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माता-पिता की जिद ने चिंकी को खेलों में दिया भविष्य

नई दिल्ली। भोपाल की रहने वाली निशानेबाज चिंकी यादव ने कतर में खेली गई एशियाई चैम्पियनशिप में भारत को ओलम्पिक कोटा दिलाया। चिंकी ने 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में शानदार प्रदर्शन करते हुए 588 का स्कोर किया और फाइनल में रजत पदक जीत अगले साल टोक्यो ओलम्पिक-2020 का टिकट कटाया। अगर तकरीबन 10 साल पहले की बात की जाए तो चिंकी को यह तक नहीं पता था कि वह किस खेल में अपने हाथ आजमाएं।

शायद किस्मत चिंकी को निशानेबाजी में लाना चाहती थी और इसलिए माली हालत ठीक न होने के बाद भी उन्होंने इस खेल को चुना और आज वह भारत के लिए बड़ी सफलता अर्जित कर स्वदेश लौट चुकी हैं।

चिंकी के पिता मेहताब सिंह यादव भोपाल में मध्य प्रदेश सरकार की खेल अकादमी में इलेक्ट्रीशियन के पद पर कार्यरत हैं और उनका निवास भी वहीं हैं। यहीं से चिंकी के खेल में आगे बढ़ने की कहानी शुरू होती है।

चिकी ने आईएएनएस से कहा, "मैं जहां रहती हूं वो जगह अकादमी कैम्पस में ही है। मेरे पिता वहीं पर इलेक्ट्रीशिन का काम करते हैं। वहां खेल होते रहते हैं तो मैं कुछ न कुछ खेला करती थी। मुझे पता था कि वहां निशानेबाजी है लेकिन मैंने ज्यादा कुछ इस खेल के बारे में पता नहीं किया था क्योंकि यह काफी महंगा खेल है और इसकी एक गोली भी खरीदना हमारे लिए मुश्किल था। इसलिए मैंने कुछ इस खेल के बारे में पता नहीं किया क्योंकि अगर करती तो शायद रूचि जाग जाती।"

चिकी ने निशानेबाजी से पहले जिम्नास्टिक, बैडमिंटन जैसे खेल भी खेले। उन्होंने कहा, "तब मैं काफी छोटी हुआ करती थी इसलिए ज्यादा अच्छे से याद नहीं है लेकिन मुझे इतना पता है कि मैं जिम्नास्टिक किया करती थी। तीन साल तक मैंने वो खेल खेला। इसके बाद मैंने एक-दो साल बैडमिंटन खेला, लेकिन यह निरंतर नहीं खेलती थी। इसके बाद शायद मैंने स्नूकर खेला।"

चिकी को खेल की दुनिया से रूबरू उनके परिवार ने ही कराया क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि उनकी बेटी खेले और एक्टीव रहे।

उन्होंने कहा, "मुझे अच्छे से याद है, मेरे मम्मी पापा कहा करते थे कि जाओ खेलो, सभी बच्चों के साथ मिलकर खेलो। एन्जॉय करो। मेरा माता-पिता हमेशा मुझे कुछ न कुछ करने के लिए कहते रहते थे और कहा करते थे कि तुम बैठो मत बस एक्टिव रहो।"

कई तरह के खेल खेलने के बाद चिकी शूंटिंग रेंज तक एक स्कीम के आने के बाद पहुंची जिसने उनकी निशानेबाजी के खर्चे की चिता को खत्म कर दिया और यहीं से उनके लंबे सफर की शुरुआत हुई।

उन्होंने कहा, "अकादमी में एक वेदप्रकाश सर हुआ करते थे और उन्होंने स्कीम निकाली थी कि अकादमी खिलाड़ी का पूरा खर्च उठाएगी। उस स्कीम के माध्यम से मैंने कोशिश की। मैंने 2012 से निशानेबाजी इसकी शुरुआत की थी।"

2013 से चिंकी ने 25 मिटर पिस्टल की शुरुआत की और लगतार पदक जीतना शुरू किए। 2015 से चिकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल रही हैं और कुल 10 पदक जीत चुकी हैं।

चिकी से जब ओलम्पिक कोटा हासिल करने पर उमड़ी भावनाओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मैं जितनी मेहनत करती थी अब मैं उससे डबल मेहनत करूंगी। फिलहाल मुझे यही खुशी थी कि मैंने देश के लिए कोटा लिया है। मुझे इस बात की बहुत खुशी हुई थी कि मैं अपने देश के लिए ओलम्पिक कोटा हासिल करने का कारण बनी।"

चिंकी के पिता को भी पता है कि उनकी बेटी ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। बेटी के घर लौटने पर पिता ने चिंकी से यही कहा था कि अब असल इम्तिहान शुरू हुआ है। चिंकी के पिता जानते हैं कि उनकी बेटी की जिंदगी में संघर्ष है और आगे भी रहेगा जिसमें वह हर कदम पर अपनी बेटी का साथ देने को तैयार हैं।

उनके पिता ने कहा, "अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है। आगे का सफर और कठिन है। करेगी संघर्ष और हम उसका पूरा साथ देंगे। ओलम्पिक कोटा के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि यह खेल है इसमें हार जीत होती रहती है। बच्चा हार भी जाए तो निराश नहीं होना चाहिए और जीत भी जाए तो ज्यादा खुशी भी जाहिर नहीं करनी चाहिए।"

पिता ने कहा, "माली हालत ठीक नहीं थी। लेकिन उसका साथ दिया है मैंने और आगे भी करूंगा क्योंकि संघर्ष में साथ नहीं देंगे तो बच्चा पिछड़ जाता है इसलिए जो कमी है पूरी करनी पड़ती है।"

चिंकी के पिता अपनी बेटी के बारे में कहते हैं कि वह गंभीर है और उसे शोर शराबा पसंद नहीं है।

उन्होंने कहा, "उसका सरल स्वाभाव है। वह गंभीर है और फोकस रहती है। उसे बच शोर शराबा नहीं चाहिए। वो शांत माहौल में रहने वाली है।"

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Web Title-Parental stubbornness gives Chinki a future in sports
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