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कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भाजपा की फितरत को नहीं रोक पाए, लेकिन गहलोत लड़ाका बनकर उभरे

Kamal Nath and Digvijay Singh could not stop BJP spirit, but Gehlot emerged as a fighter - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली । राजस्थान में राजनीतिक संकट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भाजपा और बागाी विधायकों के खिलाफ एक चट्टान की तरह खड़ा होकर कांग्रेस खेमे के लिए कुछ राहत लेकर आए हैं। लड़ाई जारी रखने की उनकी क्षमता ने राज्यपाल को, सशर्त ही सही, विधानसभा सत्र बुलाने की मांग पर झुकने के लिए मजबूर किया है।

कांग्रेस का यह चेहरा मध्यप्रदेश के एपिसोड के बिल्कुल विपरीत है, जहां मुख्यमंत्री को विधायकों के बेंगलुरू चले जाने तक कुछ पता ही नहीं चला था। मध्यप्रदेश का राजनीतिक संकट कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के ऊपर छोड़ा हुआ था, और जब तक कांग्रेस ने हस्तक्षेप किया, बहुत देर हो चुकी थी।

कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि अशोक गहलोत ऐसे समय में एक लड़ाका बनकर उभरे हैं, जब कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भाजपा की फितरत को नहीं रोक पाए, जिसके कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत की और अंततोगत्वा मध्य प्रदेश में सरकार गिर गई।

लेकिन राजस्थान में गहलोत ने पूरी पार्टी को अपनी उंगलियों पर रखा- संकट प्रबंधकों से लेकर कानूनी टीम तक को, यहां तक कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी उनके पक्ष में ट्वीट किए।

राजस्थान के लिए पार्टी के विशेष पर्यवेक्षक अजय माकन ने कहा, "राजस्थान में लड़ाई राजनीतिक है और कानूनी लड़ाई एक छोटा हिस्सा है।" इसलिए पार्टी ने लड़ाई को राजनीतिक रूप में लिया।

सूत्रों ने कहा कि अशोक गहलोत को पहली सफलता उस समय मिली, जब कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने पायलट खेमे से तीन विधायकों को निकाल लिया और उनसे पूरे ऑपरेशन का खाका हासिल कर लिया।

अशोक गहलोत ने कांग्रेस की कानूनी टीम का भी बहुत सावधानी के साथ इस्तेमाल किया और सिर्फ विधानसभा अध्यक्ष को अदालत में एक पक्ष बनाया गया। मुख्यमंत्री किसी भी याचिका में कोई पक्ष नहीं थे।

गहलोत ने संप्रग सरकार के दौरान के तीन पूर्व कानून मंत्रियों से राज्यपाल कलराज मिश्र को पत्र भी लिखवा दिया।

उसके बाद पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने राज्यपाल पर हमला किया और कहा कि विधानसभा सत्र बुलाने के मुद्दे पर उनके पास कोई विशेषाधिकार नहीं है।

जयपुर में 100 से अधिक विधायकों के साथ राजस्थान का किला बचाने के बाद अशोक गहलोत ने अंतत: नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर बात की, यानी वह इस लड़ाई को प्रधानमंत्री के दरवाजे तक ले गए।

इस बीच, पार्टी ने जयपुर को छोड़कर बाकी देशभर में सभी राजभवनों के बाहर विरोध प्रदर्शन आयोजित कर राजनीतिक लड़ाई को जारी रखा और राज्यपाल व भाजपा पर दबाव बनाए रखा।

पूर्व कांग्रेस महासचिव बी.के. हरिप्रसाद ने कहा कि पिछले छह सालों में भाजपा ने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सभी लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर किया, और इस क्रम में उसने संविधान का दुरुपयोग और उल्लंघन किया।

हरिप्रसाद ने कहा कि भाजपा ने खरीद-फरोख्त के जरिए निर्वाचित सरकारों को गिराने को वैध बना दिया है।

कांग्रेस की रणनीति पायलट खेमे के विधायकों को लुभाने की है। विधायकों से संपर्क के सभी रास्ते खुले रखे गए हैं, जिसमें उनके परिवारों से संपर्क भी शामिल है।

--आईएएनएस

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Web Title-Kamal Nath and Digvijay Singh could not stop BJP spirit, but Gehlot emerged as a fighter
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