सोशल मीडिया का इस्तेमाल अफवाहें पैदा करने में किया जाता है इसका एक और उदाहरण पिछले शनिवार से मिल रहा है जहां पर बाहुबली-2 की एक तस्वीर के साथ दूसरी तस्वीर पोस्ट की जा रही है और यह पूछा जा रहा है कि आखिरकार बाहुबली का धर्म क्या है? सुनने में यह भले ही अटपटा लग रहा हो लेकिन इस पोस्टर को बहुत ज्यादा देखा जा रहा है। इस पोस्टर के जरिये यह सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है कि बाहुबली पूरी तरह से हिंदुओं की फिल्म है। जबकि वास्तविकता यह है कि फिल्म का किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह महज एक काल्पनिक कथा है, जिसमें हिंदुओं के रीति रिवाजों, परम्पराओं और धर्म का गुणगान किया गया है। फिल्म के गीतों में शिव भक्ति का जिक्र है।
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फिल्मी बीट के अनुसार अभी तक फिल्म को लेकर केवल तेलुगू सिनेमा और बॉलीवुड
में जंग छिडी थी लेकिन अब ये जंग बडी हो चुकी है और हिंदू - मुस्लिम धर्म
की लडाई बनती जा रही है। हालांकि एसएस राजामौली भगवान पर विश्वास नहीं करते
और नास्तिक हैं लेकिन उनकी फिल्म अब हिंदू धर्म और सभ्यता का प्रतीक बन गई
है। वहीं दूसरी तरफ, अब लोगों ने जमकर शाहरूख-सलमान-आमिर का मजाक उडाना
शुरू कर दिया है। इन हिंदू संस्कृति के रक्षकोंं ने सीधा-सीधा ‘पीके’ पर
निशाना साधते हुए कहा है कि हिदू धर्म का मजाक उडाए बिना भी फिल्में बन
सकती हैं। ये बाहुबली से सीखना चाहिए। वहीं अक्षय कुमार की ओह माय गॉड पर
भी निशाना साधा गया और कहा गया कि भगवान के साथ चलकर भी अच्छी फिल्में बनाई
जा सकती हैं।
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बाहुबली को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि यह फिल्म
मुस्लिम दर्शकों को पसन्द नहीं आ रही है, क्योंकि यह फिल्म भव्य तरीके से
हिंदू धर्म का प्रचार करती है। वहीं ट्विटर पर लोगों का ये भी कहना है कि
जिन लोगों को बाहुबली पसंद नहीं आई, उनके पास लिपस्टिक अंडर माय बुरखा जैसी
फिल्मों के बारे में अच्छी खासी बातें होंगी कहने के लिए। सोचने वाले यह
सोच कर हैरान हैं कि कैसे और कितनी आसानी से फिल्म को धर्म से जोड दिया गया
है जबकि फिल्म केवल अमर चित्र कथाओं पर बनी हुई एक काल्पनिक कहानी है।
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अब
बाहुबली हिंदू धर्म रक्षकों की फिल्म बन चुकी है और कोई भी अगर फिल्म के
बारे में कुछ भी गलत कह रहा है या लिख रहा है, वो जबर्दस्ती की धर्म
राजनीति का शिकार हो रहा है। उसे हिंदू सभ्यता का खूनी माना जा रहा है और
धर्म का दुश्मन। शिवगामिनी और देवसेना को हिंदू औरतों का उत्तम प्रतीक
माना जा रहा है। हिंदू औरतों को कैसे रहना चाहिए यह बाहुबली सिखा रही है।
शिवगामिनी और देवसेना को लेकर जो कहा जा रहा है उसके साथ उन दृश्यों का
जिक्र किया जा रहा है जिनसे स्पष्ट होता है कि वे हिन्दू हैं।
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उदाहरण
के लिए बाहुबली की मृत्यु के बाद शिवगामिनी का देवसेना के पैर छूना,
देवसेना का कृष्ण की उपासना करना, उसके लिए गीत गाना। माहेश्मति की
राज्यसभा में बार-बार देवसेना द्वारा पुराणों और शास्त्रों का जिक्र करना
ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो इस बात को सिद्ध करते हैं बाहुबली पूरी तरह से
हिन्दू धर्म की पुनस्र्थापना का प्रतीक है। इस फिल्म में हिन्दू चीजों का
बखूबी प्रयोग किया गया है। हालांकि इसके पहले भाग से ही यह झलक रहा था, तब
क्यों नहीं इसके धर्म को लेकर विवाद पैदा हुआ था और अब क्योंकर इसके धर्म
को लेकर विवाद पैदा हो रहा है। नायक द्वारा शिवलिंग को उठाना और उसे दूसरे
स्थान पर स्थापित करना, फिर उसका जलाभिषेक करना, माहेश्मती में हाथी के
भगवान की पूजा होना और देवसेना के राज्य में कृष्ण की पूजा होना, ये कुछ
ऐसे दृश्य हैं जिनसे यह स्पष्ट हुआ था कि फिल्म हिन्दू धर्म को
पुनस्र्थापित कर रही है।
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लेखक आनंद नीलकंठन का कहना है कि फिल्म
में जिस कालखण्ड का जिक्र किया गया है उस समय हिंदु धर्म को वापस स्थापित
किया जा रहा था और इसलिए यह चीजें फिल्म से जुडती चली गई हैं। एक फिल्मकार
की मानें तो गौर से देखने पर बाहुबली काफी हद तक महाभारत जैसी लगेगी जहां
प्रभास का कैरेक्टर किसी एक पांडव का माना जा सकता है। ऐसे में किसी को भी
हैरान नहीं होना चाहिए कि क्यों फिल्म को हिंदू फिल्म कहा जा रहा है।
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एक
तरफ जहां फिल्म अपने धर्म को लेकर विवादों में आ रही है वहीं दूसरी ओर इस
फिल्म को मिले राष्ट्रीय पुरस्कार पर अब सवाल उठाये जा रहे हैं। कहा जा रहा
है कि एक अधूरी फिल्म को क्यों कर राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। कुछ लोगों
की माने तो बाहुबली भाजपा और हिंदुओं की फिल्म है। ज्ञातव्य है कि
‘बाहुबली’ के लिए निर्देशक एस.एस.राजामौली को नेशनल अवार्ड दिया गया था।
खैर जो कुछ हो रहा है उससे एक बात तो साफ है कि यह हिंदुत्ववादी एंगल फिल्म
को अच्छी खासी पब्लिसिटी दे रहा है, जिसके चलते फिल्म देखने वालों की
तादाद बढती जा रही है। बाहुबली-2 की ताबडतोड कमाई के पीछे भी इस वजह को बडा
माना जा रहा है ना कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा का जवाब जानना।
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