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डंकी रूट से लूट : युवाओं के सपनों की तस्करी

Looting the Donkey Route: Trafficking in the Dreams of Youth - Bhiwani News in Hindi

भारत के अनेक इलाकों में, विशेषकर हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, एक नया और खतरनाक चलन तेज़ी से फैल रहा है — “डंकी रूट” के ज़रिये विदेश पहुंचने का सपना। यह शब्द ‘डंकी’ अंग्रेज़ी के donkey से लिया गया है, जिसका मतलब है ‘बिना अनुमति या अवैध रास्ते से जाना’। सुनने में यह किसी फिल्मी कहानी जैसा लगता है, पर हकीकत इससे कहीं ज़्यादा भयावह है। इस रूट ने न केवल युवाओं के भविष्य को निगल लिया है, बल्कि समाज और प्रशासन के सामने एक गंभीर मानवीय और आर्थिक संकट भी खड़ा कर दिया है। भारत के ग्रामीण और अर्धशहरी इलाकों में ‘विदेश जाना’ अब सिर्फ़ एक आकांक्षा नहीं, बल्कि सफलता का प्रतीक बन गया है। नौकरी, मान-सम्मान, और बेहतर जीवन की तलाश में अनेक युवा अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। एजेंट उन्हें सुनहरे सपने दिखाते हैं — “बस कुछ दिनों में अमेरिका की जमीन पर खड़े होंगे”, “डॉलर में सैलरी मिलेगी”, “वहां का जीवन स्वर्ग जैसा है।” पर सच यह है कि इन सपनों की कीमत कई बार ज़िंदगी होती है। डंकी रूट पर निकलने वाले अधिकांश युवाओं को यह नहीं बताया जाता कि यह यात्रा महीनों तक चल सकती है, जिसमें रेगिस्तान, समुद्र और खतरनाक जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है। रास्ते में भूख, प्यास, ठंड और हिंसा का सामना करना पड़ता है। कई लोग तो इस सफ़र में लापता ही हो जाते हैं, जिनकी कोई खबर नहीं मिलती। डंकी रूट का पूरा कारोबार एक संगठित नेटवर्क के तहत चलता है, जिसमें फर्जी ट्रैवल एजेंट, पासपोर्ट दलाल, स्थानीय मुखिया, और विदेशी गिरोह शामिल होते हैं।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 5000 से अधिक युवा अवैध रूप से विदेश जाने की कोशिश करते हैं, जिनसे एजेंट 15 से 25 लाख रुपये तक वसूलते हैं। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 से 2025 तक 3053 फर्जी ट्रैवल एजेंट गिरफ्तार किए गए। पर असल संख्या इससे कहीं अधिक है, क्योंकि अधिकांश पीड़ित डर या शर्म के कारण शिकायत ही नहीं करते। एजेंट अक्सर बेरोजगारी और गरीबी से जूझते परिवारों को निशाना बनाते हैं, जो यह सोचते हैं कि बेटा ‘विदेश में सेट हो जाएगा’। लेकिन परिणाम होता है कर्ज़, बर्बादी और टूटे सपने।
भारत से शुरू होकर यह रूट पाकिस्तान, ईरान, तुर्की, ग्रीस, इटली, फ्रांस, और अंततः मैक्सिको के रास्ते अमेरिका तक जाता है। इस सफर में लोग कई बार समुद्र में नावों में ठूंसे जाते हैं, मरुस्थल पार करते हैं, या बर्फ़ीले जंगलों में फंस जाते हैं। कई मानवाधिकार संगठनों ने रिपोर्ट दी है कि इस यात्रा में हर साल सैकड़ों भारतीय मारे जाते हैं या लापता हो जाते हैं। फरवरी 2023 में गुजरात के दो युवकों की मौत तुर्की के पास हुई थी। वे यूरोप की सीमा पार करने की कोशिश में थे। ऐसी घटनाएं अब सामान्य बन चुकी हैं। यह न सिर्फ एक अपराध है बल्कि मानवता पर कलंक भी।
अवैध प्रवासन के मामलों में अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अब निगरानी तेज़ कर दी है। 2022 के बाद अमेरिका ने भारत के साथ ‘डेटा शेयरिंग’ समझौता किया है, जिससे डंकी रूट से पहुंचने वाले लोगों की तुरंत पहचान हो सके। पकड़े जाने पर उन्हें डीपोर्ट (वापस भेजा जाना) किया जाता है, और कई बार महीनों जेल में रहना पड़ता है। दूसरी ओर, यूरोपीय यूनियन ने भी सख्त वीज़ा और एंट्री नियम लागू किए हैं। इसका असर यह हुआ है कि अब एजेंट और भी खतरनाक रास्ते अपनाने लगे हैं — जैसे समुद्री मार्ग या जंगलों से पार करवाना, जिससे जान का खतरा और बढ़ गया है।
डंकी रूट सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी एक बड़ा बोझ है। युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा खेती और स्थानीय रोजगार से हटकर विदेश भागने के चक्कर में अपनी जमीन तक बेच देता है। गांवों में यह मानसिकता बन चुकी है कि “जो विदेश नहीं गया, वो सफल नहीं।” इस प्रवृत्ति का परिणाम यह है कि गांवों की श्रमशक्ति घट रही है, परिवार कर्ज़ में डूब रहे हैं और युवाओं का विश्वास वैधानिक रोजगार प्रणालियों से उठ रहा है। यह स्थिति दीर्घकाल में भारत की जनसांख्यिकीय शक्ति को कमजोर करती है।
भारत सरकार ने ट्रैवल एजेंटों के लिए रजिस्ट्रेशन और सत्यापन को अनिवार्य किया है। विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर ई-माइग्रेट पोर्टल भी शुरू किया गया है, जहां से वैध एजेंटों की सूची देखी जा सकती है। इसके बावजूद जागरूकता की कमी और भ्रष्ट तंत्र के कारण फर्जी एजेंट अब भी सक्रिय हैं। कानून मौजूद है — इमिग्रेशन एक्ट 1983 और पासपोर्ट एक्ट 1967 — पर इनकी प्रभावी क्रियान्विति नहीं हो पा रही। छोटे कस्बों में एजेंट खुलेआम “विदेश भेजने” के विज्ञापन लगा देते हैं, और पुलिस की नज़र उन पर तब पड़ती है जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है।
मीडिया ने इस मुद्दे पर समय-समय पर जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की है। अमर उजाला जैसे अख़बारों ने यह दिखाया कि कैसे “डंकी रूट से लूट” का धंधा हरियाणा, पंजाब, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सैकड़ों गांवों में फैल चुका है। पर इसके साथ समाज को भी आत्ममंथन करना होगा — क्यों युवाओं को लगता है कि देश में रहकर वे सफल नहीं हो सकते? क्यों विदेश जाना ही प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है? क्यों गांवों में वह वातावरण नहीं बन पा रहा जो युवाओं को यहाँ अवसर दे सके? गांव-गांव, कॉलेजों और पंचायतों के स्तर पर अवैध प्रवासन के खतरों पर अभियान चलाया जाना चाहिए।
विदेश मंत्रालय, श्रम विभाग और मीडिया मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कोई भी युवा बिना वैध प्रक्रिया के विदेश न जाए। ग्रामीण युवाओं के लिए कौशल विकास, स्वरोजगार, और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि विदेश जाने का आकर्षण घटे। फर्जी एजेंटों को केवल गिरफ्तार करना पर्याप्त नहीं; उनके वित्तीय नेटवर्क को तोड़ना ज़रूरी है। संपत्ति जब्ती और लंबी सजा जैसे प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए। समाज को यह समझना होगा कि सफलता केवल विदेशी ज़मीन पर कदम रखने से नहीं आती।
देश में भी अवसर हैं बस दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है। भारत को उन देशों से मिलकर काम करना चाहिए जहाँ ये नेटवर्क सक्रिय हैं, ताकि सीमा पार मानव तस्करी पर रोक लगे। भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है। यह जनसांख्यिकीय संपदा तभी वरदान बन सकती है जब उसे सही दिशा दी जाए। यदि यही युवा अवैध रास्तों में झोंक दिए गए तो यह राष्ट्र की अपार क्षति होगी। डंकी रूट से बचने के लिए केवल कानून नहीं, बल्कि विचार और विवेक की ज़रूरत है।
यह समझना होगा कि कोई भी सपना इतना बड़ा नहीं हो सकता जो इंसान की गरिमा, सुरक्षा और आत्मसम्मान से बड़ा हो। डंकी रूट सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं, यह भारत के युवाओं की हताशा, बेरोजगारी और भ्रम की गाथा है। जब तक समाज और सरकार मिलकर युवाओं को वैधानिक, सुरक्षित और सम्मानजनक अवसर नहीं देंगे, तब तक ऐसे एजेंटों का धंधा फलता-फूलता रहेगा। यह समय है कठोर कार्रवाई का, सच्ची जागरूकता का और उस सोच को बदलने का जो यह मानती है कि “विदेश जाना ही सफलता है।” क्योंकि असली विकसित भारत वह होगा — जहाँ युवा अपने ही देश में अपने सपनों को साकार कर सकें।

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