ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज बल्लेबाज ब्रेडमैन भी ध्यानचंद के खेल के मुरीद थे।
ब्रेडमैन ने उनसे कहा था कि आप तो क्रिकेट के रन की तरह गोल बनाते हैं।
उल्लेखनीय है कि उस दौर में ब्रेडमैन भी खूब रन बरसाते थे। जर्मन तानाशाह
हिटलर भी ध्यानचंद के खेल से काफी प्रभावित थे। हिटलर ने उन्हें जर्मन सेना
में पद के साथ उनकी तरफ से खेलने का ऑफर दिया था।
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हालांकि ध्यानचंद ने इसे
ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा कि मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारतीय
हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा। 3 दिसंबर 1979 को ध्यानचंद ने अंतिम सांस
ली। बाद में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। पिछले काफी समय से
पूर्व खिलाड़ी चाह रहे हैं कि उन्हें भारत रत्न दिया जाए।
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