कश्मीर में बीस साल बाद फिर ऐसी हिंसा, वजह क्या महज वानी?

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 11 जुलाई 2016, 1:55 PM (IST)

हरिनारायण शर्मा। कश्मीर में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद प्रदर्शन जारी है, जिसमें अब तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 400 लोग जख्मी हुए हैं, जिनमें 100 के करीब सुरक्षाबलों के जवान शामिल हैं। कहा जा रहा है कि कश्मीर में कोई दो दशक बाद ऐसे हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन क्या यह उग्रवाद सिर्फ हिजबुल मुजाहिदीन के शीर्ष कमांडर 22 वर्षीय बुरहान मुजफ्फर वानी के मारे जाने की वजह से हो रहा है? यदि ऐसा माना जा रहा है, तो यह गलत आंकलन है। आंतकी बुरहान वानी की मौत के बाद जो कश्मीर में हालात बने हैं, उससे लगता है कि लोगों के अंदर पहले से बहुत ज्यादा गुस्सा था। खासकर यहां के युवा काफी गुस्से में हैं।

दरअसल, पिछले कई दिनों से घाटी में माहौल काफी गरम चल रहा है। कई मुद्दों को लेकर जनता में, खास तौर पर युवाओं में रोष था- सैनिक कॉलोनी, पंडित कॉलोनी, नई औद्योकिग नीति, इसके कुछ कारकों में शुमार किया जा सकता है। वैसे पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई किस्से सामने आए हैं, जिनमें आतंकवादियों को लोगों का खूब समर्थन मिल रहा है, खासकर दक्षिण कश्मीर में। ऐसे में ऐक पोस्टर ब्वॉय के मारे जाने के बाद इस तरह की समस्या खड़ी होगी, इससे भी हमारे सुरक्षा बल अनजान नहीं थे, लेकिन फिर क्यों इतने लोग मारे गए? दरअसल भीड़ ज्यादातर उन पोस्ट पर अटैक कर रही है, जो दूर दराज इलाकों में हैं। कुछ पुलिस स्टेशन बहुत अंदरूनी इलाकों में हैं।

इसकी एक वजह यह भी मानी जा रही है कि कश्मीर मुद्दे को लेकर लंबे समय से भारत सरकार या राज्य सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई। पहले कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच वार्तालाप में निरंतरता बनी हुई थी। कभी भारत सरकार यहां के हुर्रियत और बाकी अलगाववादियों से बात करती थी, तो लगता था कि कोई न कोई कहीं न कहीं कश्मीर मुद्दे को लेकर दिलचस्पी ले रहा है और काम करना चाहता है, लेकिन पिछले कई सालों से कश्मीरी जनता को लगने लगा था कि केंद्र सरकार जान बूझकर कश्मीर मुद्दे को अनदेखा कर रही है, इससे युवा बहुत ज्यादा गुस्सा थे, जो इस बार के आंदोलन में देखा जा रहा है।

यह जाहिराना तौर पर साफ है कि कश्मीर में आतंकवाद का वाहक युवा ही बने हुए हैं। जितने भी आतंकवादी मारे जा रहे हैं, उनकी उम्र अमूमन 18 से 35 साल के बीच ही होती है, और ऐसे युवाओं को एक चेहरा बुरहान वानी बना हुआ था। यहां के युवा व्यवस्था से बहुत नाराज हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें किनारे किया गया है। कश्मीर में बहुत सारे चरमपंथी मारे गए हैं, लेकिन बुरहान को लेकर बड़ी प्रतिक्रिया हुई है, जो युवाओं में उसकी चाहत और महत्व को दर्शाती है।

दरअसल, बुरहान चरमपंथ में एक यूथ आइकॉन की तरह उभरा था। कश्मीर के युवाओं को लग रहा था कि बुरहान युवाओं का गुस्सा लेकर भारत सरकार से लड़ रहा है, लेकिन सरकार इस बात को समझने में गलती कर गई, वह यहां के युवाओं में सुलग रही आग को समझने में नाकाम रही। उम्मीद यही करें कि और लोग न मरें। अगर ऐसा होता है तो यह स्थिति थोड़े दिनों में शांत तो हो सकती है, लेकिन अगर यह दबी हुई आग भडक़ी तो हालात को काफी मुश्किल बना सकती है।
1996 के बाद किसी आतंकी की मौत पर सडक़ों पर उतरे इतने लोग

कश्मीर में 1996 के बाद यहां पहली बार ऐसा हुआ कि किसी चरमपंथी की मौत के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोग सडक़ों पर बाहर आए हैं। 1990 की शुरुआत में ऐसे प्रदर्शन होते थे। यहां 2008 या 2010 में भी प्रदर्शन हुए थे, लेकिन वह दूसरे तरीके का था। जानकारों का कहना है कि मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी को अगवा करने और फिर उसकी रिहाई के बदले आतंकवादियों रिहा करने के वक्त ही इतनी बड़ी संख्या में लोग बाहर आए थे।
तनाव बढ़ाने में सोशल मीडिया का भी हाथ

वैसे बुरहान के मारे जाने से दो महीने पहले भी दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में हिजबुल मुजाहिदीन ने आतंकवादी नासिर पंडित के मारे जाने पर उसे भी खुलेआम गोलियों की सलामी दी थी। पुलिस का कहना है कि सोशल मीडिया भी हालात में तनाव पैदा करता है। वानी के फेसबुक अकाउंट में जिस पैमान पर अपने विचार पोस्ट करता था, उससे लग रहा था कि वह अलगाववाद की राह से धीरे-धीरे हट गया था और इस्लामिक स्टेट से ज्यादा प्रभावित हो रहा था।

एक अफसर का कहना था, वानी ने अपनी राह उसी दिन तय कर ली थी जब उसने बंदूक उठाई और सोशल मीडिया पर पुलिस वालों को मारने के लिए लोगों को उकसाने लगा। घाटी में बढ़ती हुई हिंसक वारदातों के कई पहलू है। वानी को यूथ आइकॉन बताकर दरअसल मीडिया भी पाकिस्तान का प्रोपेगंडा कर रहा है। इस्लामाबाद ने हिजबुल कमांडर को शहीद करार दे ही दिया है। उस पर अब जनमत संग्रह की बात भी कर रहा है। ऐसे में मीडिया को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि हकीकत यह है कि बुरहान वानी ने चाहे जितना भी जोर लगाया हो, लेकिन इस साल आतंकवाद से जुडऩे वाले स्थानीय लडक़ों की संख्या कम हुई है। पहले छह महीनों की संख्या 23 है।