इस घटना को बताते हुए कोच ने कहा, मैंने उनसे कहा कि नौकरी छोड़ो। हमारा
लक्ष्य स्वर्ण पदक है। एक बार वो जीत लिया, तो नौकरी भी मिलेगी और प्रशंसा
भी। इस सोच के साथ ही हमने प्रशिक्षण शुरू किया। कोच ने कहा, मनजीत के बेटे
का जन्म मार्च में हुआ था। लेकिन स्वर्ण पदक के लक्ष्य को ध्यान में रखकर
वह अपने बेटे को देखने भी नहीं गए। उन्हें इस बात का अफसोस था लेकिन वे
पहले स्वर्ण पदक जीतना चाहते थे। ये भी पढ़ें - शनाका ने गेंदबाजी नहीं बल्लेबाजी में किया कमाल, श्रीलंका जीता
इंटर स्टेट में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन
किया था। जहां उन्होंने एक मिनट और 46.24 सेकेंड का समय लिया था, लेकिन यह
काफी नहीं था क्योंकि हमारा लक्ष्य फिर भी स्वर्ण ही था। उसके दिमाग में एक
ही चीज घूमती थी और वह था स्वर्ण पदक। एशियाई खेलों में 800 मीटर की रेस
से पहले मनजीत को प्रेरित करने के बारे में बताते हुए अमरीश ने कहा, मैंने
मनजीत से कहा था कि रजत की तरफ मत देखना।
केवल एक चीज है स्वर्ण। यह हमें
तभी मिल सकता है कि हम रेस तेज करेंगे। मैंने कहा किकर्व के समय झटका मत
देना। फ्रंट पर अपनी ऊर्जा व्यय करनी है। 80 मीटर के उस दायरे में अपनी
सारी ताकत झोंकनी है, तभी स्वर्ण पदक मिलेगा। मनजीत ने 18वें एशियाई खेलों
में 1500 मीटर रेस के फाइनल में भी प्रवेश कर लिया है।
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