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दौसा। रावण का टीला स्थित शहर के सबसे बड़े मोक्ष धाम में निर्मित सामुदायिक भवन अब उपेक्षा की भेंट चढ़ चुका है। करीब दो साल पहले तत्कालीन मंत्री मुरारीलाल मीणा द्वारा लोकार्पित इस भवन का उद्देश्य था—अंतिम संस्कार के लिए आने वाले शोकाकुल परिजनों को बैठने, पानी और विश्राम जैसी बुनियादी सुविधाएं देना। लेकिन आज स्थिति यह है कि एक करोड़ रुपए की लागत से बना यह भवन ताले में जकड़ा पड़ा है और भीषण गर्मी में लोगों को खुले आसमान के नीचे तपना पड़ रहा है।
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हर दिन औसतन दो शव अंतिम संस्कार के लिए मोक्ष धाम लाए जा रहे हैं। इनके साथ आने वाले सैकड़ों लोग लू, धूप और गर्मी के कहर के बीच बिना किसी छांव या बैठने की जगह के, मजबूरी में वहां खड़े रहते हैं। नगर परिषद द्वारा इस भवन पर न तो कोई कर्मचारी तैनात किया गया है और न ही इसकी देखरेख की कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। जिससे यह भवन उपयोग में ही नहीं आ पा रहा।
एक करोड़ का भवन बना सफेद हाथी
स्थानीय लोगों का आक्रोश इस बात को लेकर है कि यदि भवन का उपयोग ही नहीं होना था तो उस पर एक करोड़ रुपए खर्च क्यों किए गए? नगर परिषद की लापरवाही के कारण यह सामुदायिक भवन अब महज़ एक शोपीस बनकर रह गया है। किसी आपात स्थिति या गर्मी के दिनों में इसकी उपयोगिता स्पष्ट होती है, लेकिन परिषद की उदासीनता ने इसे जनता से दूर कर दिया है।
भारत विकास परिषद दे रही मिसाल, लेकिन परिषद बनी बेखबर
मोक्ष धाम के पास स्थित मुक्ति बाग का संचालन भारत विकास परिषद कर रही है। वहाँ पर बगीचा, मंदिर, पीने का पानी और नहाने-धोने की पूरी व्यवस्था मौजूद है। मुक्ति बाग में आने वाले लोगों को आवश्यक सहूलियतें मिल रही हैं, जिससे यह उदाहरण बन सकता है। लोगों की मांग है कि जिस प्रकार भारत विकास परिषद ने मुक्ति बाग को सहेजा है, उसी प्रकार मोक्ष धाम स्थित सामुदायिक भवन की जिम्मेदारी भी उसे सौंपी जाए।
जनता की मांग : ताले खुलें या जिम्मेदारी बदले
स्थानीय लोगों का कहना है कि सामुदायिक भवन की जिम्मेदारी किसी समाजसेवी संस्था को सौंपी जाए, जिससे इसका सही उपयोग हो सके। जब नगर परिषद इसे संचालित करने में असफल हो रही है, तो जनहित को देखते हुए इसे किसी सक्षम संस्था के हवाले किया जाना ही एकमात्र विकल्प लगता है।
प्रशासन की चुप्पी : न जवाब, न समाधान
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि नगर परिषद इस मुद्दे पर न तो कोई बयान दे रही है और न ही समाधान का कोई प्रयास किया जा रहा है। यह चुप्पी एक तरह से प्रशासन की असंवेदनशीलता को उजागर करती है। दाह संस्कार जैसे संवेदनशील कार्य के लिए आने वाले लोग यदि मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रहें, तो यह व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है।
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