अमिताभ श्रीवास्तव, नई दिल्ली। यूपी विधानसभा चुनाव
की लड़ाई दो मोर्चों पर लड़ी जा रही है। जमीनी लड़ाई का तो सबको पता है लेकिन
जिसके बारे में ज्यादा नहीं मालूम है वो है वर्चुअल लड़ाई। इस लड़ाई में किसकी
क्या तैयारी है, कौन से हथियार इस्तेमाल किए जा रहे हैं और
पर्दे के पीछे कौन भूमिका निभा रहा है, ये ज्यादातर लोगों को
नहीं मालूम।
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पिछले पांच सालों में
जिस तरह से अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग चुनावों में बढ़ा है उतना पहले नहीं था।
राजनीतिक दल केवल सभाओं, रैलियों,
विकास रथों और प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ बैनर पोस्टर पर आधारित होते
थे लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने जिस तकनीक पर जोर दिया
वो सभी को मालूम है। ऐसे ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने तो उसमें
सोशल मीडिया और तकनीक का खेल कम नहीं रहा। बिहार में नीतिश कुमार के जीतने के आसार
कम लगने पर भी उनकी जीत हासिल हुई तो प्रशांत कुमार का नाम चर्चा में आया जो पर्दे
के पीछे तकनीक और डिजिटल मीडिया और डाटा के सहारे काम कर रहे थे।
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जाहिर है जिस तरह से
डिजिटल मीडिया का तेजी से विस्तार हो रहा है और थ्री डी तकनीक के साथ ही कई प्रचार
प्रसार माध्यम सामने आते जा रहे हैं, राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल अपनी छवि बनाने या फिर
विरोधी दलों की छवि बिगाड़ने में करने लगे हैं। इस बार यूपी विधानसभा चुनाव जितना
धरातल पर लड़ा जा रहा है उतनी ही डिजिटल और सोशल मीडिया पर। चारों राजनीतिक दलों
में बीजेपी,समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तीनों इस विधा पर
पूरा फोकस किए हैं जबकि बीएसपी इस मामले में सबसे पीछे है। सोशल मीडिया खास तौर से
फेसबुक और ट्विटर के साथ ही यू ट्यूब का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है। यही नहीं न्यूज बेवसाइट पर भी नजर रखी जा रही है कि किस दल की क्या
गतिविधियां हैं और कितना कवरेज हो रहा है। कौन सी खबर को प्रमुखता से लोग पसंद कर
रहे हैं या फिर उस पर कितना रियेक्ट कर रहे हैं।
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हाल के दिनों में
समाचार माध्यमों और सोशल प्लेटफॉर्म पर नोटबंदी सुर्खियों में हैं और लोग अब तक
उससे नहीं उबर पा रहे हैं। बीजेपी की ओर से इसे काला धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक
के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है तो विपक्षी दल लोगों की परेशानी को मुद्दा बनाए
हुए हैं। इसके पक्ष और विपक्ष में लगातार बयान पोस्ट किए जा रहे हैं और उस पर सोशल
मीडिया पर गर्मागर्म बहस भी जारी है। अभी तक इस मुद्दे पर जो जनमानस नजर आ रहा है
उससे बीजेपी बचाव और सफाई की मुद्रा में है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह
चुके हैं कि 31 दिसंबर तक हालात सामान्य हो जाएंगे और इसके जो रिजल्ट आएंगे, वो जनता को खुश करने वाले
होंगे। दूसरी तरफ विपक्षी दल भी इस पर नजर बनाए हुए हैं कि यदि 31 दिसंबर तक यही
स्थिति रही तो जनता का गुस्सा और बढ़ेगा, जो उनके लिए
फायदेमंद होगा।
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दूसरा उदाहरण बहराइच की मोदी जी की सभा का है। मौसम अनुकूल न होने की वजह से
प्रधानमंत्री सभा स्थल तक नहीं पहुंच सके और उन्हें मोबाइल के जरिए सभा को संबोधित
करना पड़ा। इसको लेकर सोशल मीडिया पर खासी आलोचना के दौर चले। इधर बीजेपी ने तकनीक
का इस्तेमाल कर जनता तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की तो उधर दूसरे दलों के
समर्थकों ने बहराइच की सभा में खाली पड़ी कुर्सियों से लेकर थाइलेंड से आए फूलों
को मुद्दा बनाया, नोटबंदी को लेकर चल रही दिक्कतों पर जोक तो चले ही।इसमें कोई शक नहीं,
डिजिटल वॉर में बीजेपी और समाजवादी पार्टी बाकी दो दलों कांग्रेस और
बसपा से आगे निकलते दिख रहे हैं। बीजेपी और सपा इस फ्रंट पर कोई कसर नहीं छोड़ना
चाहते। इसके लिए दोनों दलों की टीम में वो सारे किरदार है जो इस लड़ाई को रोचक
बनाने के साथ ही तकनीक का पूरा इस्तेमाल करने से नहीं चूकना चाहते।
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