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यूडीएच में भ्रष्टाचार - अर्जी में खसरा नंबर नहीं होने की झूठी आपत्ति लगाई, एनओसी के लिए मंत्री की नहीं ली मंजूरी

Corruption in UDH - false objection of not having Khasra number in the application, did not take approval of minister for NOC - Jaipur News in Hindi


दलाल लोकेश जैन के मोबाइल में मिली आईएएस कुंजीलाल मीणा और मनीष गोयल की वाट्सएप चैटिंग औऱ कॉल


जयपुर। नगरीय विकास एवं आवासन विभाग में किस कदर भ्रष्टाचार का खुला खेल खेला जा रहा है। इसका खुलासा हाल ही उदयपुर यूआईटी परिसर में पकड़े गए दलाल लोकेश जैन से पूछताछ औऱ उसके मोबाइल की जांच से हुआ है। इस संबंध में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की ओर से दर्ज की गई एफआईआर में भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जैसे कि पीड़ित से 25 लाख रुपए की मोटी रकम ऐंठने के लिए उसकी अर्जी (आवेदन) में खसरा नंबर 1853 अंकित नहीं होने की झूठी आपत्ति लगाई गई। जबकि उसकी अर्जी यह खसरा नंबर पहले से ही अंकित था। इसके लिए पीड़ित जयपुर आकर आईएएस कुंजीलाल मीणा और संयुक्त सचिव मनीष गोयल से मिला था।


एफआईआऱ के मुताबिक भू उपयोग परिवर्तन के लिए एनओसी की जरूरत नहीं होने के बावजूद उदयपुर यूआईटी ने यूडीएच से एनओसी मांगी। इसमें सबसे रोचक तथ्य यह है कि आम तौर पर एनओसी की फाइलें नगरीय विकास एवं आवासन विभाग के मंत्री तक जाती हैं। लेकिन, इस मामले की फाइल नगरीय विकास मंत्री शांति कुमार धारीवाल तक भेजी ही नहीं गई। जबकि दलाल लोकेश जैन संयुक्त सचिव मनीष गोयल, प्रमुख शासन सचिव कुंजीलाल मीणा के हवाले से फाइल मंत्री तक भेजे जाने की बात करता रहा और मंत्री के नाम पर भी पैसे मांगता रहा। इसकी पुष्टि दलाल लोकेश जैन के मोबाइल में मिली वाट्सएप कॉल, चैट, मैसेज, परिवादी की जमीन की एनओसी की कॉपी एवं अन्य दस्तावेजों से हुई है।

इधर, यूडीएच के अफसरों ने अपने स्तर पर ही न केवल एनओसी जारी की। बल्कि उसकी कॉपी फरियादी के बजाय दलाल लोकेश जैन को उसके मोबाइल पर भेजी गई। फिलहाल भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने नगरीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव कुंजीलाल मीणा औऱ मनीष गोयल की बेनामी संपत्तियों की जांच शुरू कर दी है।


मंत्री और अफसरों के नाम पर दलाल ऐसे करते हैं सौदेबाजीः

एसीबी के पास ट्रेप कार्यवाही के दौरान परिवादी और दलाल लोकेश जैन की रिश्वत मांग के संबंध में आमने-सामने हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग भी है। इसके मुताबिक इसमें दलाल लोकेश जैन कहा है कि 25 लाख का खर्चा है, 20 से 25 लाख। परिवादी कहता है 25 लाख। मतलब बिलानाम भी कर देंगे। लोकेश जैन कहता है सब आ जाएगा 25 में। टोटल काम हो जाएगा। परिवादी- 25 लाख में टोटल काम हो जाएगा? यार उन मनीष को कहो, थोड़ा-बहुत कम करे। लोकेश जैन कहता है-उनके हाथ में कुछ नहीं है बेचारे के। उसके ऊपर भी बैठे हैं कुंजीलाल और मंत्री साहब। परिवादी कहता है- कुंजीलाल भी लेगा? लोकेश जैन- 100 परसेंट लेगा। मनीष गोयल से आपका मामला मंत्री तक जाएगा। सरकारी जमीन का चक्कर है ना। मंत्री का मामला थोड़ा भारी है।


रिश्वत के 12 लाख रुपए में थे 7 लाख के नकली नोटः

इस खेल का एक रोचक पहलू यह भी है कि कुल सौदा 25 लाख रुपए में तय हुआ था। इसमें से पहली किश्त की तौर पर 12 लाख रुपए दिए जाने थे। एसीबी ने जब परिवादी से रुपयों के इंतजाम के बारे में पूछा तो उसके पास सिर्फ 5 लाख रुपए का इंतजाम था। जबकि 7 लाख रुपए के नकली नोट जुटाए गए।

कुंजीलाल और मनीष गोयल के ट्रांसफर की कवायद शुरूः

यह भी गजब विडंबना है कि लाखों रुपए की घूस, रिश्वतखोरी कर उच्च पदों पर बैठे अफसरों पर कार्ऱवाई के लिए सरकार के पास एकमात्र विकल्प ट्रांसफर है। यूडीएच विभाग में भ्रष्टाचार का खुलासा हुए भी 4-5 दिन हो चुके हैं। इसके बावजूद अभी तक बड़े अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि छोटे कर्मचारी को तो अब तक सस्पेंड कर दिया जाता। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही आम जनता को राहत देने वाली नीतियां बनाते हों। लेकिन, अफसरों की कोशिश यही रहती है कि इन नीतियों को धनलक्ष्मी में कैसे परिवर्तित किया जाए। नियमों में नहीं होते हुए भी आवेदकों से हर काम के पैसे लिए जाते हैं। चाहे वो नाम परिवर्तन हो। चाहे किए गए कामों के बिलों का भुगतान हो। पट्टे जारी करने हों या जमीन का सब डिवीजन। भू-उपयोग परिवर्तन हो या यूडी टैक्स, होर्डिंग टैक्स, टेंडर कार्यों के आदेश जारी करना। टेंडरों को मनचाही फर्मों के हिसाब से तैयार करना या प्री-बिड मीटिंग की मिनिट्स में बदलाव करना। सभी कामों के लिए हर जगह दलाल घूम रहे हैं।


भीलवाड़ा यूआईटी के मामलों की भी हो एसीबी जांचः

उदयपुर यूआईटी भ्रष्टाचार के तार भीलवाड़ा तक जुड़े हैं। यहां भी एक ऐसा ही दलाल है। जिसके सामने तमाम आईएएस और आरएएस अफसर पानी भरते हैं। उदयपुर में पकड़ा गया दलाल लोकेश जैन इसी दलाल का लोकल एजेंट बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भ्रष्टाचार पर राज्य में सर्वाधिक कार्रवाई होने का दावा करते हैं। लेकिन, क्या राज्य सरकार के आला अधिकारियों को स्वायत्त शासन निदेशालय, रुडिसको, जयपुर विकास प्राधिकरण, नगर निगम और रिडकोर आदि में हो रहे भ्रष्टाचार और वहां घूमने वाले दलालों के बारे में जानकारी नहीं है। अगर सरकार चाहे तो इन संस्थानों में आगंतुकों का रजिस्टर में नाम, मोबाइल नंबर, फोटो आदि जरूरी कर दे तो आसानी से पता चल जाएगा कि संस्थान को अफसर चला रहे हैं या दलाल।

नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन महकमे में हर जगह पनपी दलाल संस्कृतिः

सूत्रों के मुताबिक नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग और इससे जुड़े संस्थानों में हर जगह दलाल संस्कृति पनप चुकी है। हालत यह है कि दूसरे शहरों के अलावा जयपुर के नागरिक औऱ ठेकेदारों को अपना काम करवाने के लिए दलाल ढूंढने पड़ते हैं। क्योंकि अगर पैसा नहीं दिया तो जेडीए से स्वीकृत भवन तक गिरा दिए जाते हैं। पत्रावलियां गुम हो जाती हैं। जेडीए औऱ स्वायत्त शासन निदेशालय के अफसर सीज संपत्ति की सील नहीं खुलने देते। अनाधिकृत निर्माणों को तुड़वाने और नहीं तोड़ने के लिए भी पैसा देना पड़ता है।

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