नई दिल्ली। भारत ने दक्षिण चीन सागर पर चल रहे तनाव के बीच अपनी समुद्री नीति स्पष्ट की है। इसके साथ ही भारत ने चीन को आईना दिखाने का काम भी किया है। भारत ने हिंद महासागर का उदाहरण देते हुए कहा है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के समुद्री नियमों के मुताबिक समुद्र में आवागमन, इसके ऊपर से उड़ान भरने और बेरोक-टोक व्यापार की आजादी का हिमायती है।
भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर ने पहली ‘इंडियन ओशन कॉन्फ्रेंस’ (हिंद महासागर सम्मेलन) में अपने देश का पक्ष रखा। सिंगापुर में हो रही इस कॉन्फ्रेंस में भारतीय दल का नेतृत्व राम माधव कर रहे हैं। विदेश सचिव ने इस दौरान विकास के प्रयासों, स्थानीय कूटनीति, नौसैनिक सहयोग, ब्लू इकॉनमी और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक, भारत की एकीकृत रणनीति के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ आर्थिक और सुरक्षा संबंधों का इच्छुक है और इन संबंधों को विस्तार देने के लिए इंडियन ओशन रिम असोसिएशन (आईओआरए) के निर्माण को प्रतिबद्ध है।
जयशंकर ने कहा, ‘हम बंदरगाह बनाने और इसके जरिए विकास लाने की
महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहे हैं। इससे हमारी 7500 किमी समुद्री सीमा
हिंद महासागर के भविष्य के लिए और अहम हो जाएगी। हम हमारे करीब 1200
द्वीपों का तेजी से विकास करने पर भी सोच रहे हैं। रेल और सडक़ संपर्क
परियोजनाओं से अंदरूनी ढांचे में सुधार आ रहा है। इसमें दिल्ली-मुंबई
इंडस्ट्रियल कॉरिडोर पर तेजी से काम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। हम उम्मीद
करते हैं कि इसमें पूर्वी कॉरिडोर और बेंगलुरु से चेन्नई तक का दक्षिणी
कॉरिडोर भी शामिल होगा। यदि आप इन ढांचागत पहलों को ‘मेक इन इंडिया’ के साथ
मिलाकर देखें तो इसके हिंद महासागर पर प्रभाव स्पष्ट दिखते हैं।’
विदेश
सचिव ने हिंद महासागर सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर 21 सदस्य देशों के 300
से अधिक प्रतिनिधियों की मौजूदगी में यह बातें कहीं। एक सवाल के जवाब में
भारत के पड़ोसियों से संबंध पर उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई सवाल ही नहीं है।
हमारी विदेश नीतियों में हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या हमारे करीबी पड़ोसी
हैं। हम जानते हैं कि पड़ोस में मुश्किल काम करने की जरूरत है, लेकिन मैं
फिर से कहूंगा कि अगर आप भारत-बांग्लादेश संबंधों को देखें, मैं कल्पना भी
नहीं कर सकता कि किसी ने कुछ साल पहले ऐसा सोचा भी होगा।’ उन्होंने
म्यामांर या श्रीलंका के साथ भी संबंधों के विस्तार की संभावनाओं को
रेखांकित किया। जयशंकर ने कहा, ‘अगर हम अपने पड़ोसियों के साथ संवेदनशील
समरसता में नहीं हैं तो हमारे पास उनसे आगे जाकर काम करने की विश्वसनीयता
नहीं है।’
उन्होंने मोदी के नवंबर में सार्क सम्मेलन में पाकिस्तान जाने
के सवाल पर कहा, ‘सार्क हमारी विदेश नीतियों की प्राथमिकता में शामिल है।
भारत इस बात को लेकर काफी चिंतित है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र सबसे कम
संगठित है।’ विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर ने कहा कि भारत भूराजनीतिक तौर पर
केंद्र है और एशिया की अग्रणी शक्ति है।
दक्षिण चीन सागर पर हेग
इंटरनेशनल कोर्ट के फैसले के बारे में विदेश सचिव ने कहा, ‘भारत मानता है
कि देशों को शांतिपूर्ण ढंग से विवादों को हल करना चाहिए। इसमें धमकी या
ताकत का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इससे शांति और स्थिरता को नुकसान
पहुंचेगा। समुद्री मार्ग शांति, स्थिरता, समृद्धि और विकास के लिए अहम
हैं।’
उन्होंने कहा कि सभी देश संयुक्त राष्ट्र के समुद्री नियमों को लेकर
सम्मान दिखाएं। जयशंकर ने कहा, आईओआरए के विस्तार और इसकी गतिविधियों को
तेजी प्रदान करने में हम समर्थन देंगे जिनमें नवीकरणीय ऊर्जा, समुद्रीय
अर्थव्यवस्था से नौवहन सुरक्षा, जल विज्ञान और संस्थागत तथा थिंक टैंक
नेटवर्किंग शामिल है। उन्होंने आगे कहा, हिंद महासागर के इतिहास और
परंपराओं को देखते हुए यह कहना उचित होगा कि इसकी समरसता के संवर्धन के
गंभीर प्रयासों से इसकी अखंडता और पहचान से जुड़े मुद्दों को सुलझाया
जाएगा। विदेश सचिव ने मौसम परियोजना की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि
इसके लिए और सक्रिय पहलों की जरूरत है जो सांस्कृतिक, वाणिज्यिक तथा
धार्मिक संवाद पर पुरातात्विक और ऐतिहासिक शोध को प्रोत्साहित करती हों।