प, स्वाभिमान और कड़े अभ्यास से अभावों और कमियों को भी हराया जा सकता है। इसकी जीवंत मिसाल हैं गुणवंत सिंह देवल। [@ कुश्ती का खुद का सपना अधूरा छोड़ बेटियों को बनाया कुश्ती चैंपियन]
विद्या भवन उदयपुर में 1981 से 1984 तक होस्टल में रहकर कक्षा नौवीं से ग्यारहवीं तक प्रथम श्रेणी में परीक्षाएं उत्तीर्ण करने वाले, कवि , लेखक, चित्रकार, मूर्तिकार, तैराक, वक्ता कई गुणों के भंडार गुणवंत के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है। अपनी इस शारीरिक कमी को गुणवंत ने पांवों को ही हाथ बनाकर पार कर लिया।
गुणवंत सिंह पांवों से ही अपने समस्त कार्य कर लेते हैं। पैर से क़लम, कूची और छेनी पकड़कर अपने सपनों की दुनियाँ को रचने वाले गुणवन्त सिंह देवल का कहना है कि मन में जज़्बा हो तो सबकुछ सम्भव है। जिनके हाथ हैं वे उनसे भीख भी माँग रहे हैं और हिंसा भी कर रहे हैं, इसलिए हाथ या शरीर का कोई अंग नहीं होने से फ़र्क़ नहीं पड़ता, बल्कि हमारी सोच और प्रयास महत्वपूर्ण हैं।
गुणवन्त मंगलवार दोपहर को विद्या भवन स्कूल आए , जहाँ वे तीन वर्ष पढ़े थे। उन्होंने अरावली हॉस्टल में अपना कमरा देखा। राष्ट्रपति पुरष्कार प्राप्त गुणवंत विधार्थियो से रूबरू हुए। उन्होंने मिनटों में पांव से चित्र बना विद्यार्थियों का उत्साह वर्धन किया। सभी को संकल्पवान और मेहनती बनने की प्रेरणा दी।
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