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जेडीए का महाघोटाला-4 : रीको की अवाप्तशुदा जमीनों पर बसी कॉलोनियों में पट्टे देने में भी जेडीए अफसरों की मनमानी

JDAs Mahaghotala-4: Arbitrariness of JDA officers even in giving leases in colonies situated on unclaimed land of Riico - Jaipur News in Hindi

-गिरिराज अग्रवाल

जयपुर। नियम-कानून सबके लिए बराबर हैं, यह बात अब बेमानी हो गई है। दरअसल, नियम-कायदे और कानून सिर्फ कमजोर और गरीबों के लिए ही हैं। धनाढ्य, दलाल, माफिया और ऊंचे रसूख वालों के लिए कोई नियम-कायदे और कानून लागू नहीं होते। जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) औऱ सरकार में बैठे बड़े अफसरों की कार्य़शैली से तो यही बात साबित होती है।
रोचक तथ्य यह है कि सांगानेर तहसील के ग्राम महल, जीरोता और श्रीकिशनपुरा में औद्योगिक प्रयोजन से अपैरल पार्क के लिए सन् 2000 में अवाप्त हुई 190.31 हैक्टेयर भूमि में से दो तिहाई पर जेडीए ने सरकार की सहमति से आवसीय और व्यावसायिक पट्टे बांट दिए। जबकि राजधानी जयपुर में ही टोंक रोड पर बसी अर्जुन नगर, ग्रीन नगर, जादौन नगर, प्रेम नगर, कृषि नगर, सुदामा नगर और तरुछाया नगर समेत कई कॉलोनियों 20 हजार से ज्यादा परिवार आज भी पट्टे मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इन कॉलोनियों को बसे हुए 2 दशक से भी ज्यादा समय बीत चुका है।
खास बात यह है कि इन कॉलोनियों के संबंध में भी आवासीय पट्टे जारी करने के लिए राज्य सरकार यानि मंत्रिमंडलीय उप समिति, राज्य के महाधिवक्ता तक सकारात्मक ओपिनियन दे चुके हैं। यहां तक कि पट्टे जारी करने के लिए दर भी तय हो चुकी थी। लेकिन, इसके बावजूद जेडीए अफसर यहां पट्टे देने को तैयार नहीं है। वह भी तब जबकि घनी आबादी के कारण यहां अब औद्योगिक क्षेत्र विकसित होने की कोई संभावना नहीं है। इसके विपरीत प्रशासन शहरों के संग अभियान में हजारों कॉलोनियों में तमाम तरह की छूट देकर पट्टे जारी किए जा चुके हैं।
औद्योगिक प्रयोजन के लिए अवाप्त भूमि बदले विकसित भूमि दी सकती है?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक रीको ने जगतपुरा क्षेत्र में ग्राम महल, जीरोता, श्रीकिशनपुरा तहसीलों की 190.31 हैक्टेयर भूमि औद्योगिक प्रयोजन यानि अपैरल पार्क के लिए वर्ष 2000 के दौरान अवाप्त की थी। इसके लिए 9.82 करोड़ रुपए का अवार्ड घोषित किया गया। लेकिन, किसानों ने अवार्ड के अनुसार नकद मुआवजा नहीं लिया। नियमानुसार भूमि के बदले विकसित भूमि देने की नीति केवल नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग में आवासीय औऱ व्यावसायिक प्रोजेक्ट पर ही लागू थी।
अवाप्तशुदा भूमि का कब्जा लेने के लिए रीको को राज्य सरकार की सहमति से जेडीए की मदद लेनी पड़ी। लेकिन, इस मदद के बदले रीको को भारी कीमत चुकानी पड़ी। क्योंकि 190.31 हैक्टेयर में से 129.62 हैक्टेयर यानी 500 बीघा से भी ज्यादा जमीन जेडीए ने ले ली। फिर इस जमीन में मनमाने ढंंग से प्लानिंग कर चहेतों को जाली पावर ऑफ अटार्नी पर ही पट्टे बांट दिए गए।
अपैरल पार्क की स्कीम ही बंद हो गई, केंद्र ने भी नहीं दिया अनुदानः
खास बात है कि जिस अपैरल पार्क के नाम पर रीको ने इतनी बड़ी मात्रा में जमीन अवाप्त की थी। वह मात्र 65 हैक्टेयर में सिमट कर रह गया। रीको ने इसे विकसित करने की योजना वर्ष 2003 में बनाई। इसके लिए केंद्र सरकार से बतौर ग्रांट 98 लाख रुपए भी मिल चुके थे। लेकिन, वर्ष 2008 तक भी अपैरल पार्क विकसित नहीं हुआ। जबकि केंद्र सरकार की अपैरल पार्क योजना मार्च, 2007 में ही समाप्त हो गई। इस पर केंद्र सरकार ने साफ तौर पर कह दिया कि अब कोई ग्रांट नहीं दी जाएगी। राज्य सरकार चाहे तो अपने संसाधनों से इस प्रोजेक्ट को पूरा कर सकती है।
सेंट्रल स्पाइन और निलय कुंज भू-आवंटन घोटाले की सीबीआई से हो जांचः
इधर, अपैरल पार्क के लिए अवाप्त की गई रीको की जमीन में जेडीए अफसरों द्वारा जाली पावर ऑफ अटार्नी के आधार पर आवंटित किए गए आवासीय और व्यावसायिक भूखंडों को लेकर स्थानीय लोगों ने सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की है।
इस संबंध में जेडीए की विधि शाखा के तत्कालीन निदेशक दिनेश कुमार गुप्ता भी फाइल पर सीबीआई, एसीबी और ईडी से जांच कराए जाने की विधिक राय दे चुके हैं। बता दें कि गुप्ता जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर के वरिष्ठतम अधिकारी हैं। इसलिए उनकी कानूनी राय काफी महत्वपूर्ण है।

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Web Title-JDAs Mahaghotala-4: Arbitrariness of JDA officers even in giving leases in colonies situated on unclaimed land of Riico
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