क्लोनिंग के जरिये चीन ने बनाई सुपर काऊ, प्रति दिन देगी 140 लीटर दूध!

www.khaskhabar.com | Published : रविवार, 05 फ़रवरी 2023, 09:36 AM (IST)

साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन लगातार प्रयोग कर रहा है। हाल ही में प्रकाशित हुए एक समाचार के अनुसार चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने क्लोनिंग के जरिए तीन सुपर काऊ तैयार की हैं। ये गायें अपनी पूरी जिंदगी में 100 टन यानी 2 लाख 83 हजार लीटर दूध दे सकती हैं।

लोकल मीडिया समाचारों के मुताबिक, तीनों गायों की ब्रीडिंग नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट्स ने कराई है। ये बछड़े पिछले दो महीने में निंगशिया इलाके में पैदा हुए हैं। ये सभी नीदरलैंड्स से आने वाली होलस्टीन फ्रीसियन गाय के क्लोन हैं।

अलैंगिक तरीके से एक जीव से दूसरे जीव को तैयार करने की प्रोसेस को क्लोनिंग कहा जाता है। आसान भाषा में, वैज्ञानिक एक जानवर का डीएनए लेते हैं और इसकी मदद से जानवर का प्रतिरूप तैयार करते हैं। वैज्ञानिक अपनी सहूलियत के हिसाब से इनके जीन्स में बदलाव करते हैं, ताकि सामान्य जानवर की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली जानवर बनाया जा सके। चीन में साल 2017 में भी क्लोनिंग के जरिए गायों का जन्म हो चुका है।

प्रोजेक्ट लीड जिन यापिंग ने बताया कि सबसे पहले अच्छी नस्ल की गायों के कान के सेल्स (कोशिकाएं) निकाले गए। फिर इनसे भ्रूण तैयार कर 120 गायों में प्रत्यारोपित किए गए। इनमें से 42 प्रतिशत गाय गर्भवती हुईं। फिलहाल तीन सुपर काऊ का जन्म हो चुका है, जबकि 17.5 प्रतिशत बछड़ों का जन्म अगले कुछ दिनों में हो सकता है।

चीनी वैज्ञानिकों की मानें तो एक सुपर काऊ एक साल में 18 टन (16.3 हजार लीटर) दूध देने में सक्षम है। यह अमेरिका की नॉर्मल गाय की तुलना में 1.7 गुना ज्यादा है। यापिंग का कहना है कि चीन में अगले 2-3 साल में एक हजार सुपर काऊ पैदा की जाएंगी। इससे डेयरी इंडस्ट्री को ज्यादा से ज्यादा फायदा होगा। फिलहाल चीन में हर 10 हजार में से 5 गाय ही अपने जीवन में 100 टन दूध दे पाती हैं। इसके अलावा देश में 70 प्रतिशत डेयरी गाय आयात की जाती हैं।

पहले भी ऐसा कर चुका है चीन, तैयार किया था भेडिय़ा
यह पहली बार नहीं है जब चीन ने किसी जानवर को क्लोन किया है। पिछले साल चीनी वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला क्लोन किया गया आर्कटिक भेडिय़ा तैयार किया था। 2017 में चीन ने ऐसे मवेशी क्लोन किए थे, जो जानवरों में होने वाले ट्यूबरक्यूलोसिस को मात दे सकते हैं। अमेरिका समेत कई विकसित देशों में भी इस टेक्नोलॉजी पर काम किया जा रहा है।

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