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अनिल कुंबले : जिनकी गति, उछाल और गुगली की जुगलबंदी ने लिखा था 'स्पिन' का नया चैप्टर

Anil Kumble: Whose speed, bounce and googly combination wrote a new chapter of spin - Cricket News in Hindi

नई दिल्ली । जब बात लेग स्पिन की आती है शेन वार्न की तस्वीर नजर आती है...दिमाग पर, इंटरनेट पर, अखबार के किसी पन्ने पर, या हर उस लेग स्पिनर को देखकर जिसकी गेंद बहुत टर्न होती है। जब गेंद टप्पा खाते ही अपने दिशा बदल लेती है...कभी बल्लेबाज से दूर, कभी उसके पास, कभी उसके विकेटों के अंदर...तब-तब शेन वार्न याद आते हैं। लेग स्पिन के ऐसे पर्याय थे शेन वार्न। 17 अक्टूबर 1970 को बेंगलुरु में जन्में अनिल कुंबले इसके बिल्कुल उलट थे। हां, कुंबले भी एक स्पिनर थे...एक लेग स्पिनर...भारत के महानतम लेग स्पिनर।
कुंबले की गेंदों में हर चीज परंपरा से उलट थी। गेंदों में तेजी ऐसी थी कि एक बार पाकिस्तान के कप्तान इंजमाम उल हक ने कहा था, "हमारी टीम को कुंबले को एक मीडियम पेसर मानकर ही खेलने वाली है।"

कुंबले वार्न की तरह हर पिच पर टर्न नहीं करा सकते थे लेकिन अपनी घरेलू परिस्थितियों में शायद उनसे खतरनाक कोई नहीं था...महान शेन वार्न भी नहीं। इसी वजह से एक बार एंड्रयू फ्लिंटॉफ ने कहा था, "वार्न और मुरली...दोनों बड़े स्पिनर हैं। लेकिन यह अनिल कुंबले हैं जो अपने अनुकूल हालातों में सबसे खतरनाक हैं।"

तो कैसे थे अनिल कुंबले? जिनकी कई गेंद अक्सर सीधी जाती थी, गेंद घूमती भी कम थी....फिर खास क्या था? खास थी कुंबले की प्रतिबद्धता और गेंदों में विविधता जो टर्न से ज्यादा गति और उछाल पर खेलती थी। पिच से टर्न मिल गया तो उनकी गुगली नचाती थी...स्पिन से ज्यादा कई बार उनकी फ्लिपर बल्लेबाजों को सताती थी। न जानें कितने ही धुरंधर इस फ्लिपर पर एलबीडब्ल्यू हुए थे। कुंबले रन-अप में अंतिम समय जो उछाल लेते थे, उसने उनकी गेंदों को भी अप्रत्याशित उछाल दिया। वह 'जंबों' के नाम से मशहूर हुए थे। फिर भी अंत में यह उनका समर्पण ही था जिसके चलते सचिन ने अपनी कप्तानी के दिनों में कुंबले के बारे में कहा था, "कहीं भी..कभी भी।"

कोई भी पिच हो, कोई भी मौका हो, आप कुंबले पर भरोसा करके चैन ले सकते हैं।

कुंबले का यह अनुशासन, प्रतिबद्धता, ईमानदारी संन्यास के बाद भी रहे। बतौर कोच कुंबले का 'कड़क' अंदाज टीम इंडिया के सितारों को नहीं भाया था। वह गेंदबाजी में ऐसे ही व्यक्तित्व रहे जैसे बल्लेबाज में राहुल द्रविड़ थे। उनके अविस्मरणीय प्रदर्शन में सबसे चर्चित और यादगार था पाकिस्तान के खिलाफ एक ही पारी में 10 विकेट लेना। 1999 में फरवरी के सुहाने मौसम में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला में वह मुकाबला हुआ था। 90 के दशक के बच्चों के लिए यह कुंबले का अनमोल तोहफा है। ऐसे ही एक और चीज बड़ी याद आती है। जब साल 2002 के भारत के वेस्टइंडीज दौरे पर उनका जबड़ा टूट गया था। उन्होंने सिर पर पट्टी बांधी और गेंदबाजी शुरू कर दी। वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाए लेकिन ब्रायन लारा को आउट कर दिया था। बड़ा यादगार पल था।

कुंबले ने इन छोटे-छोटे पलों के जरिए अपने व्यक्तित्व के दर्शन दिए जिसमें सहज, सरल, गंभीर और बौद्धिक टाइप के इंसान की झलक थी। करियर के अंतिम दिनों ने उन्होंने विदेशी धरती पर भी विकेट लेने शुरू कर दिए थे। तब उन्होंने एक स्लो गुगली गेंद विकसित की थी, जिस पर ग्रांट फ्लावर का गच्चा खाना पुराने खेल प्रेमियों को आज भी रोमांचित कर देगा। वह दो महानतम स्पिनरों शेन वार्न और मुथैया मुरलीधरन के समकालीन थे। तीनों के आंकड़े फैंस को उलझा सकते हैं। इनमें सबसे कम टेस्ट विकेट कुंबले के ही नाम थे...लेकिन वह भी 619 विकेट हैं! कुछ ऐसे स्पिनरों का वह दौर था।

कुंबले निचले क्रम पर भी बढ़िया टिकाऊ बल्लेबाज थे। उनका टेस्ट औसत 132 मैचों में करीब 18 का है। फिर भी, वरिष्ठ खिलाड़ी होने के बावजूद कुंबले उस महान आभा से दूर ही रहे जिसके वह हकदार थे। इसका कारण वह कम ही समय के लिए ही कप्तान रहे। गंभीर ने इस पर एक बार कहा, "अगर कुंबले थोड़े और समय के लिए कप्तान होते तो भारतीय क्रिकेट और भी काफी कुछ हासिल कर सकता था।"

--आईएएनएस

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Web Title-Anil Kumble: Whose speed, bounce and googly combination wrote a new chapter of spin
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