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पूर्व सीजेआई यूयू ललित ने कहा, 'असहमति का अधिकार लोकतंत्र की पहचान है'

Former CJI UU Lalit said, Right to dissent is the hallmark of democracy - Delhi News in Hindi

नई दिल्ली । भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने हाल ही में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल की ओर से आयोजित सोली जे. सोराबजी मेमोरियल लेक्चर में कहा, "असहमति का अधिकार लोकतंत्र की पहचान है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र की पहचान है और जाने-माने न्यायविद (ज्यूरिस्ट) और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली जे. सोराबजी इस अधिकार के पक्के समर्थक और समर्थक थे।"
न्यायमूर्ति ललित ने सोराबजी के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों, सार्वजनिक निर्णयों और लेखन के माध्यम से देश के संविधान और कानूनों की उनकी गहरी समझ के बारे में बात की। एक इंसान के तौर पर उन्हें म्यूजिक से लेकर कविता (पोएट्री), साहित्य (लिटरेचर) से लेकर भूगोल (ज्योग्राफी) तक में बहुत रुचि थी और वे एक उदार पाठक (इक्लेक्टिक रीडर) थे। लेकिन वे कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध थे। उनका सबसे महत्वपूर्ण काम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्षेत्र में रहा है। यह कहना जरूरी है कि उनके कुछ तर्क और मामले उस दौर के हैं जब आपातकाल लागू हो चुका था!

उन्होंने सोली जे. सोराबजी के लिए रिसर्च और तैयारी के महत्व को याद किया, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी टीम के सदस्य उचित प्रक्रिया का पालन करें और कानून के शासन में उनका विश्वास बनाए रखें। असहमति के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर उनका लेखन ग्रीस में लोकतंत्र की नींव पर ही आधारित था। ग्रीस में लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल यही था कि हर नागरिक को जीवन के हर क्षेत्र में भाग लेना चाहिए, अपनी चिंताओं को व्यक्त करना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। प्रत्येक नागरिक से यह उम्मीद थी कि वह अपने विचार व्यक्त करें और समाज में उन्हें स्पष्ट करें। अगर समाज में एक भी असहमति की आवाज है, तो भले ही आप उससे सहमत न हों, लेकिन उस आवाज को सुने जाने का अधिकार है और यही स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार की नींव है।"

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार, प्रोफेसर दाबिरु श्रीधर पटनायक ने समारोह में कहा कि सोली जे. सोराबजी एक महान न्यायविद (ग्रेट ज्यूरिस्ट) थे, जिन्होंने भारत में कानून के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रोफेसर पटनायक ने आगे कहा, उन्होंने कानून की रक्षा के लिए अपनी विद्या और ज्ञान का उपयोग किया। ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी को सोली जे. सोराबजी की पर्सनल लाइब्रेरी से पुस्तकों का कलेक्शन प्राप्त करने पर गर्व है। मैं आपको आमंत्रित करता हूं कि आप उनके कलेक्शन को देखें और विधि के इस महान विद्वान की व्यापक रुचियों को समझें, जो न केवल कानून के अध्ययन और व्याख्या में अनुभवी थे, बल्कि विश्व के बारे में भी गहरी समझ रखते थे।

जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के कार्यकारी डीन प्रोफेसर एसजी श्रीजीत ने सोली जे. सोराबजी के प्रति युवा विधि छात्रों के सम्मान के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि हममें से बहुतों को उन्हें जानने या उनके साथ उनके चैंबर में काम करने का सौभाग्य नहीं मिला, लेकिन हमने उनके लिखे हुए और कानून की व्याख्या को पढ़ा। एक न्यायविद (ज्यूरिस्ट), कानूनी विशेषज्ञ और भारत के अटॉर्नी जनरल के रूप में लंबे समय तक उनकी विरासत बनी रहेगी। मैं उन्हें एक पाठक के रूप में भी देखता हूं, जिनकी पुस्तकों का कलेक्शन और विचार उनकी सोच और दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

इस मौके पर 2024 सोली जे. सोराबजी एंडोमेंट अवॉर्ड और स्कॉलरशिप के प्राप्तकर्ता की घोषणा भी की गई। यह अवॉर्ड और स्कॉलरशिप मानवाधिकार कानून और सिद्धांत के क्षेत्र में एक योग्य छात्र को हर साल दी जाती है, जिसे जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में स्नातक कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में ऑफर किया जाता है। इस साल यह पुरस्कार जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल की खुशी दोशी को दिया गया।

सोली जे. सोराबजी का जन्म 1930 में बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज और गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में पढ़ाई की और 1953 में बार में भर्ती हुए। गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में, उन्हें रोमन कानून और न्यायशास्त्र में किनलोच फोर्ब्स गोल्ड मेडल (1952) से सम्मानित किया गया था।

1971 में सोराबजी को बॉम्बे हाईकोर्ट का वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किया गया। उन्होंने 1977 से 1980 तक भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी कार्य किया। उन्हें 9 दिसंबर 1989 से 2 दिसंबर 1990 तक और उसके बाद 7 अप्रैल 1998 को भारत का अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया गया, वे इस पद पर 2004 तक रहे। मार्च 2002 में सोली जे. सोराबजी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

अपने पूरे करियर के दौरान सोली पब्लिक लॉ और अंतर्राष्ट्रीय लॉ के प्रति समर्पित रहे, विशेष रूप से मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के संबंध में। सोली सोराबजी को संयुक्त राष्ट्र ने नाइजीरिया के लिए स्पेशल रिपोर्टेयर (विशेष प्रतिवेदक) नियुक्त किया। बाद में उन्हें 1998 से 2004 तक मानवाधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र उप आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने 1998 से अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव की रोकथाम और संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र उप आयोग के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। सोली सोराबजी ने हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।

सोली सोराबजी भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, भारत और पाकिस्तान के बीच एटलांटिक मामले को लेकर हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में पेश हुए थे।

--आईएएनएस

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Web Title-Former CJI UU Lalit said, Right to dissent is the hallmark of democracy
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