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वाराणसी के लमही गांव में मुंशी प्रेमचंद की यादों को मिल रहा नया जीवन, साहित्यिक विरासत से रूबरू हुए छात्र

Munshi Premchand memories are being revived in Lamhi village, Varanasi, as students reconnect with his literary heritage. - Varanasi News in Hindi

वाराणसी । वाराणसी से लगभग 5 किलोमीटर दूर लमही गांव में आज भी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की यादें जिंदा हैं। यही वह पैतृक गांव है, जहां प्रेमचंद ने अपने जीवन के अनमोल पल गुजारे और समाज को दिशा देने वाले कई प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की। मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर उनके आवास और स्मारक में विशेष साफ-सफाई और सजावट की जा रही है। स्थानीय लोग और छात्र प्रेमचंद को श्रद्धांजलि देने पहुंच रहे हैं, जो भारतीय साहित्य के इस महान लेखक के प्रति लोगों के सम्मान और लगाव को दर्शाता है। संस्कृति विभाग की ओर से यहां प्रेमचंद स्मारक का निर्माण कराया गया है, जिसमें उनके जीवन और रचनाओं से जुड़ी कई ऐतिहासिक वस्तुएं संरक्षित हैं, जैसे उनका चरखा, पिचकारी और लेखन सामग्री। स्मारक में उनके उपन्यासों और कहानियों को भी प्रदर्शित किया गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके साहित्यिक योगदान से रूबरू हो सकें। मुंशी प्रेमचंद स्मारक के संरक्षक सुरेश चंद्र दुबे आईएएनएस से बातचीत में कहते हैं, "मुंशी प्रेमचंद हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी भाषाएं जानते थे। यहां उनके पास अभी मुंशी प्रेमचंद के उर्दू भाषा में लेख और उनके अफशाने जैसी कई चीजों का कलेक्शन है। किन-किन पत्रिकाओं में मुंशी प्रेमचंद ने काम किया, उनका कलेक्शन है।
उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर यहां प्रेमचंद की कहानियों और उनसे जुड़ी चीजों को कला, चित्रों और वस्तुओं के माध्यम से दर्शाया गया है। यहां छात्र-छात्राएं आते हैं, उन्हें ज्यादा किताबें पढ़ने की जरूरत नहीं होती, बस वे यहां की चीजों को देखकर ही मुंशी प्रेमचंद को समझ पाते हैं।
छात्रा नेहा ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद की यहां तमाम यादें हैं। उन्होंने उपन्यास और साहित्य जिस तरह लिखा है, उससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। छात्र सौरभ ने कहा, "मुंशी प्रेमचंद ने समाज और जमीन से जुड़ी चीजों को लिखा। इन सबके लिए हम उन्हें याद करते हैं। हम मुंशी प्रेमचंद के आवास पर उनके शुरुआती जीवन के बारे में जानने के लिए आए हैं।
--आईएएनएस

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Web Title-Munshi Premchand memories are being revived in Lamhi village, Varanasi, as students reconnect with his literary heritage.
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