ऋषि चिंतन: अपनी बुरी आदतों से लडि़ए

www.khaskhabar.com | Published : मंगलवार, 28 मार्च 2023, 09:42 AM (IST)

अभ्यस्त कुसंस्कार आदत बन जाते हैं और व्यवहार में अनायास ही उभर उभर आते रहते हैं। इनके लिए भी विचार संघर्ष की तरह कर्म संघर्ष की नीति अपनानी पड़ती है। थल सेना से थल सेना लड़ती है और नभ सेना के मुकाबले नभ सेना भेजी जाती है। जिस प्रकार कैदियों को नयी बदमाशी खड़ी कर देने से रोकने के लिए जेल के चौकीदार उन पर हर घड़ी कड़ी नजर रखते हैं, वही नीति दुर्बुद्धि पर ही नहीं, दुष्प्रवृत्तियों पर भी रखनी पड़ती है। जो भी उभरे उसी से संघर्ष खड़ा कर दिया जाए। बुरी आदतें जब कार्यांवित होने के लिए मचल रही हों तो उनके स्थान पर उचित सत्कर्म ही करने का आग्रह खड़ा कर देना चाहिए और मनोबल पूर्वक अनुचित को दबाने और उचित को अपनाने का ही हठ ठान लेना चाहिए। मनोबल दुर्बल होगा तो ही हारना पड़ेगा अन्यथा सत्साहस जुटा लेने पर श्रेष्ठ स्थापना से सफलता ही मिलती है । घर में बच्चे जाग रहे हों, बुड्ढे खाँस रहे हो तो मजबूत चोर के पाँव काँपने लगते हैं और वह उलटे पैरों लौट जाता है। ऐसा ही तब होता है, जब दुष्प्रवृत्तियों की तुलना में सत्प्रवृत्तियों को साहस पूर्वक अडऩे और लडऩे के लिए खड़ा कर दिया जाता है।

छोटी बुरी आदतों से लड़ाई आरंभ करनी चाहिए और उनसे सरलता पूर्वक सफलता प्राप्त करते हुए क्रमश: अधिक कड़ी, अधिक पुरानी और अधिक प्रिय बुरी आदतों से लड़ाई लड़ते रहना चाहिए। छोटी सफलताएँ प्राप्त करते चलने से साहस एवं आत्म-विश्वास बढ़ता है और इस आधार पर अवांछनीयताओं के उन्मूलन एवं सत्प्रवृत्तियों के संस्थापन में सफलता मिलती चली जाती है। यह प्रयास देर तक जारी रहना चाहिए। थोड़ी सी सफलता से निश्चिंत नहीं हो जाना चाहिए। लाखों योनियों के कुसंस्कार विचार मात्र से समाप्त नहीं हो जाते। वे मार खाकर अंतर्मन के किसी कोने में जा छिपते हैं और अवसर पाते ही छापामारों की तरह घातक आक्रमण करते हैं । इनसे सतत सजग रहने की आवश्यकता है । यह सतर्कता अनवरत रूप से आजन्म बरती जानी चाहिए कि कहीं बेखबर पाकर दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृत्ति की घातें फिर न पनपने लगे।

उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक साधना से सिद्धि पृष्ठ- 39 से लिया गया है।


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