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कल्याण सिंह ने मंडल-मंदिर के बीच सामाजिक समीकरण साधकर भाजपा को दिया नया जनाधार

Kalyan Singh gave new mass base to BJP by creating social equation between Mandal and temple - Lucknow News in Hindi

लखनऊ । भारतीय राजनीति में कल्याण सिंह उन नेताओं में शुमार हैं जिन्हें राम जन्मभूमि आंदोलन का नायक कहा जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सत्ता की जगह विचार और संकल्पों को महत्ता दी। उन्होंने ही मंडल-मंदिर के बीच सामाजिक समीकरण गढ़कर भाजपा को नया जनाधार दिया। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कल्याण सिंह उन गिने-चुने चेहरों में रहे जिन्होंने विचार और संकल्प को कुर्सी से बड़ा माना। राम जन्मभूमि आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाने वाले कल्याण सिंह ने सत्ता, अदालत और जेल हर मोर्चे पर जिम्मेदारी उठाकर राजनीति को नई परिभाषा दी। मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी तो बिना हिचक त्याग दिया, कारसेवकों पर गोली न चलाने का आदेश स्वीकार कर जेल गए।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मुकेश अलख कहते हैं, "कल्याण सिंह जैसे नेता विरले पैदा होते हैं। उन्होंने सत्ता से ज्यादा न्याय को प्राथमिकता दी। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में उन्होंने ऐसे-ऐसे निर्णय किए जो अपने आप में नजीर पेश करते हैं। शिक्षा में नकल को खत्म करके उन्होंने एक बड़ी लकीर खींची। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा। उनके शासन में बड़ी सख्त व्यवस्था थी। उनकी भतीजी का मेडिकल में एडमिशन होना था। उस समय हर राज्य में दो सीट का कोटा होता था, जिसे उन्होंने खत्म कर दिया।"
हालांकि उनके परिवार को यह बात नागवार गुजरी लेकिन वे पीछे नहीं हटे। अलख ने बताया कि वे गरीब आदमी को न्याय दिलाने में आगे रहते थे। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी गहरी भूमिका थी। अयोध्या के संत आज भी यह याद करते हुए कहते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वे अयोध्या आए तो उन्होंने हेलीकॉप्टर का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि 'अयोध्या की धरती पर सड़क मार्ग से आना ही मेरा सौभाग्य है।' यह केवल यात्रा का अंदाज नहीं, बल्कि जनता से उनके गहरे जुड़ाव का प्रतीक था।
श्रीराम जन्मभूमि पर वर्षों तक सेवा देने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अफसर पीके मिश्र का कहना है कि सभी यह जानते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिरने के बाद उन्होंने बिना कोई देर किये तत्काल इस्तीफा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर यह भी माना कि गोली न चलाने का आदेश उन्होंने ही दिया। उस दौर में जब नेता ठीकरा अधिकारियों पर फोड़ते थे, कल्याण सिंह ने जवाबदेही खुद उठाकर तिहाड़ जेल जाना स्वीकार किया।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक उनकी राजनीति का दूसरा चेहरा मंडल और मंदिर के बीच संतुलन साधने का था। मंडल फैसले से राजनीति जातीय खांचों में बंटी, तब उन्होंने पिछड़ों-दलितों को भाजपा से जोड़कर ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का नया अध्याय लिखा। इससे भाजपा का जनाधार व्यापक हुआ और वे हिंदुत्व के साथ सामाजिक समीकरणों के शिल्पकार भी बने।
वरिष्ठ पत्रकार पवन पाण्डेय बताते हैं कि यह बहुत ही आश्चर्य लगता है जब उनके शासन काल के बारे में कोई चर्चा करने का मौका मिलता है। मैं तो अयोध्या का ही निवासी हूं। जरा सोचिए, जो व्यक्ति आठ बार विधायक, तीन बार मुख्यमंत्री, लोकसभा सांसद और राज्यपाल रहा, उसका जीवन निष्कलंकित बीत गया। ये कहते हैं कि कल्याण सिंह की विरासत केवल पदों तक सीमित नहीं रही। सड़क से जुड़ाव, सत्ता त्याग का साहस, अदालत में जवाबदेही और सामाजिक संतुलन की कला ने उन्हें भारतीय राजनीति का अद्वितीय अध्याय बना दिया।
--आईएएनएस

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Web Title-Kalyan Singh gave new mass base to BJP by creating social equation between Mandal and temple
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