जयपुर। कार्तिक माह में पवित्र माने जानी वाली देवउठनी एकादशी पर गुरुवार को छोटी काशी में धर्म की ब्यार बही। शहर में श्रद्धा व उल्लास छाया रहा। एक ओर जहां कई श्रद्धालुओं ने चार माह से विश्राम कर रहे भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें जगाने की परंपरा निभाई, वहीं शाम को घर घर में तुलसी विवाह की रस्म निभाई गई। घर के मुखिया व महिलाएं सुबह से तुलसीजी का मंडप सजाने के लिए गन्नों की खरीदी में व्यस्त नजर आए ,वहीं युवतियों ने दोपहर बाद अपने घर आंगन को रंगोली से सजाया। इसके बाद शाम ढलते ही तुलसी के पौधे की पूजा अर्चना करके तुलसी का ब्याह भगवान विष्णु स्वरूपा शालिग्राम से रचाने का सिलसिला शुरू हुआ जो करीब तीन घंटे तक चलता रहा। तुलसी का ब्याह रचाने के बाद बच्चों ने पटाखे फोडक़र खुशियां मनाई। तुलसी पूजा को छोटी दीवाली के रूप में भी मनाया जाता है। इसी के साथ शादी ब्याह के मुहूर्तों की शुरूआत हो गई।
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शालिग्राम संग ब्याही तुलसी
शहर के आराध्य देव गोविंद देवजी मंदिर में
देवउठनी एकादशी पर धूप झांकी के बगाद शालिग्रामजी की पूजा अर्चना की गई।
मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी ने बताया कि महंत अजंन कुमार गोस्वामी के
सानिध्य में शालिग्रामजी को चांदी के रथ में विराजमान की ,उन्हें तुलसी
मंच तक लाया गया। शालिग्रामजी व तुलसी का विवाह हुआ। मंदिर परिसर में मंगला
झांकी से श्रद्धालुओं की भीड़ रही। चौड़ा रास्ता स्थित श्री राधादामोदर जी
में शाम को दमोदर स्वरुप शालिग्रामजी को जगमोहन में लाया गया। यहां
पंचामृत अभिषेक के बाद श्रृंगार आरती की गई। इसके बाद शालिग्रामजी का तुलसी
से विवाह कराया गया। चांदनी चौक स्थित श्री आनंदकृष्ण बिहारी मंदिर में
शंखनाद से ठाकुरजी को जगाया गया। पुजारी मातृ प्रसाद शर्मा ने बताया कि इस
अवसर भगवान की मनोरम झांकी सजाई गई। गलता गेट स्थित गीता गायत्री गणेश में
मदिर में घंटे घडियाल बजाकर देवों को उठाया गया। प्रवक्ता राजकुमार
चतुर्वेदी ने बताया कि माता गायत्री, माता दुर्गा , बाबा श्याम एवं भगवान
गणेश का विभिन्न प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक कर नतून पोशाक धरान कराकर
भगवान को अन्न्कूट का भोग लगाकर भक्तों को पंगत प्रसादी दी गई। बड़ी चौपड़
स्थित लक्ष्मीनारायणजी मंदिर में महंत परुषोत्तम भारती के सानिध्य में
ठाकुर जी का अभिषेक कर नूतन पोशाक धारण कराई गई। बाद में तुलसी-शालिग्रामजी
का विवाह कराया गया।
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किया गलता में स्नान
एकादशी के अवसर पर कई
श्रद्धालुओं ने गलता जी में डूबकी लगाई। कार्तिक स्नान करने वाली महिलाएं
गलता में स्नान करने पहुंची इसके बाद मंदिरों में दीपदाप किया। वहीं बंदरों
को चना , मुंगफली ,गायों को हरा चारा एवं गरीब नर की सेवा कर पूण्य का
अर्जन किया।
बजी शहनाई
स्वयंसिद्ध मुहूर्त में से एक देव
प्रबोधिनी ;देवउठनीद्ध एकादशी पर शहर में एकल एवं सामुहिक विवाह समारोह की
धूम रही। शहर की सडक़ों पर घराती और बाराती नाच गाकर अपनी खुशियों का इजहार
कर रहे थे।
भगवान विष्णु व सती वृंदा की कथा
पं राजकुमार
चतुर्वेदी के अनुसार शास्त्रों के अनुसार जलंधर की पत्नी वृंदा ;तुलसीद्ध
के सतीत्व के चलते भगवान शंकर भी जलंधर को परास्त नहीं कर सके। देवताओं की
प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने छल.कपट से वृंदा के पति का रूप धारण किया और
वृंदा के सतीत्व को भंग किया जिससे जलंधर की शक्ति कम हो गई और वह युद्ध
में मारा गया। विष्णु के छल का जब वृंदा को पता चला तो उसने भगवान विष्णु
को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। प्रायश्चित स्वरूप भगवान विष्णु ने तुलसी
से विवाह किया। कार्तिक शुक्ल एकादशी को विवाह रचाने से घर.घर में वृंदा
;तुलसीद्ध व पत्थर रूपी शालिग्राम ;भगवान विष्णुद्ध के विवाह की परंपरा
शुरू हो गई। यह भी मान्यता है कि तुलसी का विवाह रचाने से कन्यादान जैसा
पुण्य मिलता है।
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