दोहरी मानसिकता के समाज पर करारा तमाचा है ‘पिंक’

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 15 सितम्बर 2016, 8:34 PM (IST)

दोहरी मानसिकता के समाज पर करारा तमाचा है ‘पिंक’
कलाकार: अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी, एंड्रिया तरिआंग, अंगद बेदी, पीयूष मिश्रा, धृतमान चटर्जी, देबांग, राहुल टंडन, विनोद नागपाल, तुषार पांडे, ममता शंकर
निर्देशक: अनिरुद्ध राय चौधरी
निर्माता : रश्मि शर्मा, शुजीत सरकार
लेखक-पटकथा : रितेश शाह
संगीत : शांतनु मोइत्रा, फैजा मुजाहिद, अनुपम रॉय


दो घंटे 16 मिनट लम्बी यह फिल्म अपने शुरूआती चंद मिनटों बाद ही सीन-दर-सीन दर्शकों को अपने साथ चलने पर मजबूर करती है और न चाहते हुए भी दर्शक हर दृश्य के बाद आने वाले दृसरे दृश्य की कल्पना करने लगता है और यही इस फिल्म की सबसे बडी खूबी है। आम मसाला फिल्मों से इतर बनी यह फिल्म हर उस दर्शक के लिए है जो फिल्म देखना पसन्द करता है। यह फिल्म उन दर्शकों को भी देखनी चाहिए जो लडकियों के पहनावे, उनकी स्वतंत्रता, उनके बोलचाल और उनके व्यवहार पर उंगली उठाते हैं, उसके चरित्र का प्रमाण पत्र जारी करते हैं। इस फिल्म में इतनी खूबियां हैं जिनको गिनते हुए गिनती भूल जाएंगे। फिल्म का एक-एक दृश्य प्रभावी है। निश्चित रूप से यह बॉलीवुड की बदलती तस्वीर पेश करती है।

हिंदी फिल्मों में कोर्ट रूम ड्रामा का खास आकर्षण वकीलों की बहसबाजी होती है। दर्शक यातना और आरोप की शिकार के साथ हो जाते हैं और उसकी जीत चाहते हैं। लेखक और निर्देशक ने ‘पिंक’ में अंत तक रहस्य बनाए रखा है। हिंदी फिल्मों में यह सहज अनुमान भी चलता है कि लड़कियों के पक्ष में अमिताभ बच्चन हैं तो उनकी जीत सुनिश्चित है। इससे रहस्य का रोमांच थोड़ा कम होता है।

अमिताभ बच्चन को वकील के नए अंदाज में देख कर हम उनके अभिनय के नए पहलू से परिचित होते हैं। अमिताभ बच्चन प्रयोगों के लिए तैयार हैं। वे नई चुनौतियों के लिए नई रणनीति और शैली अपनाते हैं। उन्होंने अपने चरित्र के विकास पर ध्यान दिया है और उसी क्रम में आवाज बदलते गए हैं। अंतिम बहस में उनके तर्क आधिकारिक और दमदार हो जाते हैं। पियूष मिश्रा संयत भाव से अपने किरदार में हैं। निर्देशक ने उन्हें किरदार से छिटकने नहीं दिया है। तीनों लड़कियों में मीनल मुख्य है, इसलिए तापसी पन्नू के पास हुनर दिखाने के बेहतरीन अवसर थे। उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। वह असरदार हैं। इसी प्रकार कीर्ति कुल्हारी और एंड्रिया भी अपने किरदारों को मजबूती से पेश करती हैं। राजवीर की भूमिका में अंगद बेदी उसकी ऐंठ को सही ढंग से पेश करते हें। अन्य छोटी और सहयोगी भूमिकाओं में कास्टिंग डायरेक्टर जोगी ने कलाकारों का सटीक चुनाव किया है।

बतौर निर्माता और क्रिएटिव प्रोड्यूसर शुजीत सरकार की इस फिल्म का निर्देशन अनिरुद्ध राय चौधरी ने किया है, जिन्हें फिल्म ‘अरुनानन’ (2006) और ‘अन्तहीन’ (2008) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। ये उनकी पहली हिन्दी फिल्म है। फिल्म के लेखक रितेश शाह हैं, जिन्होंने इससे पहले ‘मदारी’, ‘तीन’, ‘रॉकी हैंडसम’ और ‘बी.ए.पास’ जैसी फिल्में लिखी हैं।

निर्माता, लेखक निर्देशक की जोडी ने पूर्ण परिपक्वता और विश्वसनीयता के साथ एक सोउद्देश्यपूर्ण फिल्म बनायी है। शुरू से लेकर आखिरी दृश्य तक फिल्म दर्शकों को बेचैन करने के साथ-साथ, घुटन का भी अहसास कराती है। घुटन इसलिए कि इसका एक-एक दृश्य दर्शक के अन्दर चीत्कार करता है।
दरअसल ये प्रस्तुतिकरण है एक मानसिकता का, जहां कामकाजी लड़कियों-युवतियों के चरित्र का अंदाजा उनके कपड़ों और उन्मुक्तता से लगाया जाता है। एक ही शहर में रह कर कोई लडकी अपने माता-पिता के घर से अलग हो कर कैसे रह सकती है। अगर वो ऐसा करती है तो वह चरित्रहीन है और पूर्वोत्तर राज्य से आई कोई लडकी, वो तो होती ही ऐसी हैं? क्या वाकई...

ये कुछ धारणाएं हैं जिन पर बड़े ही प्रभावशाली और असरकार ढंग से फिल्म में एक बड़ा प्रहार किया गया है। कथा-पटकथा में विश्वसनीयता झलकती है। लगता ही नहीं कि ये कोई फिल्म है। यहां बनावटीपन की कोई गुंजाइश नहीं है। किरदार इतने असल लगते हैं कि उन पर विश्वास करने का मन करता है। अदालत के एक सीन में एसएचओ को दीपक सहगल सुपरवुमन संबोधित करता है। इसके बाद का करीब पांच मिनट का सीन सन्न और सोच पैदा करने वाला है जो हमारी पुलिस की कार्यशैली की पोल खोलता है।

ऐसे ही एक अन्य सीन में दीपक का राजवीर को पेंट की जेब से हाथ निकाल कर खड़ा होने की सलाह देने वाला दृश्य समाज में ‘इलीट क्लास’ की अकड और सभ्यता की तरफ इशारा करता है।

‘पिंक’ लडक़े-लड़कियों के प्रति समाज में प्रचलित धारणाओं और मान्यताओं की असमानता और पाखंड को उजागर करती है। फिल्म के दृश्यों और संवादों से एहसास होता है कि समाज जिसे सामान्य और उचित मानता है, दरअसल वह आदत में समायी पिछड़ी और पाखंडी सोच है।

‘पिंक’ का पार्श्व संगीत शांतनु मोइत्रा ने तैयार किया है। उन्होंने द्रुत, धकमी और मद्धिम ध्वनियों के साथ दश्यों को प्रभावशाली बना दिया है। फिल्म का अवसाद और तनाव पार्श्व संगीत के प्रभाव से बहुत खूबसूरती से निर्मित होता है।