नई दिल्ली। आईसीसी 1999 विश्व कप में दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे से हार के बाद भारत काफी मुश्किल संकट में फंस गया था और सुपर सिक्स में पहुंचने के लिए उसे केन्या के खिलाफ होने वाले मैच को हर हाल में जीतना जरूरी था। लेकिन वह भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ही थे, जिन्होंने अपने करियर के 22वें वनडे शतक की मदद से भारत को प्रेरणात्मक जीत दिलाई थी। यह शतक तेंदुलकर के लिए बेहद भावुक था। केन्या के खिलाफ खेले जाने वाले मैच से पहले जिम्बाब्वे के खिलाफ खेले गए मैच में वह नहीं खेले थे क्योंकि अपने पिता रमेश तेंदुलकर के अंतिम संस्कार के लिए वह स्वदेश लौट आए थे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
तेंदुलकर हालांकि चार दिन ही भारत में रहे और फिर इसके बाद वह फिर से इंग्लैंड लौट गए। इंग्लैंड लौटने के बाद केन्या के खिलाफ मैच के लिए वह मैदान पर उतरे।
तेंदुलकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, "भारत में चार दिन बिताने के बाद मैं केन्या के साथ मैच से पहले शाम को टीम से जुड़ने के लिए वापस इंग्लैंड गया।"
उन्होंने कहा था, "मुझे ऐसा दिखा जो मेरे पिता मुझसे चाहते थे और इसलिए मैंने इंग्लैंड जाकर विश्वकप के मैच खेलने का निर्णय लिया। मैं शतक जड़ने में कामयाब रहा जो मेरे करियर में संजोए गए कई शतकों में से एक है। मेरा ध्यान खेल पर नहीं था, मैंने यह शतक अपने पिता को समर्पित किया।"
तेंदुलकर ने उस मैच में तीसरे विकेट के लिए 237 रनों की साझेदारी की थी। मात्र 54 गेंदों पर ही अर्धशतक लगाने के बाद उन्होंने अगले 47 गेंदों पर ही शतक जड़ डाला था।
अंतिम गेंद पर छक्का लगाकर उन्होंने अपनी इस शानदार शतकीय पारी के सहारे भारत का स्कोर 329 रनों तक पहुंचा दिया था। तेंदुलकर ने इस मैच में 101 गेंदों पर 140 रनों की नाबाद पारी खेली थी, जिसमें 16 चौके और तीन छक्के शामिल थे।
भारत ने इस मैच को 94 रनों से जीता था। (आईएएनएस)
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