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दिल्ली की गलियों और बैंडमिंटन ने भारत को दिया 'कराटे किड'

Delhi streets and bandminton gave karate kid to India - Badminton News in Hindi

नई दिल्ली| इसका श्रेय बैडमिंटन को देना चाहिए कि आज अमृतपाल कौर भारत में कराटे के मामले में जाना-पहचाना युवा चेहरा हैं और इसका श्रेय दिल्ली की सड़कों-गलियों को भी जाता है जिसने उन्हें मार्शल-आर्ट की क्लास लेने के लिए प्रेरित किया।

यहां तक कि उनकी कहानी को सुजय जयराज द्वारा एक फिल्म के लिए चुना गया है, जिन्होंने पूर्व विश्व नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल पर एक फिल्म बनाने का अधिकार भी हासिल किया है, और केटो पर कराटे खिलाड़ी के लिए एक फंडिंग कैम्पेन शुरू किया है।

कौर, जिन्होंने कॉमनवेल्थ कराटे चैम्पियनशिप (2015) में स्वर्ण पदक जीता और पिछले तीन वर्षों से लगातार दक्षिण एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान पर चल रही है, याद करते हुए बताती हैं कि 13 साल की उम्र में, दिल्ली के तिलक नगर से बैडमिंटन कोर्ट जाना उनके लिए कई कारणों से किसी बुरे सपने जैसा था। 23 वर्षीय कराटे की खिलाड़ी ने कहा, "आत्मरक्षा एकमात्र कारण था जिस वजह से मैं कराटे सीखना चाहती थी। हालांकि, खेल के बारे में कुछ ऐसा था जिससे मुझे तुरंत ही इससे प्यार हो गया।"

पहले दो वर्षों के लिए एक पार्क में प्रशिक्षण लेने और अधिकांश मैच हारने के बाद, युवा खिलाड़ी को जल्द ही समझ में आ गया कि कुछ गड़बड़ है। तब उन्होंने अपनी जेब से पैसे बचाने का फैसला किया और साइबर कैफे पहुंचकर अजरबैजान के कराटे चैंपियन राफेल अगायेव के वीडियो देखने लगीं।

कौर ने कहा, "तब मैंने महसूस किया कि मुझे जो सिखाया जा रहा था वह कुछ बहुत ही बुनियादी था। इसका मतलब यह भी था कि मुझे अपने आप पर कड़ी मेहनत करनी थी और अधिक समय आत्म-प्रशिक्षण के लिए समर्पित करना था।"

बेशक, अधिकांश भारतीय माता-पिता बच्चों की पढ़ाई को लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं, प्रशिक्षण के लंबे घंटों को लेकर वास्तव में उनके माता-पिता चिंतित थे, लेकिन अपने स्कूल के वर्षों के दौरान टॉपर रही और स्कॉलरशिप पा चुकीं कौर अपनी मां को भरोसे में लेने में कामयाब रहीं।

जब तक उन्होंने राजधानी के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में इंग्लिश ऑनर्स कोर्स में दाखिला लिया, तब तक युवा खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी योग्यता साबित कर चुकी थी, जिसकी बदौलत दिल्ली सरकार ने उसे छात्रवृत्ति दी।

लेकिन प्रशिक्षण मामले में सरकार की ओर से बिना किसी समर्थन के और क्वालिफाइंग मैचों के लिए अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों के लिए उड़ान भरना उनके लिए मुश्किल हो गया।

कौर ने कहा, "एक बार एक सिख संगठन ने मुझे तुर्की में प्रशिक्षिण प्राप्त करने के लिए वित्तीय मदद की थी। क्वालीफाइंग मैचों के लिए जाने का मतलब है फ्लाइट टिकट, रहने का इंतजाम, गियर, प्रशिक्षण और भोजन .. यह कभी भी आसान नहीं है।"

कौर के लिए जिनका दिन सुबह 5 बजे शुरू होता है - ध्यान, तीन घंटे का प्रशिक्षण, ब्रेक और पांच घंटे का प्रशिक्षण फिर से, उनके लिए कराटे उनका जुननू है।

सभी बाधाओं को पार करने के बावजूद, यह तथ्य कि वह टोक्यो ओलंपिक में जगह नहीं बना सकी, जिससे उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, "दो साल पहले शुरू होने वाले सभी क्वालीफाइंग मैच यूरोप में आयोजित किए गए, मैं इसे कैसे अफोर्ड कर सकती थी?"

लेकिन जिस समय उसके एक दोस्त ने इस बारे में ट्वीट किया, अभिनेता सोनू सूद की टीम पंद्रह मिनट में बाहर पहुंची और सर्जरी का खर्च उठाने का फैसला किया।

अमृतपाल कौर, अभी भी ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं में भाग लेने की ख्वाहिश रखती हैं और आगे प्रशिक्षण के लिए तुर्की जाना चाहती हैं।

--आईएएनएस

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