‘इससे पहले सिर्फ क्रिकेट में ऐसा देखने को मिला’

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 20 सितम्बर 2016, 12:33 PM (IST)

कोलकाता। ब्राजील की मेजबानी में पिछले महीने हुए ओलम्पिक खेलों में शानदार प्रदर्शन के बाद पूरे देश से मिल रही सराहना से आह्लादित भारत की महिला जिम्नास्ट दीपा कर्माकर का कहना है कि उन्हें जिस तरह हाथों-हाथ लिया जा रहा है वह जिम्नास्टिक्स में ही नहीं क्रिकेट सहित अन्य खेलों की तुलना में भी अद्वितीय है। दीपा और उनके कोच बिशेश्वर नंदी को बंगाल वाणिज्य मंडल एवं उद्योग (बीसीसीआई) ने यहां सोमवार को सम्मानित किया।

23 वर्षीय दीपा ओलम्पिक में पदार्पण के साथ जिम्नास्टिक्स के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली एथलीट रहीं और मामूली अंतर से वे पदक से चूकीं। उन्हें स्पर्धा में चौथा स्थान प्राप्त हुआ। दीपा ने इस मौके पर कहा कि मैं इस बात से खुश हूं कि जिम्नास्टिक्स की तुलना क्रिकेट से की जा रही है। मैंने इससे पहले सिर्फ क्रिकेट में ही इतने प्रशंसक देखे। मुझे जो प्यार मिल रहा है उसकी मैंने उम्मीद भी नहीं की थी। लोग कह रहे हैं कि जितनी तेजी से जिम्नास्टिक्स सीखने वालों की संख्या बढ़ रही है, इससे पहले सिर्फ क्रिकेट में ऐसा देखने को मिला।

दीपा ने कहा कि जब उनके पास क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर का फोन आया तो वे काफी खुश हुईं। उन्होंने कहा कि जब मैं वापस आई तो सचिन सर ने मुझे फोन किया। मैं काफी खुश हूं। मैं अभी कार चलाना सीख रही हूं। उन्होंने कहा कि यह जिम्नास्टिक्स के लिए सबसे अच्छा समय है क्योंकि भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) और केंद्र सरकार अब जिम्नास्टिक्स की मदद कर रही है। उन्होंने कहा कि उन्होंने काफी मदद की। उनके बिना हमारा यहां तक पहुंच पाना बहुत मुश्किल होता।

मेरे हिसाब से युवाओं के लिए इस खेल को सीखने के लिए यह अच्छा समय है और उनके माता-पिता को इसमें उनकी मदद करनी चाहिए। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की रहने वाली दीपा ने कहा कि रियो में जमैका के फर्राटा धावक उसेन बोल्ट को देखना उनके जीवन का बेहद अहम क्षण रहा। उन्होंने कहा कि मैं उनसे बात नहीं कर सकी लेकिन बोल्ट को करीब से देखकर मैं बेहद खुश हुई।

रियो में टीम मैनेजर न रहने से परेशानी हुई : नंदी

कोलकाता। दीपा कर्माकर के कोच बिशेश्वर नंदी का कहना है कि रियो ओलम्पिक में टीम मैनेजर के न होने से उन्हें परेशानी उठानी पड़ी। नंदी ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि हमें थोड़ी-बहुत परेशानी हुई। स्थानीय स्टाफ का सहयोग जरूरी था। द्रोणाचार्य अवार्ड जीतने वाले नंदी ने कहा कि रियो डी जनेरियो में बहुत से लोग अंग्रेजी नहीं जानते थे। हम क्या चाहते हैं इस बात को उन्हें समझाने में हमें बेहद परेशानी हुई।

अभ्यास के बाद भी कई चीजें ऐसी होती हैं जिनका ध्यान रखने की जरूरत होती है। टीम मैनेजर होने से यह काम उनको संभालना होता है। उनकी गैरमौजूदगी में यह काम मुझे करना पड़ा। हालांकि नंदी ने इस कमी को दीपा के पदक न जीतने का कारण नहीं बताया। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन के आधार पर पदक आते हैं। इसके अलावा कोई और कारण नहीं है। मैं यह नहीं कह सकता कि टीम मैनेजर न होने से हम पदक नहीं जीत पाए।

(IANS)