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Special: संविधान के खिलाफ है फतवों की राजनीति


2012 में यह स्थिति काफी बदल गई। 39 फीसदी सपा जबकि बसपा 20 पर पहुंच गई और कांग्रेस की पसंद 18 फीसदी बने। इस लिहाज से देखा जाए तो स्थितियां बदल रही हैं। यह किसी फतवों और अपीलों का असर नहीं है। यह बदलाव की मुहिम की तरफ साफ इशारा करता है।


इस दौरान हालांकि भाजपा पर पांच फीसदी से भी कम मुस्लिम वोटरों ने भरोसा जताया। लेकिन मुस्लिम प्रभाव वाले इलाकों का अध्ययन करें तो यहां भाजपा कम वोट पाकर भी बसपा और कांग्रेस से अच्छा प्रदर्शन किया। 2012 के आम चुनावों में 69 मुस्लिम विधायक दारुलसफा पहुंचे जबकि 2002 में संख्या 56 की थी।

लोकतांत्रित अधिकारों और संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा के लिए राजनीति में धर्म की अडंगेबाजी बंद होनी चाहिए। भारतीय संविधान मंे इस तरह के फतवों और अपीलों की कोई जगह नहीं है। फिर इमाम बुखारी को यह अधिकार किसने दिया है। राजनीति में धर्म की सियासत बंद होनी चाहिए। लोकतांत्रित अधिकारों का गला घोंटने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ संवैधानिक कार्रवाई होनी चाहिए। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं)

--आईएएनएस

[@ इस सीट से खुलता है उत्तर प्रदेश की सत्ता का द्वार!]

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Web Title-the politics of fatwas against the constitution
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