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पंजाब की तरह राजस्थान में भी केंद्र के कृषि कानूनों से अलग विधेयक, 2020 ध्वनिमत से पारित, यहां पढ़ें

Like Punjab, in Rajasthan too, separate bill from the agricultural laws of the Center, 2020 passed by voice, read here - Jaipur News in Hindi

जयपुर । राजस्थान विधानसभा ने कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020 तथा कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधेयक, 2020, ध्वनिमत से पारित कर दिया है।
विधेयक पर सदन में हुई चर्चा के बाद विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों पर प्रकाश डालते हुए विधि मंत्री ने बताया कि भारत का अन्नदाता अपनी जमीन को पुत्र से भी ज्यादा प्रेम करता है। किसान के खिलाफ केन्द्र सरकार के बनाए कृषि कानूनों से पूरा देश 2014 के भू-अधिग्रहण अधिनियम की भांति आंदोलित है। कोविड महामारी भी जिस किसान की जीडीपी को नहीं गिरा पाई उसे ऎसे कानून गिराने पर तुले हैं। बडे पूंजीपतियों के आने से छोटे व फुटकर व्यापारी, दुकानदार समाप्त हो जायेंगे जो कि विपरीत प्रभावकारी साबित होगा। ये कानून उद्योगपतियों को कृषि क्षेत्र में प्रवेश कराने का षड़यंत्र है जो किसानों को जमीन व जिंदगी बेचने पर मजबूर करेंगे। केन्द्र के कृषि कानून में कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य शब्द तक का उल्लेख नहीं है। इन कानूनों से किसान पूंजीपतियों से बंध जायेगा और बीज से लेकर उपज तक की ग्रेडिंग व गुणवत्ता तक का निर्धारण जब संविदाकर्ता उद्योगपति करेगा तो किसान को भला उपज का पूरा मूल्य कैसे मिल सकता है। साथ ही इससे झगडे़ व मुकदमें भी अनावश्यक रूप से बढने की संभावना रहेगी। उन्होंने बताया कि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में देहाती जमीन अकुशल हाथों में हैं जिसे कुशल हाथों में ले जाने की जरूरत है। राजस्थान में कृषकों के लिए चल रही लाभकारी और कल्याणकारी योजनाएं जैसे कृषक कल्याण कोष, राजीव गांधी कृषक साथी योजना, महात्मा ज्योतिराव फुले मण्डी श्रमिक कल्याण योजना, किसान कलेवा योजना आदि भी हमारी ही योजनाएं थी जिन्हें आज भी संचालित किया जा रहा है।
लघु व सीमान्त कृषको का प्रतिशत 86 फीसदी है जिन्हें कृषि मण्डियों से लाभ मिलता है। 1945 में कृषि विपणन नाम से एक समिति बनाई और उसकी बैठक की गई। इसी आधार पर 1961 में इन मण्डियों के जरिये किसानों को उपज की खरीद-फरोख्त कर उसका उचित मूल्य मिल पाता है। अन्नदाता के अतिरिक्त इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुडे़ लोग भी लाभान्वित होते हैं। उन्होंने बताया कि जयंत वर्मा बनाम भारत सरकार वाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहा है कि कृषि राज्य सरकार का अनन्य विषय है, इसलिए सरकार संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कानून बनाना राज्य के लिए विधिसम्मत विहित है।

राज्य सरकार के द्वारा बनाये गये इन कानूनों से निश्चित रूप से किसानों को लाभ होगा और मण्डियों का ढांचा सुदृढ़ होने के साथ ही किसानों को समय पर पर उनकी उपज का उचित दाम मिल पाना सुलभ हो सकेगा।इन कानूनों के लागू होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल खरीदी करने की दशा में खरीददार को 3 वर्ष से 5 वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है एवं खरीदी गई उपज का मूल्य भी तीन दिवस के भीतर किसान को चुकाना अनिवार्य होगा। इससे पहले सदन ने विधेयक को जनमत जानने के लिए प्रचारित करने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया।

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