इस बात का जवाब कोच बेहतर तरीके से दे सकते हैं। मनोज ने 2010 राष्ट्रमंडल
खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया था। इस बार उनके पास उस सफलता को दोहराने
का मौका था लेकिन वो इससे चूक गए। मनोज अगर इस बार स्वर्ण पदक जीत जाते तो
वे राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले मुक्केबाज बन
जाते। ये भी पढ़ें - आपके फेवरेट क्रिकेटर और उनकी लग्जरी कारें....
इस उपलब्धि से चूकने के बारे में मनोज ने कहा, इरादा तो इस बार फिर
स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रचने का था। कोशिश थी कि देश के लिए एक और स्वर्ण
जीतकर इतिहास रचूं, लेकिन भगवान को शायद कांस्य मंजूर था। वो कहते हैं ना
कि किस्मत से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता। मैं अपने प्रदर्शन से
खुश हूं। आगे और अच्छा करने की कोशिश रहेगी।
मनोज ने अपना अगला लक्ष्य आने
वाले एशियाई खेलों में अपने पदक का रंग बदलना बताया है। इससे पहले वो अपनी
कुछ चोटों का इलाज कराना चाहेंगे। उन्होंने कहा, कुछ पुरानी चोटें हैं।
मेरी ग्रोइन की चोट है पुरानी और कुछ हाथों में चोट थी इस बार वो अपने आप
ठीक हो जाती हैं और अपने आप उभर आती है। उसका इलाज अच्छे से करवाऊंगा और
एशियाई खेलों की तैयारी अच्छे से करूंगा।
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