ऐसा करने से अगले जन्म में मिलता है भरा-पूरा परिवार

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 14 सितम्बर 2016, 09:12 AM (IST)

जोधपुर। मारवाड़ की धरा अपने रिवाजों और मान्यताओं के लिए दुनियाभर में मशहूर है। इन रिवाजों में सामाजिक बंधन हैं, तो वहीं समाज सुधार का खुला आकाश भी है। हर मान्यता समाज के कल्याण से जुड़ी है। एक ऐसी ही परम्परा यहां मारवाड़ में है जो अगले जन्म का हवाला दे इस जन्म में समाज को कुछ देने संदेश देती है। मान्यता है कि इस रिवाज को निभाने से मृत्यु के बाद अगले जन्म में समंदर जैसा यानि भरा-पूरा संसार मिलने की मान्यता है।

यह है मान्यता

रिवाज के अनुसार बहन अपनी ससुराल में वैशाख के महीने में गांव के तालाब की खुदाई करके मिट्टी से भरकर 108 कुंडे मिट्टी तालाब से बाहर निकालती है। फिर बरसात होती है और तालाब पानी से भर जाता है लेकिन, बहन उस तालाब से एक बून्द भी पानी नहीं पीती है। भाद्रपद महीने की ग्यारस की तिथि को भाई अपनी बहन की ससुराल आता है और फिर गांव के लोगों के साथ तालाब के किनारे जाते हैं। बहन तालाब में उतरती है और भाई बहन की मनुहार कर उसे तालाब से बाहर लाता है। रीति के अनुसार भाई बहन तालाब के पानी की पूजा करते हैं और फिर भाई अपनी बहन को उसी तालाब का पानी पिलाता है। यहां मान्यता है ऐसा करने से अगले जन्म में बहन को समंदर की तरह ही भरा-पूरा और संपन्न पीहर मिलता है।

पानी सहेजने का है संदेश

ये रिवाज आपको भले ही अजीबो-गरीब लग रहा हो लेकिन, सच यह है कि अगले जन्म में नहीं इस जन्म में पानी को सहेजने के लिए मारवाड़ में ऐसी परम्परा बनी है। मरुभूमि से घिरे मारवाड़ में पानी की सदैव कमी रही है। ऐसे में यहां के पूर्वजों ने पानी को मान्यताओं से जोड़ कर उसे सहेजने की कोशिश की है। इस रिवाज को निभाने में एक गांव की जितनी बहुएं होती हैं वो तालाब से मिट्टी निकालती है। देखते ही देखते तालाब समन्दर सा रूप ले लेता है। जिसका पानी बारह महीने पीने के लिए काम आता है।

मारवाड़ में है कर्म को प्रधानता

जानकारों की बात करें तो क्षेत्र के रामप्रसाद पंचारिया कहते हैं कि उन्होंने यह पाठ स्कूलों में अध्यापन के दौरान भी पढ़ाया है। यह बात अलग है कि आज की शिक्षा में संस्कार और रीति-रिवाजों की जगह बेसिर पैर का अधकचरा ज्ञान दिया जाता है। पंचारिया बताते हैं कि अगले जन्म से जोडऩे का तात्पर्य कर्मों से है, यह बात श्रीकृष्ण ने भी कही थी। ऐसे में इंसान अच्छे फल की आशा में कर्म करता है और उसे फल के रूप में पानी मिलता है। मारवाड़ में कर्म प्रधानता रही और यही वजह है कि जीवन की शैली को बनाए रखने के लिए ऐसे रिवाज बनाए गए।