जयपुर। देश में भले ही ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलंद हो रहा हो, राजस्थान में बच्चियों की स्थिति पिछले 20 साल में कुछ खास नहीं बदली है। यहां बेटियों को पढ़ाने के नाम पर महिला साक्षरता के आंकड़े तो बढ़े हैं, मगर राष्ट्रीय परिदृश्य में हम आज भी वहीं खड़े हैं जहां 20 साल पहले थे। स्कूल ड्रॉप आउट्स के आंकड़े भी घटे हैं। बेटी बचाने के मामले में स्थिति चिंताजनक है। 20 साल में राजस्थान में लिंगानुपात घटा है। 1991 से 2011 के बीच राजस्थान में लिंगानुपात प्रति 1000 लडक़ों पर 916 लड़कियों से घटकर 888 लड़कियों तक आ गया है। यही नहीं राजस्थान देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है जहां लिंगानुपात बिगड़ा है। वहीं महिला साक्षरता की बात करें तो ये 1991 के 20.4 प्रतिशत से 52.6 प्रतिशत तक पहुंच गया है। वैसे तो ये लंबी छलांग दिखती है। मगर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो राजस्थान आज भी इस मामले में सबसे पीछे है। बेटियों को पढ़ाने के लिए राजस्थान और केंद्र सरकार की मशीनरी पूरा जोर लगाने का दावा तो करती है, मगर फिर भी प्राइमरी स्कूलों से ड्रॉपआउट्स के आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं। ड्रॉपआउट्स के आंकड़े तो घटे हैं, मगर इसमें लड़कियां ही ज्यादा हैं। अब भी राजस्थान में 8.9 प्रतिशत बच्चियां प्राइमरी में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं।
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