जयपुर। दीपावली के त्योहार की चकाचौंध और पटाखों की धूम में कई परिवारों की खुशियां खाक हो गईं। पिछले दो दिनों में जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल की इमरजेंसी में पटाखों से घायल हुए 80 से अधिक लोग पहुंचे। इनमें ज्यादातर मामले मासूम बच्चों और एक युवती के थे, जिनकी आंखों की रोशनी पटाखों की बारूद और चिंगारी की भेंट चढ़ गई। इन बच्चों और युवती के लिए अब दीपावली का अर्थ हमेशा के लिए अंधकार हो गया है, क्योंकि डॉक्टरों के अनुसार, रोशनी लौटने की संभावना न के बराबर है।
एसएमएस हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी ने बताया कि दीपावली के बाद से अब तक 80 से ज्यादा घायल मरीजों का उपचार किया गया, जिनमें से 9-10 मरीजों की हालत गंभीर थी। अधिकांश मामलों में पटाखों के चलते आंखों में गंभीर चोटें आईं, और कई सर्जरी के बाद भी रोशनी लौटने की उम्मीद बेहद कम है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पटाखों की सुरक्षा पर लापरवाही का दंश
पटाखों का व्यापार साल दर साल बढ़ता जा रहा है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खोखली हिदायतें दी जाती हैं। एसएमएस हॉस्पिटल के नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डॉ. पंकज शर्मा का कहना है कि हर साल ऐसी घटनाओं में बच्चों की आंखों की रोशनी चली जाती है, और इसके बावजूद माता-पिता और प्रशासन दोनों इस खतरे को नजरअंदाज कर रहे हैं। सुरक्षा के लिए प्लास्टिक के चश्मों का उपयोग भी नाम मात्र का रह गया है, जो बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन इन्हें अनिवार्य बनाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
परिवारों में मातम, प्रशासन की उदासीनता
धौलपुर की 19 साल की भावना हो या झुंझुनूं का 8 साल का यश—इन बच्चों की जिंदगी अब शायद पहले जैसी न रह सकेगी। भावना के साथ दीपावली की रात जो हुआ, वह दर्दनाक है। पटाखों से लगी आग ने उसके शरीर को झुलसा दिया और आंखों की रोशनी भी छीन ली। वहीं, झुंझुनूं के यश की मां का कहना है कि उसका बच्चा तो सिर्फ खड़ा था, लेकिन पटाखों की बंदूक की चिंगारी ने उसकी आंख को नुकसान पहुंचा दिया।
अलवर, नागौर, जयपुर—हर जिले से ऐसे ही हादसे सामने आए हैं, लेकिन सवाल उठता है कि प्रशासन कब जागेगा? क्या हर साल यही खबरें बनती रहेंगी, और हर बार कई मासूमों की जिंदगी बर्बाद होती रहेगी?
सरकार को सख्ती से उठाने चाहिए कदम
डॉ. पंकज शर्मा का कहना है कि हर साल ऐसे हादसे होते हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। जरूरी है कि पटाखा विक्रेताओं के लिए सुरक्षा चश्मों की अनिवार्यता लागू की जाए और बच्चों के पटाखे जलाने पर सख्त निगरानी रखी जाए।
यह वक्त है कि सरकार और माता-पिता दोनों ही अपनी जिम्मेदारी समझें, ताकि अगली दीपावली किसी के लिए अंधेरा न लाए।
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