नई दिल्ली। पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम का जन्म 6 उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने। प्रतापी एवं माता-पिता भक्त परशुराम ने जहां पिता की आज्ञा से माता का गला काट दिया, वहीं पिता से माता को जीवित करने का वरदान भी मांग लिया। इस तरह हठी, क्रोधी और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाले परशुराम का लक्ष्य मानव मात्र का हित था। परशुराम ही थे, जिनके इशारों पर नदियों की दिशा बदल जाया करतीं, अपने बल से आर्यों के शत्रुओं का नाश किया, हिमालय के उत्तरी भू-भाग, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, कश्यप भूमि और अरब में जाकर शत्रुओं का संहार किया। उसी फारस जिसे पर्शिया भी कहा जाता था, का नाम इनके फरसे पर किया गया। उन्होंने भारतीय संस्कृति को आर्यन यानी ईरान के कश्यप भूमि क्षेत्र और आर्यक यानी इराक में नई पहचान दिलाई। गौरतलब है कि पर्शियन भाषी पार्शिया परशुराम के अनुयायी और अग्निपूजक कहलाते हैं और परशुराम से इनका संबंध जोड़ा जाता है। अब तक भगवान परशुराम पर जितने भी साहित्य प्रकाशित हुए हैं, उनसे पता चलता है कि मुंबई से कन्याकुमारी तक के क्षेत्रों को 8 कोणों में बांटकर परशुराम ने प्रांत बनाया था और इसकी रक्षा की प्रतिज्ञा भी ली थी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस प्रतिज्ञा को तब की अन्यायी राजतंत्र के विरुद्ध बड़ा जनसंघर्ष कहा गया। उन्होंने राजाओं से त्रस्त ब्राह्मणों, वनवासियों और किसानों अर्थात सभी को मिलाकर एक संगठन खड़ा किया, जिसमें कई राजाओं सहयोग मिला। अयोध्या, मिथिला, काशी, कान्यकुब्ज, कनेर, बिंग के साथ ही पूर्व के प्रांतों में मगध और वैशाली भी महासंघ में शामिल थे जिसका नेतृत्व भगवान परशुराम ने किया। दूसरी ओर, हैहयों के साथ आज के सिंध, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, लाहौर, अफगानिस्तान, कंधार, ईरान और ऑक्सियाना के पार तक फैले 21 राज्यों के राजाओं से युद्ध किया। सभी 21 अत्याचारी राजाओं और उनके उत्तराधिकारियों तक का परशुराम ने विनाश कर दिया था, ताकि दोबारा कोई सिर न उठा सके।
भगवान परशुराम को लेकर एक आम धारणा है कि वे क्षत्रियों के कुल का नाश करने वाले थे, जो पूरा सत्य नहीं है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भी भगवान परशुराम क्षत्रिय वर्ण के हंता न होकर मात्र क्षत्रियों के एक कुल हैहय वंश का समूल विनाश करने वाले हैं। दसवीं शताब्दी के बाद लिखे ग्रंथों में हैहय की जगह क्षत्रिय लिखे जाने के प्रमाण भी मिलते हैं। परशुराम ही वह व्यक्तित्व है, जो इतिहास का पहला ऐसा महापुरुष कहलाएगा, जिसने किसी राजा को दंड देने के लिए राजाओं को इक_ा करके एक नई राजव्यवस्था बनाई। युद्ध में विजय के बाद राज्य संचालन की सही व्यवस्था न होने से अपराध और हाहाकार की स्थिति भी बनी और घबरा, ऋषियों ने तप में लीन दत्तात्रेयजी को उठाकर पूरा वृत्तांत बताया। कपिल ऋषि के साथ जाकर दत्तात्रेय ने परशुराम को समझाया, उनकी बुद्धि जागृत की।
ग्रंथ कहते हैं कि कई वर्षो बाद जब परशुराम को समझ आया तो अपने कृत्यों पर पश्चाताप करने लगे। परशुराम को दत्तात्रेय ऋषि, कपिल ऋषि और कश्यप ऋषि तीनों ने बहुत धिक्कारा। ग्लानि में डूबे परशुराम ने संगम तट पर सारे जीते हुए राज्यों को कश्यप ऋषि को दान कर दिया और स्वयं महेंद्र पर्वत चले गए। इस तरह फिर से राजकाज की सुचारु शासन व्यवस्था शुरू की जा सकी। केरल प्रदेश को बसाने वाले भगवान परशुराम ही थे। एक शोध के अनुसार, परशुराम में ब्रह्मा की सृजन शक्ति, विष्णु की पालन शक्ति व शिव की संहार शक्ति विद्यमान थी, इसलिए वह त्रिवंत कहलाए। उनकी तपस्या स्थली आज भी तिरुवनंतपुरम के नाम से प्रसिद्ध है, जो अब केरल की राजधानी है।
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