राजद सूत्रों का दावा है कि पार्टी के भीतर रघुवंश प्रसाद सिंह, अब्दुलबारी
सिद्दीकी जैसे वरिष्ठ नेता भी तेजस्वी की कार्यशैली को लेकर नाराज हैं।
ऐसे में तेजस्वी इन सभी नेताओं के ऊपर खुद को साबित करने की नीति के साथ
दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत
ठाकुर कहते हैं, "पार्टी के जिन नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने
उन्हें लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभालने में सक्षम मान कर अपना नेता
कबूला था, उन्हें ज्यादा निराशा हुई है। राजद का यह युवा हीरो लोकसभा चुनाव
की परीक्षा में जीरो अंक लाएगा और तब अचानक सियासी परि²श्य से खुद को ओझल
कर लेगा, ऐसा किसी ने शायद ही सोचा होगा।"
उन्होंने कहा कि तेजस्वी
का इस तरह रहस्यपूर्ण तरीके से महीना भर अज्ञातवास में रहना, उनके सियासी
सरोकार ही नहीं, उनकी नेतृत्व-क्षमता पर भी कई सवालों को जन्म दे चुका है।
भाजपा
नेता और बिहार के मंत्री नंदकिशोर यादव कहते हैं कि अब राजद समाप्त हो
चुका है। उन्होंने कहा, "सदन के विरोधी दल का नेता पटना में रहे और सदन में
पहुंचकर अपनी बात नहीं रखे, ऐसा कहीं लोकतंत्र में होता है क्या?"
उन्होंने
कहा कि वह पारिवारिक कारण से सदन में नहीं आ रहे, या पार्टी में विवाद के
कारण, इसे वह नहीं जानते, परंतु तेजस्वी को आकर अपनी बात रखनी चाहिए।
बहरहाल,
लालू प्रसाद के सहयोगी रहे राजद के एक नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की
शर्त पर कहा कि लालू प्रसाद को जितना तकलीफ विरोधियों ने नहीं दिया है,
उतना तकलीफ आज उनके अपने दे रहे हैं।
(आईएएनएस)
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