बुंदेलखंड की चमक क्यों फीकी होती गई....

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 27 सितम्बर 2016, 3:00 PM (IST)

झांसी। झांसी को बुंदेलखंड का प्रवेशद्वार कहा जाता है। चंदेलवंश के शासन के दौरान इसका वैभव अधिक था, परंतु 11वीं शताब्दी के आसपास उनके साम्राज्य के पतन के बाद इसकी चमक कम होती गई। 17वीं शताब्दी के दौरान राजा वीर सिंह देव के शासनकाल के दौरान इसका पुन: उत्थान हुआ था। ऐसा माना जाता है कि यह राजा मुग़ल बादशाह जहांगीर के काफी निकट था।झांसी को मुख्य रूप से रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए 1857 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध पहली लड़ाई लड़ी थी। उन्हें भारत के ‘जॉन ऑफ आर्क के नाम से भी जाना जाता है। इस इतिहास के अलावा झांसी को अब झांसी त्यौहार के लिए भी जाना जाता है जो हर साल फरवरी,मार्च में आयोजित किया जाता है।

अब चलिए हम आपको बताते हैं झांसी की ऐतिहासिक इमारतों के बारे में वो सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं-
झांसी का किला।
झांसी के किले का निर्माण ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने 1613 में पहाड़ी की चोटी पर करवाया था। यह 16 से 20 फुट मोटी दीवार से घिरा हुआ है जो इसकी चारदीवारी का एक भाग है। इस दीवार में दस दरवाज़े हैं, जिनमें से प्रत्येक का नाम किसी राजा या राज्य के ऐतिहासिक स्थान के नाम पर रखा गया है।
इस किले में चांद द्वार, दतिया दरवाज़ा, झरना द्वार, लक्ष्मी द्वार, ओरछा द्वार, सागर द्वार, उन्नाव द्वार, खंडेराव द्वार और सैनयार द्वार जैसे खूबसूरत दरवाजे हैं। हालांकि इसमें से कुछ द्वार समय के साथ लुप्त हो गए हैं, फिर भी कुछ ऐसे हैं जो अभी भी मजबूती से खड़े हैं। झांसी के किले ने स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि यह 1857 के भारत के स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण केंद्र था।


किले की दीवारों पर बने चित्र झांसी की रानी द्वारा अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ी गई लड़ाई का चित्रण करते हैं। किले में एक संग्रहालय है जिसमें विभिन्न प्रदर्शनों के अलावा करक बिजली नाम की तोप भी है जिसकी प्राणघातक आग ने ब्रिटिश सेना को डरा दिया था।

रानी महल, झांसी
इसे रानी महल इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भारत की प्रसिद्ध योद्धा रानी, रानी लक्ष्मीबाई का महल था। इसका निर्माण नेवालकर परिवार के रघुनाथ द्वितीय ने करवाया था। यह महल देशभक्ति के दीवानों का केंद्र था, जिसका नेतृत्व रानी और मराठा सरदारों तात्या टोपे और नाना साहिब ने किया था जिन्होनें 1857 में भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई लड़ी।

रानी महल दो मंजिला इमारत है जिसकी छत सपाट है तथा इसे चौकोर आंगन के सामने बनाया गया है। आंगन के एक ओर कुआं और दूसरी ओर फ़व्वारा है। इस महल में छह कक्ष हैं जिसमें प्रसिद्ध दरबार कक्ष भी शामिल है। ये कक्ष गलियारे के साथ-साथ बनाये गए हैं जो एक दूसरे के समानांतर चलते हैं।
यहां कुछ छोटे कमरे भी हैं। दरबार कक्ष की दीवारों को विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के चमकदार रंगों वाले चित्रों से सजाया गया है। इस विशाल इमारत का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश तोपखाने ने नष्ट कर दिया था। अब इस महल को ऐतिहासिक संग्रहालय में बदल दिया गया है।

इन स्थलों का भी कर सकते हैं भ्रमण
झांसी का प्रमुख आकर्षण रानी लक्ष्मीबाई का भव्य किला है। इसी किले में रानी लक्ष्मीबाई और ब्रिटिश सेना में युद्ध हुआ था। आप पारीछा का भ्रमण भी कर सकते हैं जो एक सुन्दर बांध है और जिले की कॉलोनी का नाम भी है। यह कॉलोनी मंदिर, मस्जिद और एक बौद्ध मठ के लिए प्रसिद्ध है। झांसी संग्रहालय की सैर आपको इस क्षेत्र के वैभवशाली इतिहास का दर्शन कराती है।

बेतवा नदी के किनारे स्थित बरुआ सागर झील भी दर्शनीय है। इसके पास ही चिरगांव है जो प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म स्थान है। ओरछा अपने किले के लिए प्रसिद्ध है जबकि झांसी के सिविल लाइंस में स्थित सेंट जुडेस चर्च कैथोलिक ईसाईयों के लिए लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।

झांसी में रहते हुए आप अनेक पर्यटन स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं जिसमें महाराजा गंगाधर राव की छतरी, गणेश मंदिर और महालक्ष्मी मंदिर शामिल हैं। वर्तमान में ही प्रारंभ हुआ झांसी महोत्सव आपको इस क्षेत्र की कला और शिल्प का आनंद उठाने का अवसर प्रदान करता है।

ये तो बात थी पर्यटन स्थल की। अब हम आपको बताते हैं कि किन मार्गों से होकर आप आसानी से झांसी पहुंच सकते हैं। यहां रेलमार्ग, हवाई मार्ग और सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर है। नवंबर से मार्च के बीच का समय झांसी की सैर के लिए उपयुक्त है।