आज फिर जीने की तमन्ना है...दिन महीनें साल गुजरते जाएंगे...गुम है किसी के प्यार में दिल सुबह शाम... ये वो नगमें है जो पुरानी फिल्मों की याद दिलातें हैं, कि एक दौर था जब फिल्मों में हीरों-हिरोइन पेड़ के इर्द गिर्द घूम कर इजहारें मोहब्बत बयां करते थे। तो कभी छज्जे-छज्जे का प्यार जो आंखों ही आंखों में बयां हो जाता था। छज्जे-छज्जे का प्यार से एक पुराना गाना याद है ना आपको एक चतुर नार बड़ी होशियार...पड़ोसन जो सायरा बानो और सुनील दत्त पर फिल्माया गया था। फिल्म का यह गाना सभी को खूब पसंद आया था, आज भी खूब भाता है। उस दौर में फिल्में किसी भी शैली की क्यों ना बनी हो उसमें एक प्रेम कहानी
हुआ करती थी। अभिनेता-अभिनेत्रियों को बरसों बीत जाया करते थे इजहारें
महोब्बत बयां करने में। शायद यही वजह है कि उस दौर की फिल्में आज भी याद की जाती है। आज कल के बदलते दौर के साथ कई बदलाव आए हैं। फिल्मों में अलग विषय दिखाने की होड़ में प्यार शब्द मानों गुम हो गया है। ऐसा लगता है कि फिल्मों से प्यार शब्द का नाता ही टूट गया है। आज कल राजनीति, भ्रष्टाचार, बायोपिक और खेल पर आधारित फिल्मे बनने की होड़ लगी हुई है। कुछ बेहतरीन फिल्में आई जो हिंदी सिनेमा के बदलते चलन का आईना लगती है। कुछ ऐसी ही फिल्मों का जिक्र करने जा रहे हैं जिनका प्यार शब्द से नाता ही नहीं रहा।
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