नई दिल्ली । मिताली राज (Mithali Ra) कई बार पुरुष और महिला
क्रिकेट में समानता की बात करती रही हैं। वह मुखर रूप से कई बार बोल चुकी
हैं कि पुरुष क्रिकेटरों को जो तवज्जो मिलती है, उतनी ही महिला क्रिकेट
खिलाड़ियों को भी मिलनी चाहिए। इसकी बानगी एक संवाददाता सम्मेलन में मिली
थी जब एक पत्रकार ने मिताली से उनके पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर के बारे में
पूछा था। मिताली ने जो जवाब दिया था, वो पूरी दुनिया में तारीफें बटोर उनके
पास लौटा था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मिताली का जवाब था, "क्या आपने कभी किसी पुरुष क्रिकेटर से पूछा है कि उनकी पसंदीदा महिला क्रिकेटर कौन है?"
मिताली
ने अपनी बातों को अपने कर्म से भी सार्थक करने की कोशिश की है। वह क्रिकेट
जगत में एक अहम मुकाम पर पहुंची हैं, जहां तक अभी तक सिर्फ पुरुष खिलाड़ी
ही पहुंचे थे। मिताली ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपने 20 साल पूरे किए
हैं और वह ऐसा करने वाली पहली महिला क्रिकेटर हैं।
क्रिकेट जगत में
अगर पुरुष एवं महिला खिलाड़ियों को मिला दिया जाए तो कुल चार खिलाड़ी ही
ऐसे हैं, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में दो दशक पूरे किए हों। इनमें
तीन पुरुष और एक महिला। यहां वे उस कहावत को सार्थक कर रही जिसमें कहा
जाता है कि आज की महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं।
मिताली
के अलावा इस सूची में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर,
श्रीलंका के पूर्व कप्तान सनथ जयासूर्या और पाकिस्तान के जावेद मियांदाद
हैं।
36 वर्षीय मिताली ने बुधवार को सूरत में दक्षिण अफ्रीका के साथ
खेले गए तीन मैचों की वनडे सीरीज के पहले मैच में मैदान पर उतरते ही यह
उपलब्धि हासिल कर ली। उन्होंने इस मैच में नाबाद 11 रन बनाए। भारत ने इस
मैच को आठ विकेट से अपने नाम किया।
भारत के लिए अब तक 204 वनडे मैच
में खुल चुकीं मिताली ने 26 जून, 1999 में आयरलैंड के खिलाफ अपने वनडे
करियर की शुरुआत की थी और अब वह अपने वनडे करियर में 20 साल और 105 दिन
पूरे कर चुकी हैं।
मिताली महिला क्रिकेट में राज करेंगी इस बात की
झलक तो उन्होंने अपने पदार्पण मैच में ही दे दी। आयरलैंड के खिलाफ खेले गए
उस मैच में दाएं हाथ की इस बल्लेबाज ने 114 रन बनाए थे।
मिताली ने
यहां से रुकी नहीं। वह आगे चल कर महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने
वाली बल्लेबाज भी बनीं और भारत की सबसे सफल कप्तान भी। मिताली की कप्तानी
में भारत ने दो बार महिला विश्व कप के फाइनल में कदम रखा। 2004 में मिताली
ने भारत को पहली बार अपनी कप्तानी में फाइनल में पहुंचाया था और इसके बाद
2017 में भी वह अपनी कप्तानी में इंग्लैंड में खेले गए विश्व कप के फाइनल
में ले गई थीं। किस्मत शायद इस खिलाड़ी के साथ नहीं थी इसलिए दोनों बार
उन्हें हार मिली।
लेकिन इन दोनों फाइनलों के बीच मिताली ने काफी कुछ
देखा, जो बुरा भी था, हताश करने वाला भी। मिताली हाालंकि हताश नहीं हुई और
इसी कारण वह उस दौर में भी भारत की बागडोर संभाले हुए हैं जब महिला
क्रिकेट को पहचान मिलनी शुरू हुई है- और इसकी प्रमुख वजहों में से एक
मिताली भी हैं।
दोनों फाइनलों में क्या अंतर था इस बात को मिताली ने
2017 के बाद भारत लौटने पर ही बयां कर दिया था। मिताली ने बीसीसीआई द्वारा
आयोजित कराए गए संवाददाता सम्मेलन में कहा था, "तब (2005) हमें कोई जानता
नहीं था। बहुत कम लोगों को पता था कि भारत की महिला टीम विश्व कप के फाइनल
में पहुंची है, लेकिन अब चीजें बदली हैं और आज जब हम इंग्लैंड से लौटे हैं
तो सभी की जुबान पर हमारी चर्चा है। इसमें वक्त लगा लेकिन यह बड़ा बदलाव
है।"
2005 में महिला क्रिकेट की अलग संस्था हुआ करती थी-जिसका नाम
भारतीय महिला क्रिकेट संघ (आईसीडब्ल्यूए) था। बाद में महिला क्रिकेट भी
बीसीसीआई के अधीन आ गया और बदलाव की शुरुआत हुई जिसकी अगुआई मिताली ही कर
रही थीं।
वक्त के साथ परिपक्वता न सिर्फ उनके खेल में आई बल्कि उनके
चरित्र में भी। मिताली को जहां भी मौका मिला उन्होंने महिला क्रिकेट को
पहचान दिलाने और आगे बढ़ाने की बात को बड़े ही मुखर तरीके से बेहतरीन
शब्दों की माला में पिरोकर रखा। उनके बयानों से साफ पता चलता है कि वह
कितनी चीजों से गुजरी हैं और कितनी गहराई और भावुकता से उन्होंने अपने आप
को इस खेल से जोड़े रखा है।
अभी भी जब महिला क्रिकेट में सुधार की
बात आती है तो वह संभावनाओं के साथ मौजूद समस्याओं को भी उजागर कर
प्रशासकों से उनको दूर करने को कहती है। उदाहरण के तौर पर जब महिला आईपीएल
की बात की गई थी तो मिताली ने साफ कहा था कि इससे बेशक फायदा होगा लेकिन
लीग टूर्नामेंट के लिए भारत के पास घरेलू खिलाड़ियों का मजबूत पूल नहीं है
और पहले पूल बनाने की जरूरत है जिसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा
घरेलू टूर्नामेंट आयोजित किए जाएं।
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