डॉक्टरों की हड़ताल से उत्पन्न हालातों पर राज्य मानवाधिकार आयोग ने स्वप्रेरणा से लिया प्रसंज्ञान, प्रकरण दर्ज

www.khaskhabar.com | Published : बुधवार, 29 मार्च 2023, 8:56 PM (IST)

-चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख शासन सचिव एवं मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार को किया आदेशित - बताएं कि चिकित्सकों के इस आचरण पर क्या कार्यवाही की जा रही है

जोधपुर।
राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जी.के. व्यास ने राजस्थान में डॉक्टरों की हड़ताल से उत्पन्न परिस्थितियों पर सम्पूर्ण तथ्यों का अवलोकन करने के बाद स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए प्रकरण दर्ज किया है और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, राजस्थान के प्रमुख शासन सचिव एवं राजस्थान मेडीकल कॉसिल, जयपुर के रजिस्ट्रार को आदेश दिया है कि चिकित्सकों के इस आचरण पर राजस्थान मेडीकल एक्ट, 1952 एवं राजस्थान मेडीकल रूल्स 1957 के तहत क्या कार्यवाही की जा रही है, इस संबंध में सम्पूर्ण तथ्यात्मक रिपोर्ट आयोग के अवलोकनार्थ आगामी तारीख पेशी से पूर्व प्रस्तुत करें।
राज्य मानव अधिकार आयोग ने राज्य के सभी चिकित्सकों से यह अपील की है कि मानवहित में सभी चिकित्सक तुरन्त अपने कार्य पर उपस्थित होकर पालन करते हुए मानव जीवन की सुरक्षा करें।
माननीय अध्यक्ष जस्टिस गोपाल कृष्ण व्यास की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान अनुच्छेद 47 में लोक स्वास्थ्य में सुधार के लिए किए गए प्रावधानों में स्पष्ट किया गया है कि ‘‘पोषाहार स्तर और जीवन को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्त्तव्य है कि राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों, और स्वास्थ्य के लिए हानिकर औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।’’
इस प्रावधान का अवलोकन करने के बाद यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार का कर्त्तव्य है कि वह नागरिकों के स्वास्थ्य सुधार के लिये कानून बना कर अच्छी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाए। इस परिपेक्ष्य में राज्य सरकार ने विधिक प्रक्रिया अपनाकर राईट टू हैल्थ बिल पारित किया है। स्वीकृत रूप से कोई भी प्रावधान संविधान के प्रावधानों के विपरीत हो तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
आदेश में कहा गया है कि वर्तमान समय में राज्य सरकार ने जो राईट टू हैल्थ बिल पारित है, उसे न्यायालय में चुनौती देने के बजाय निजी चिकित्सालयों के चिकित्सक पिछले 12 दिनां से हड़ताल पर है। आज उन्हीं के समर्थन में राजकीय चिकित्सालयों के रेजीडेन्ट चिकित्सक भी हड़ताल पर चले गये हैं जिससे प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई है।
आयोग द्वारा पारित आदेश में कहा गया है कि विभिन्न समाचार पत्रों एवं चैनलों के माध्यम से यह तथ्य आयोग के संज्ञान में आया है कि चिकित्सकों की हड़ताल के कारण अब राजकीय चिकित्सालयों में भी ईलाजरत रोगियों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। ऐसी परिस्थितियों में राज्य मानव अधिकार आयोग मूक दर्शक बनकर मानव अधिकारों का हनन होते हुए नहीं देख सकता। स्वीकृत रूप से राज्य के प्रत्येक चिकित्सक का रजिस्ट्रेशन राजस्थान मेडीकल काउंसिल द्वारा किया जाता है। चिकित्सकों का यह कर्त्तव्य एवं धर्म है कि वे नियमित रूप से रोगियों का ईलाज करें तथा जो प्रतिज्ञा एक डॉक्टर के रूप में उनके द्वारा ली जाती है, उसका पालन करें। परन्तु पिछले 12 दिनों से निजी चिकित्सालयों के चिकित्सक तथा आज राजकीय चिकित्सालयों के रेजीडेन्ट चिकित्सक हड़ताल पर होने के कारण सभी चिकित्सक अपने नैतिक कर्त्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं।
मानवाधिकार आयोग ने यह भी कहा है कि सरकार द्वारा जो राईट टू हैल्थ बिल पारित किया गया है उसके लिये चिकित्सकों द्वारा न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है परन्तु चिकित्सक रोगियों की चिकित्सा नहीं कर अपने कर्त्तव्यों का उल्लंघन कर रहे हैं। उनका यह आचरण मानव चिकित्सा के विरूद्ध है।
आदेश में कहा गया है कि यह सही है कि प्रजातंत्र में हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का पूर्ण अधिकार है परन्तु सम्पूर्ण व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करने का अधिकार किसी को नहीं है। चिकित्सकों की हड़ताल के कारण न केवल प्रदेश के हर क्षेत्र में रोगी शारीरिक पीड़ा भोग रहे हैं बल्कि कई मरीजों की मृत्यु होने के समाचार मिल रहे है। चूंकि हर चिकित्सक राजस्थान मेडिकल काउंसिल के द्वारा रजिस्ट्रेशन देने के बाद चिकित्सक के रूप में कार्य कर सकता है। परन्तु वर्तमान समय में चिकित्सक नैतिकता के विपरीत जाकर चिकित्सा कार्य में लापरवाही करने पर उतारू है, जिसका उन्हें कोई अधिकार नहीं है। बड़े खेद का विषय है कि चिकित्सकों की हड़ताल के कारण चिकित्सालयों एवं सम्पूर्ण राज्य में विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गयी है जिससे प्रदेश के गरीब लोगों को चिरंजीवी योजना के तहत मुफ्त मिलने वाली चिकित्सा सुविधा भी प्राप्त नहीं हो रही है। चिकित्सकों की हठधर्मिता के कारण रोगियों को ईलाज से महरूम होना पड़ रहा है।
इन सभी तथ्यों एवं परिस्थितियों के मद्देनज़र राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जी.के. व्यास ने यह आदेश दिया है।

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