अपने ही लोगों के बीच तन्हा हुई शर्मिला...

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 12 अगस्त 2016, 12:36 PM (IST)

इंफाल। मणिपुर के जिन लोगों के लिए ‘आयरन लेडी’ इरोम चानू शर्मिला 16 साल तक अनशन पर रहीं, उन्हीं लोगों ने ऐसे वक्त में उनसे मुंह मोड़ लिया, जब उन्हें उनकी सबसे ज्यादा दरकार है। अपनी सरजमीं में वह अपने ही लोगों के बीच तन्हा हो गईं हैं। अब उनके पड़ोसी, नजदीकी मित्र और यहां तक कि उनके परिवार को भी इस आयरन लेडी से हाथ तक मिलाना गवारा नहीं।
फिलहाल वह एक बार फिर उसी अस्पताल में लौट गई हैं, जो अनशन के दौरान 16 साल तक उनका घर रहा। लेकिन इस बार उनके अस्पताल लौटने का कारण अनशन नहीं, बल्कि तन्हाई और सिर पर अपनी छत न होना है। इरोम से उनके परिवार ने भी नाता तोड़ लिया है। जब कुछ चैरिटी वालों ने उन्हें अपने घर में कुछ समय के लिए पनाह दी, तो इसका भी स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया।

इंफाल पश्चिम के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा मंगलवार शाम जमानत पर रिहा किए जाने के बाद उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता थियाम सुरेश के घर ले जाया गया। सुरेश पूर्व चिकित्सक हैं, जिन्होंने सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम, 1958 के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है। स्थानीय महिलाओं ने उनसे साफ कह दिया कि वह इस जगह पर नहीं रह सकतीं। इसके बाद वह दो और जगहों पर गईं, वहां भी उन्हें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद वह अपने पुलिस अंगरक्षकों के साथ इस्कॉन मंदिर गईं। वहां से पुलिस उन्हें थाने गईं और फिर लौटकर एक बार फिर जेएन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पहुंच गईं, जहां उन्होंने अपने जीवन के अमूल्य 16 साल बिता दिए।
इरोम शर्मिला मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं, ताकि राज्य से विशेष कानून का साया हटा सकें। उन्होंने मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ थौबल निर्वाचन क्षेत्र से अगला विधानसभा चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। उनके फैसले पर कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि यह शर्मिला की महत्वाकांक्षी सोच है।

समाचार पत्र ‘हुई येन लनपाओ’ के संपादक हेमंत निंगोम्बा ने कहा कि इरोम ने 26 जुलाई को कहा था कि वह खुरारी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी। अब वह कह रही हैं कि वह थौबल से चुनाव लड़ेंगी। क्या उन्हें नहीं पता कि राजनीति पैसे व ताकत के बल पर की जाती है। याद रहे कि ऐसी ही बात दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए कही जा रही थी। मगर शर्मिला के हालात अलग हैं। उनसे तो अब ‘द सेव शर्मिला ग्रुप’ व अन्य ने भी दूरी बना ली है। अदालत परिसर में मंगलवार को उन्हें सांत्वना देने वाला भी कोई नहीं था।

इरोम इस बात से क्षुब्ध हैं कि लोगों ने अनशन खत्म करने, शादी करने व राजनीति में आने के उनके फैसले को गलत समझा। तमाम राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संवाददाता इंफाल छोड़ चुके हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह कहां जाएं, लेकिन यह निश्चित है कि वह लंबे वक्त तक अस्पताल में नहीं रह सकतीं। अब वह अपनी ‘नीतिगत गलतियों’ के बारे में बात करने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चुनाव जीतना उनके लिए इतना आसान नहीं है, खासकर मुख्यमंत्री बनने के लिए।
महिला कार्यकर्ता एक अनिवासी भारतीय से शादी करने के इरोम के फैसले के खिलाफ हैं। उनके प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए भूख हड़ताल करने वाली कार्यकर्ताएं अब कह रही हैं कि जेल में उन्हें मोबाइल व लैपटॉप देकर उनका ब्रेनवॉश कर दिया गया।
तब फोर्स फीडिंग के लिए सरकार देती थी 80 हजार, अब खाने को मोहताज

अनशन के दौरान सरकार उनकी नाक में एक नली लगाकर भोजन पहुंचाने के लिए हर महीने 80 हजार रुपये भेजती रही थी, लेकिन अब उनके पास खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं। मुद्दा यह है कि उनके लिए पैसे कहां से आएंगे? कौन उनका समर्थन करेगा? इरोम ने साल 2000 में सुरक्षाबलों के हाथों 10 नागरिकों के मारे जाने के बाद अनशन शुरू किया और पूरी दुनिया में उनकी एक अलग पहचान बन गई। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन्हें ‘प्रिजनर ऑफ कांशंस’ घोषित किया। लेकिन बुधवार को अनशन तोडक़र इरोम चानू शर्मिला पहले से ज्यादा तन्हा हो गई हैं। अब सोलह साल की उनकी तपस्या का क्या...?