सिनेमा अभिव्यक्ति का वो माध्यम है जो दर्शकों पर अपनी गहरी छाप छोडता है। कई बार कथाकार अपनी कलम से ऐसे पात्रों की रचना कर देते हैं जो दर्शकों के दिमाग में एक अमिट छाप छोड देते हैं। फिल्म के पात्रों का दर्शकों के साथ सीधा संबंध होता है और दर्शक फिल्म देखने के बाद उन भूमिकाओं को याद करते हुए सिनेमाघरों से बाहर निकलता है। 100 साल से ज्यादा पुराने भारतीय सिनेमा इतिहास में यूं तो कई ऐसे किरदार हैं जिन्हें दर्शक भूल नहीं पाये हैं लेकिन हम आज आपको 15 ऐसे पात्रों की याद दिलाना चाहेंगे जिन्होंने दर्शकों को जीवन में महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को दिया है। आइये डालते हैं एक नजर इन किरदारों/पात्रों पर—
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बन्नी (रणबीर कपूर) ये जवानी है दीवानी
करण
जौहर के बैनर तले बनी इस फिल्म में रणबीर कपूर ने ‘बन्नी’ नामक युवक की
भूमिका निभाई थी। इस किरदार की सबसे बडी विशेषता इसकी दृढता थी। वह जिन्दगी
को जीने के सपने देखता था और उन्हीं पर दृढ रहता था। जीवन में आने वाली
कठिनाइयों और असफलताओं के बावजूद वह जो सोचता था, चाहता था उसका पीछा करता
था और सफल होता। इस पात्र ने युवाओं को बहुत प्रभावित किया।
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लैला (कैटरीना कैफ) जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा
जोया
अख्तर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में कैटरीना कैफ ने ‘लैला’ नामक युवती
की भूमिका अदा की, जिसके लिए उनकी काफी सराहना की गई थी। आशावादी, आधुनिक,
मजेदार और स्वतंत्र—यही लैला है। वह वर्तमान में रहती है, वह जीवन को
प्यार करती है, जैसा कि वह जानती है कि यह सुंदर है और दूसरों को इसका
अहसास कराती है। उसे अपने द्वारा किये गये कृत्यों के लिए कोई पछतावा नहीं
है।
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रानी (कंगना रनौत) क्वीन
विकास बहल ने एक ऐसे पात्र को रचा जिसने
महिलाओं में जबरदस्त आत्मविश्वास जगाया। उन्हें इस बात का अहसास कराया कि
वे चाहें तो जिन्दगी में बहुत कुछ कर सकती हैं। सिर्फ अपने हौंसले को मजबूत
करना है। एक डरपोक लडकी से एक आश्वस्त महिला बनने की साहसी कथा थी क्वीन।
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रोमिला दत्ता (प्रीति जिंटा) लक्ष्य
रोमिला
दत्ता के रूप में एक आकांक्षापूर्ण पत्रकार का किरदार, जो महिलाओं को
प्रोत्साहन देता है। इस किरदार का कहना है अपने लक्ष्य को मत भूलो, इसके
रास्ते में आने वाली बाधाओं से डरो नहीं बल्कि उन्हें दूर करो और अपना
लक्ष्य अर्जित करो।
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करण शेरगिल (ऋतिक रोशन) लक्ष्य
फरहान अख्तर
निर्देशित फिल्म का यह किरदार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम
क्योंकर ‘मैं ऐसा क्यूं हूं’ कहते हैं। इस पात्र ने अपनी महत्त्वाकांक्षा
को पालने का तरीका दिखाया। इसने इस बात को सिखाया कि किस तरह से हम अपनी
महत्त्वाकांक्षा का पालन कर सकते हैं। चौबीसों घंटे अपनी महत्त्वाकांक्षा
को सामने रखो और उसे पाने के लिए प्रयासरत रहो, एक न एक दिन आप उसे प्राप्त
कर ही लेंगे। फरहान की कलम से निकला बेहतरीन पात्र जो भुलाये नहीं भूलता।
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गीत (करीना कपूर खान) जब वी मेट
गुजरे
और आने वाले पल से ज्यादा अपने वर्तमान पल को जीयो। इस पल को जितना खुशी
से बिता सकते हो बिताओ यही जिन्दगी है। आने वाला पल कैसा होगा और जो बीत
गया वो कैसा था, उस पर विचार करने या अफसोस करने से अच्छा है जो चल रहा है
उसे जियो। इम्तियाज अली की फिल्म जब वी मेट की गीत का किरदार यही संदेश
देता है। यह कहता है हमारे पास हमारे भविष्य पर कोई नियंत्रण नहीं है,
इसलिए सबसे बेहतर है वो लम्हा जिसमें हम रह रहे हैं, उसके लिए हमें कोई
पछतावा नहीं होना चाहिए।
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शिवानी शिवाजी राय (रानी मुखर्जी) मर्दानी
प्रदीप
सरकार की कलम से निकला सशक्त किरदार, जिसने महिलाओं को इस बात का अहसास
कराया कि वास्तव में वे क्या करने में सक्षम हैं। रानी मुखर्जी को
‘मर्दानी’ में शिवानी शिवाजी राय नामक एक मजबूत महिला पुलिस अधिकारी के रूप
में चित्रित किया गया जो शहर में तस्करों द्वारा पैदा किए गए खतरों के
बावजूद भयभीत नहीं है। फिल्म में उनकी भूमिका ने महिलाओं के असली साहस का
प्रदर्शन किया और इंगित किया कि वास्तव में महिलाएं क्या कर सकती हैं।
शानदार भूमिका, जानदार किरदार।
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जहांगीर खान (डिअर जिन्दगी) शाहरुख खान
गौरी
शिंदे का एक सशक्त पात्र, जिसने जिन्दगी की जटिल अवधारणाओं को बेहद सरल
तरीके से समझाया, जिसने हमें जीवन को पूरी तरह से एक अलग परिप्रेक्ष्य के
साथ दिखाया, समझाया। हर इंसान अपनी उलझी हुई जिन्दगी को सुलझाने, समझने के
लिए एक ऐसा सलाहकार मनोविश्लेषक पसन्द करेगा जो दवाईयां नहीं बल्कि सलाह से
ही जिन्दगी को बदल देता है। गौरी शिंदे और शाहरुख की जितना प्रशंसा की
जाये उतनी कम है।
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आयशा (वेकअप सिड) कोंकणा सेन
अपनी आकांक्षाओं और
सपनों को पूरा करने के लिए छोटे शहरों, कस्बों और गांवों से बडे शहरों में
इतने सारे युवा आते हैं। लेकिन उनमें से कितने वास्तव में क्या हासिल करते
हैं यही कहानी थी वेकअप सिड की और ऐसा ही किरदार था आयशा का जिसे कोंकणा
सेन ने निभाया था। वेकअप सिड में आयशा बाधाओं के बावजूद अपने रास्ते से
नहीं हटती। उच्च आत्मसम्मान के साथ केंन्द्रित, नियंत्रित और परिपक्व
किरदार था यह। इसे कोंकणा ने पूरी शिद्दत के साथ परदे पर उतारा। किरदार ने
युवतियों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि असंभव कुछ भी नहीं है, अपने
आत्मसम्मान को मजबूत रखते हुए हर बाधा से पार पायी जा सकती है।
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विद्या बागची (विद्या बालन) कहानी
विद्या
बालन द्वारा निभाई गई सबसे प्रतिष्ठित भूमिकाओं में से एक। सुजॉय घोष
निर्देशित कहानी की विद्या बागची को कोई नहीं भूल सकता। एक आतंकवादी हमले
में अपने पति की अपरंपरागत मृत्यु को स्वीकारने के स्थान पर उनके विरुद्ध
आवाज बुलंद करती यह भूमिका अपने आप में विलक्षण है। अपने पति के हत्यारों
को सामने लाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से ‘जाल’ बुनती है और अंत में मां
दुर्गा की तरह उनका वध करती है। जितना किरदार सशक्त था,ख्उतना ही उसका
प्रस्तुतीकरण मजबूत था। महिलाओं को मजबूत बनने का संदेश देती यह
भूमिका/किरदार दर्शक भूला नहीं पाता।
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मिशेल मैकनेली (रानी मुखर्जी) ब्लैक
संजय
लीला भंसाली की सर्वाधिक पुरस्कृत फिल्म ‘ब्लैक’ का दोहरी विकलांगता से
ग्रस्त एक ऐसा किरदार जिसे जेहन से निकालना असंभव है। याद आते ही आंखों की
कोर पर गीलेपन का अहसास कराता यह पात्र हमें विकलांगता का दृढ निश्चय और
नैतिकता के बूते लडने की शक्ति का अहसास कराता है। दृष्टिहीन और शारीरिक
विकलांगता दो ऐसे पहलू जिनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते, किस से ऐसे
व्यक्ति जीते हैं इसका ज्वलंत उदाहरण है यह किरदार। रानी मुखर्जी और
अमिताभ बच्चन की भूमिका यादों के झरोखे में हमेशा के लिए समायी हुई हैं।
हेलन केलर की जिन्दगी पर आधारित संजय लीला भंसाली के इस पात्र को रानी
मुखर्जी के साथ ही बाल कलाकार आयशा कपूर ने शिद्दत के साथ परदे पर उतारा।
वर्ष 2005 में प्रदर्शित हुई ‘ब्लैक’ भारत की दूसरी ऐसी फिल्म थी, जिसने
वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक कमाई की थी। इस फिल्म ने बेस्ट फिल्म का
फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने के साथ ही इसके किरदारों के लिए अमिताभ बच्चन ने
53वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के दौरान अपनी जिन्दगी का दूसरा राष्ट्रीय
फिल्म पुरस्कार जीतने के साथ ही बेस्ट एक्टर का चौथा फिल्मफेयर पुरस्कार और
दूसरा बेस्ट एक्टर क्रिटिक अवार्ड जीता। रानी मुखर्जी को अपने करियर का
दूसरा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार इसी फिल्म के लिए मिला।
टाइम मैगजीन ने इसे वर्ष 2005 की वैश्विक स्तर की सर्वश्रेष्ठ 10 फिल्मों
में शामिल किया।
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कबीर खान (चक दे इंडिया) शाहरुख खान
सिनेमाई परदे पर
सबसे प्रेरणादायक वक्तव्य देने वाले कबीर खान, भारतीय हॉकी टीम के कोच का
एक ऐसा किरदार जिसने जो भी शब्द बोले वे प्रेरणादायक बने। रूढिवादिता की
जंजीरों में जकडे समाज को दिया गया सशक्त जवाब, जातिगत आरोपों पर जबरदस्त
कुठाराघात, जिसने सिखाया और संदेश दिया कि हर मुसलमान गद्दार नहीं होता।
कबीर खान के रूप में शाहरुख खान का अविस्मरणीय अभिनय, इतिहास के झरोखे में
जब भी शाहरुख खान को याद किया जाएगा उनका यह किरदार जेहन में आयेगा।
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भुवन (आमिर खान) लगान
आमिर
खान निर्मित और आशुतोष गोवारिकर निर्देशित ‘लगान’ ने विश्वास और अति
विश्वास के बीच अंतर को प्रमुखता से दर्शाया। भुवन को विश्वास था कि वह
अपने दोस्तों के साथ ब्रिटिश शासक की चुनौती का सामना करने में सफल होगा,
वहीं ब्रिटिश शासक को अतिविश्वास था कि भुवन इस चुनौती में हार जाएगा।
विश्वास और अतिविश्वास की बारीक रेखा को आशुतोष और आमिर ने बेहद खूबसूरती
से परदे पर उतारा। सिने इतिहास की एक और कालजयी प्रस्तुति और किरदार।
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शशि गोडबोले (इंग्लिश विंग्लिश) श्रीदेवी
इस
युग में सहकर्मी के दबाव में वृद्धि हुई है, खासकर सामाजिक मीडिया हमारे
जीवन पर नियंत्रण कर रहा है। गौरी शिंदे का यह किरदार (शशि गोडबोले), जिसे
एक खोल में रहने को विवश कर दिया जाता है, अपनी बाधाओं और भय से मुक्त होता
है। अंग्रेजी ज्ञान नहीं होने के कारण अपने बच्चों की पेरेंट्स मीटिंग में
भाग न लेने वाली महिला के आत्मविश्वासी महिला बनने का रोचक किरदार है। एक
ऐसा किरदार जो अपने आत्मविश्वास को जागृत करता है और अब वह अंग्रेजी बोलने
वाले व्यक्तियों से भयभीत नहीं होता है। इस पात्र ने उन घरेलू महिलाओं को
जबरदस्त समर्थन व विश्वास दिलाया जो यह मानती थीं कि उनकी भूमिका सिर्फ और
सिर्फ रोटी, चूल्हा और कपडे तक सिमट गई है।
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हरप्रीत सिंह बेदी (रणबीर कपूर) रॉकेट सिंह सेल्समेन ऑफ द ईयर
हिन्दी
सिनेमा की सबसे अंडररेटेड फिल्मों में से एक, रणबीर कपूर द्वारा निभाया
गया यह किरदार। रॉकेट सिंह कंपनी में सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी बनने की
जद्दोजहद, जो उसके चरित्र को निश्चित रूप से हमें गंभीर जीवन के लक्ष्यों
की ओर इंगित करता है।
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