जयपुर। प्राइवेट अस्पतालों में सरकारी योजनाओं के तहत रोगियों का इलाज अब फिर से शुरू किया जाएगा। डॉक्टरों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने देर रात सरकारी योजनाओं का बहिष्कार 10 मार्च तक स्थगित करने का फैसला किया है। इससे पहले इस फैसले को लेकर ज्वाइंट एक्शन कमेटी में विवाद हो गया था। लेकिन, खास खबर डॉट कॉम की खबर के बाद देर रात ज्वाइंट एक्शन कमेटी के चेयरमैन डॉ. सुनील चुग ने वीडियो बयान जारी करके मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा और आरजीएचएस योजनाओं में इलाज शुरू किए जाने की जानकारी दी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
डॉ. चुग ने अपने बयान में कहा कि गुरुवार को मुख्यमंत्री के साथ बैठक में चर्चा हुई थी। मुख्यमंत्री ने डॉक्टरों की सभी चिंताओं और मुद्दों को धैर्यपूर्वक सुना। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देशित किया और सभी मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने का वचन दिया। हमने संयुक्त कार्य समिति की बैठक में सभी विवरणों पर चर्चा की और बहुमत से यह निर्णय लिया कि हम 10 मार्च तक सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के बहिष्कार को तत्कालिक रूप से स्थगित कर रहे हैं। यह भी निर्णय लिया गया कि अगर 10 मार्च तक हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं तो हम पूर्ण चिकित्सा बंद सहित बड़े पैमाने पर अपना आंदोलन फिर से शुरू करेंगे।
इससे पहले आईएमए की मीडिया कमेटी के चेयरमैन डॉ. संजीव गुप्ता ने शुक्रवार शाम 5.15 बजे आधिकारिक बयान जारी करके कहा था कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात के बाद ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने सरकारी योजनाओं के बहिष्कार का फैसला वापस ले लिया है। लेकिन, इसके तुरंत बाद गुप्ता के इस बयान पर ज्वाइंट एक्शन कमेटी के कुछ सदस्यों ने आपत्ति कर दी। ज्वाइंट एक्शन कमेटी के चेयरमैन डॉ. सुनील चुग ने भी रात करीब 10 बजे खास खबर डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि सरकारी योजनाओं के तहत इलाज शुरू करने के मामले में फिलहाल यथास्थिति है। यानि अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं किया गया है। लेकिन, इस पर विचार - विमर्श चल रहा है। जैसे ही कोई फैसला होगा तो मीडिया को आधिकारिक तौर पर सूचित किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि राइट टू हैल्थ विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर प्रदेशभर के चिकित्सक और प्राइवेट अस्पताल आंदोलनरत हैं। ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आह्वान पर प्राइवेट अस्पतालों ने मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा और आरजीएचएस जैसी सरकारी योजनाओं के तहत रोगियों का इलाज नहीं करने का फैसला किया हुआ है। डॉक्टरों और अस्पतालों की सबसे बड़ी आपत्ति इस प्रावधान पर है कि मेडिकल इमरजेंसी में वे किसी भी रोगी को इलाज करने से मना नहीं कर सकेंगे। भले ही उसके पास देने के लिए पैसा हो अथवा नहीं। उन्हें निशुल्क इलाज भी करना पड़ सकता है। डॉक्टरों का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों के खर्चे बहुत हैं। सरकार ने बिजली-पानी से लेकर तमाम सुविधाओं का शुल्क कामर्शियल किया हुआ है। मशीनें बहुत महंगी आती हैं और उनके मेंटीनेंस पर काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। ऐसे में वे निःशुल्क इलाज कैसे करेंगे। वैसे भी सरकार ने बीमा योजना में पैकेज की दरें बहुत ही कम स्वीकृत की हुई हैं। मुख्यमंत्री ने डॉक्टरों को उनके हितों का विधेयक में ख्याल रखे जाने का भरोसा दिलाया है।
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