राजस्थान का उत्तरी जिला हनुमानगढ़ इतिहास और संस्कृति के पन्नों में विशेष स्थान रखता है। यह क्षेत्र कभी सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रहा है और आज भी यहां खुदाई में प्राचीन युग से संबंधित कई कलाकृतियां, अवशेष और मानव इतिहास के महत्वपूर्ण चिन्ह मिलते हैं।
भटनेर से हनुमानगढ़ तक का सफर
मूल रूप से यह शहर ‘भटनेर’ के नाम से प्रसिद्ध था। भाटी वंश के शासकों का यह प्रदेश दिल्ली से लगभग 369 किलोमीटर और जयपुर से 405 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब बीकानेर के राजा सूरज सिंह ने इस नगर पर विजय प्राप्त की, तो इसका नाम बदलकर ‘हनुमानगढ़’ रखा गया। यह विजय मंगलवार को हुई थी, जिसे भगवान हनुमान का दिन माना जाता है। इसीलिए नगर का नामकरण उनके सम्मान में किया गया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सिंधु घाटी सभ्यता का केंद्र
हनुमानगढ़ का ऐतिहासिक महत्व इस बात से भी जुड़ा है कि यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक अभिन्न अंग रहा है। यहां हुई खुदाइयों से अनेक प्राचीन अवशेष, सिक्के और इमारतों के निशान प्राप्त हुए हैं, जो इसकी गौरवशाली विरासत की गवाही देते हैं। यह क्षेत्र न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन इतिहास को समझने की कुंजी माना जाता है।
भटनेर किले का आकर्षण
हनुमानगढ़ का सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल है ‘भटनेर किला’। यह किला हजारों वर्ष पुराना माना जाता है और उत्तर भारत के प्राचीन किलों में इसकी गिनती होती है। दिल्ली-मुल्तान राजमार्ग पर इसकी रणनीतिक स्थिति के कारण यह सदियों तक सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से अहम रहा। कहा जाता है कि सिंध, काबुल और मध्य एशिया के व्यापारी दिल्ली और आगरा होते हुए यहीं से गुजरते थे।
कृषि और व्यापारिक केंद्र
हनुमानगढ़ को कृषि बाजार के रूप में भी जाना जाता है। यहां कपास और ऊन प्रमुख उत्पाद हैं, जिन्हें हाथकरघों पर बुना जाता है और बाजारों में बेचा जाता है। यह क्षेत्र आज भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पारंपरिक शिल्पकला का केंद्र है।
वर्तमान हनुमानगढ़
राजस्थान ऐसा प्रदेश है जहाँ हर रोज कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है। आज हनुमानगढ़ एक उभरता हुआ पर्यटन स्थल है। यहां रेलवे जंक्शन की सुविधा है, जिससे यह देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सर्दियों में यहां का पारा शून्य तक पहुंच जाता है, जो पर्यटकों को एक अलग अनुभव प्रदान करता है।
आइए डालते हैं हनुमानगढ़ के आकर्षण और पर्यटक स्थलों को पर एक नजर, जिन्हें देखने के बाद पर्यटक का कहना होता है कि हनुमानगढ़ नहीं देखा तो राजस्थान नहीं देखा।
भटनेर किला: उत्तरी सीमा प्रहरी की अमर गाथा
घग्घर नदी के तट पर बसा भटनेर किला, जिसे आज हनुमानगढ़ किले के नाम से जाना जाता है, उत्तर भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। ‘भटनेर’ शब्द ‘भट्टी नगर’ का अपभ्रंश माना जाता है और इसे प्राचीनकाल से ही उत्तरी सीमा प्रहरी की उपाधि प्राप्त है।
लगभग सत्रह सौ वर्ष पूर्व जैसलमेर के राजा भाटी के पुत्र भूपत ने इस किले का निर्माण कराया था। समय की आंधियों और युद्धों की भीषण मार झेलने के बावजूद यह किला अडिग खड़ा रहा। अकबर ने भी आईने-ए-अकबरी में इसका उल्लेख कर इसकी ऐतिहासिक महत्ता को प्रमाणित किया।
इतिहास गवाह है कि तैमूर से लेकर पृथ्वीराज चौहान जैसे पराक्रमी शासकों ने इसे जीतने का प्रयास किया, लेकिन भटनेर किला अपने साहस और सुदृढ़ निर्माण के कारण सदियों तक अभेद्य बना रहा। अंततः वर्ष 1805 में बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने भाटी राजाओं को पराजित कर इस किले पर अधिकार कर लिया।
किले की भव्यता इसके दृढ़ द्वारों, विशाल प्राचीरों और ऊँचे दालानों से झलकती है। यहाँ भगवान शिव और भगवान हनुमान के मंदिर आज भी आस्था का केंद्र हैं। दरबार तक जाने वाले संकरे रास्ते इस तरह बनाए गए थे कि घोड़े आसानी से भीतर तक पहुँच सकें। यही स्थापत्य कौशल भटनेर किले को आज भी विशिष्ट बनाता है।
श्री गोगा जी मंदिर: जहाँ मिलती है आस्था और सांस्कृतिक एकता की झलक
हनुमानगढ़ से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित श्री गोगा जी मंदिर अद्वितीय धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक है। यह मंदिर न केवल हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थल है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी इसे समान श्रद्धा से मानते हैं। हिन्दू जहाँ गोगा जी को देवता के रूप में पूजते हैं, वहीं मुस्लिम समाज उन्हें गोगा पीर कहकर अपनी आस्था प्रकट करता है।
किंवदंतियों के अनुसार गोगाजी एक वीर योद्धा थे, जिन्होंने आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त किया था। उन्हें नागों का देवता भी कहा जाता है और उनके प्रति लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। मंदिर की स्थापत्य कला इस आस्था को और विशेष बनाती है। इसमें हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य शैलियों का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है, जो इसे अद्वितीय पहचान देता है।
मंदिर के गर्भगृह में गोगाजी की भव्य प्रतिमा स्थापित है, जिसमें वे अश्व की पीठ पर सवार हैं और हाथ में बरछा धारण किए हुए हैं। उनकी प्रतिमा के गले में नाग की लिपटी आकृति उन्हें ‘नागों के भगवान’ के रूप में दर्शाती है। मंदिर की दीवारों और गुंबदों पर बनी नक्काशियाँ इसे और भी आकर्षक बनाती हैं।
यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल का भी केंद्र है। यहाँ प्रतिवर्ष भादवा शुक्लपक्ष की नवमी (जुलाई–अगस्त) को गोगामेड़ी मेला भरता है। इस अवसर पर देशभर से श्रद्धालु आते हैं और पीले वस्त्र धारण करके दण्डवत यात्रा करते हुए मंदिर तक पहुँचते हैं। यह परंपरा आस्था की गहराई और भक्ति की शक्ति का जीवंत उदाहरण है।
कालीबंगा: हड़प्पा सभ्यता का जीवंत प्रमाण
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगा तहसील में स्थित कालीबंगा भारतीय पुरातत्व का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह स्थल सिंधु घाटी सभ्यता के उन चंद प्रमाणों में से एक है, जो प्राचीन भारत की गौरवशाली संस्कृति और जीवन शैली की झलक पेश करता है। माना जाता है कि लगभग 4500 वर्ष पूर्व यह क्षेत्र सरस्वती नदी के तट पर बसी हड़प्पा सभ्यता का एक समृद्ध नगर था।
पुरातत्वविदों के अनुसार, कालीबंगा से प्राप्त अवशेष लगभग 2500 ईसा पूर्व के हड़प्पा और पूर्व-हड़प्पा युग से जुड़े हुए हैं। यहाँ की खुदाई से प्राप्त कलाकृतियों में सील, मानव कंकाल, रहस्यमयी लिपि, तांबे की चूड़ियाँ, मोती, सिक्के, टेराकोटा की वस्तुएँ और सीप से बने खिलौने प्रमुख हैं। ये वस्तुएँ उस काल के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन की सजीव तस्वीर पेश करती हैं।
कालीबंगा की एक और विशेषता यहाँ के पुरातात्विक अवशेषों में झलकती है, जिनसे पता चलता है कि इस क्षेत्र में संगठित नगर योजना, कृषि परंपरा और धार्मिक मान्यताओं की स्पष्ट झलक थी। यही कारण है कि कालीबंगा को हड़प्पा सभ्यता की जीवन शैली को समझने के लिए बेहद अहम स्थल माना जाता है।
वर्ष 1983 में यहाँ एक पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की गई। इस संग्रहालय का निर्माण 1961 से 1969 के बीच हुई खुदाई से प्राप्त अमूल्य धरोहर को संरक्षित और प्रदर्शित करने के लिए किया गया। इसमें तीन दीर्घाएँ हैं—एक दीर्घा पूर्व-हड़प्पा काल के अवशेषों के लिए समर्पित है, जबकि शेष दो दीर्घाओं में हड़प्पा काल की कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं। यह संग्रहालय आज भी शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक अनमोल खजाना है।
कालीबंगा न केवल एक पुरातात्विक स्थल है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और संस्कृति की जड़ों से जुड़ा हुआ वह जीवंत अध्याय है, जो हमारे अतीत को समझने और भविष्य की पहचान बनाने में सहायक है।
माता भद्रकाली मंदिर: घग्घर नदी के तट पर आस्था का केंद्र
हनुमानगढ़ से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माता भद्रकाली मंदिर श्रद्धा और आस्था का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। घग्घर नदी के शांत तट पर बसे इस मंदिर का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और स्थापत्य दृष्टि से भी अनोखा है। देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों में से एक स्वरूप को समर्पित यह मंदिर भक्तों की गहन आस्था का प्रतीक है।
इस मंदिर का निर्माण बीकानेर के छठे महाराजा राम सिंह के शासनकाल में हुआ था। यहाँ स्थापित देवी की प्रतिमा पूरी तरह लाल पत्थर से निर्मित है, जो इसे और भी भव्य बनाती है। प्रतिमा के दर्शन से भक्तों को शक्ति, साहस और आत्मविश्वास का अनुभव होता है।
मंदिर पूरे सप्ताह भक्तों के लिए खुला रहता है, लेकिन विशेष अवसरों पर इसकी छटा देखते ही बनती है। चैत्र और अश्विन मास के नवरात्रों के दौरान यहाँ भव्य मेले का आयोजन होता है। इन दिनों मंदिर प्रांगण में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जहाँ श्रद्धालु माता के दर्शन कर अपने जीवन की मंगलकामना करते हैं।
माता भद्रकाली मंदिर न केवल हनुमानगढ़ के धार्मिक पर्यटन का महत्वपूर्ण स्थल है, बल्कि यह शक्ति और भक्ति के अद्भुत संगम का भी प्रतीक है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु स्वयं को दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण महसूस करते हैं।
हनुमानगढ़ कैसे पहुँचें
हनुमानगढ़ राजस्थान का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है, जहाँ पर्यटक वर्षभर भ्रमण के लिए आते हैं। यहाँ पहुँचने के लिए वायु, सड़क और रेल तीनों ही मार्ग उपलब्ध हैं।
हवाई मार्ग
हनुमानगढ़ के निकटतम हवाई अड्डे के रूप में चंडीगढ़ एयरपोर्ट (लगभग 312 किलोमीटर दूर) स्थित है। यह देश के प्रमुख महानगरों — दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों से नियमित उड़ानों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। चंडीगढ़ से हनुमानगढ़ तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग
हनुमानगढ़ सड़क मार्ग से भी कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। राजस्थान राज्य परिवहन निगम (RSRTC) द्वारा जयपुर, दिल्ली, लुधियाना, चंडीगढ़ और जोधपुर से नियमित बस सेवाएँ संचालित की जाती हैं। निजी टैक्सी और वोल्वो बसों की भी अच्छी सुविधा उपलब्ध है।
रेल मार्ग
हनुमानगढ़ रेलवे जंक्शन राजस्थान के प्रमुख रेलवे नेटवर्क का हिस्सा है। यहाँ से राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख शहरों के लिए ट्रेनें मिलती हैं। साथ ही दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से भी हनुमानगढ़ के लिए सीधी रेल सेवाएँ उपलब्ध हैं।
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