मुंबई। विदेशी कोर्ट को भारतीय कपल की तलाक याचिका पर फैसला सुनाने का अधिकार नहीं है। यह कहना है बॉम्बे हाई कोर्ट का। हाई कोर्ट ने कहा है कि विदेशी अदालत को उस दंपती के वैवाहिक मामलों पर फैसला देने का अधिकार नहीं है जो भारत का निवासी हो और जिसकी शादी हिंदू विवाह एक्ट के तहत हुई हो। चाहे दंपती शादी के समय विदेश में ही क्यों ना रह रहे हों। जस्टिस एस ओका और जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई की बेंच ने बीते सप्ताह दुबई की एक कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें वहां रह रहे एक भारतीय व्यक्ति की तलाक याचिका को मंजूरी दी गई थी। हाई कोर्ट उस व्यक्ति की पत्नी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मुंबई की एक परिवार अदालत द्वारा दिए आदेश को चुनौती दी गई थी।
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परिवार अदालत ने उसकी अपने और अपने दो बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने वाली याचिका खारिज कर दी थी। परिवार अदालत ने उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि दुबई की अदालत ने पहले ही इस मामले पर फैसला सुना दिया है और पति-पत्नी को तलाक की मंजूरी दे दी है। हाई कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद कहा कि दोनों पक्ष (पति और पत्नी) भारतीय नागरिक हैं और पति के इस दावे को पुख्ता करने वाला कोई दस्तावेज नहीं है कि वे दुबई के निवासी हैं। बेंच ने कहा, इन परिस्थितियों के तहत, दुबई की अदालत याचिकाकर्ता (पत्नी) और प्रतिवादी (पति) के बीच वैवाहिक विवाद पर फैसला करने के लिए सक्षम अदालत नहीं है।
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