मायड़ भाषा को छोड़ा तो मूल पहचान ही मिट जाएगी : भाटी

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 24 मार्च 2023, 7:55 PM (IST)


-अर्जुन देव बोले-राजस्थानी का आदिकाल ही हिंदी का आदिकाल

उदयपुर।
मौलिक संस्था और सुखाड़िया विवि के राजस्थानी विभाग के साझे व राजस्थान साहित्य अकादमी, उर्दू अकादमी, उत्रर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सहयोग से उदयपुर में भाषा, साहित्य व कला के कार्यक्रम ‘मेला‘ में शुक्रवार को राजस्थानी भाषा को लेकर विमर्श हुआ।
पहले सत्र में ‘मायड़ भाषा री महता‘ विषय पर बोलते हुए साहित्य अकादमी दिल्ली में राजस्थानी के संयोजक अर्जुन देव चारण ने कहा कि हिंदी भाषा का प्रारम्भिक इतिहास मूल रूप से राजस्थानी का इतिहास ही है। राजस्थानी का आदिकाल ही हिंदी का प्रारम्भिक काल कहलाता है। उन्होने कहा कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र की मायड़ भाषा वहां के नागरिकों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अथर्ववेद की ऋचा में ऋषि ने मातृभाषा को अपने अनुकूल होने की प्रार्थना की है। इसका तात्पर्य है कि मायड़ भाषा शुरू से ही अग्रणी स्थान पर रहती आई है। वर्तमान में मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने के मूल में यही भावना है।
जोधपुर से आए राजस्थानी के बड़े साहित्यकार आईदान सिंह भाटी ने कहा कि मायड़ भाषा को छोड़ने वालों की अगली पीढ़िया अपनी मूल पहचान खो देती है। बीकानेर से आए राजस्थानी भाषा के पूर्व संयोजक मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि राजस्थानी भाषा का जितना साहित्य प्रकाशित हुआ है उससे पचास गुना ज्यादा लोक में बिखरा पड़ा है। लोगों के कंठों में लोकगीत, लोककथाए बात आदि रूपों में सुरक्षित इस साहित्य को हमारी परम्पराओं ने पीढी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया है। वर्तमान पीढ़ी के परम्पराओं से कटने से मायड़ भाषा का काफी नुकसान हुआ है। मायड़ भाषा नहीं हो तो संवेदनाए सपनेए भाव एवं विचार ही नहीं होंगे। ऐसे मे मानव पत्थर के सिवा कुछ नहीं। पुरूषोत्तम पल्लव ने कहा कि आज माताएं अपने बच्चों को सुलाते वक्त मायड़ भाषा में कहानियां नहीं सुनाती। मायड़ भाषा से हमारी संस्कृति एवं परम्परा का पता चलता है। जयपुर से आए प्रमोद शर्मा ने कहा कि पेड़ को पल्लवित करने के लिए जड़ों को सींचना पड़ता है। हमें भी शर्म छोड़कर दैनिक जीवन में मायड़ भाषा का प्रयोग शुरू करना चाहिए। सत्र का संचालन डॉ सुरेश सालवी ने किया।
ओळख राजस्थान री सत्र में हुई मान्यता की मांग
दूसरे सत्र में युवाओं में लोकप्रिय शिक्षक राजवीर सिंह चलकोई ने राजस्थानी की मान्यता के लिए आंदोलन को ऩई धार देने की बात कही। उन्होने कहा कि दो साल चुनावी वर्ष हैं। राज्य सरकार पर दबाव बनाकर राजभाषा का दर्जा दिलवाया जा सकता है। वहीं केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

शनिवार को होंगे उर्दू भाषा पर आधारित सत्र
मेला निदेशक कपिल पालीवाल ने बताया कि शनिवार को शायरी, सिनेमा मे उर्दू व हिंदी की नजदीकियां, गजल संग केनवास आदि सत्र होंगे। इनमें महेंद्र मोदी, अश्विनी मित्तल, अब्दुल जब्बार, हदीस अंसारी, डॉ सरवत खान, वैभव मोदी व रतत मेघनानी हिस्सा लेंगे।

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