लोहड़ी : मकर संक्रांति से पूर्व मनाया जाता है पंजाबियों का प्रसिद्ध त्यौंहार

www.khaskhabar.com | Published : गुरुवार, 12 जनवरी 2023, 1:21 PM (IST)

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्यौंहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और उसके चारों ओर नाचते-गाते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाए जाते हैं। पंजाबी और सिख समुदाय के लोग इस दिन एकत्र होकर खुशी और उल्लास का पर्व मनाते हैं। लोहड़ी को शीत ऋतु के समापन की तरह से देखा जाता है। पंजाबी समुदाय में इस त्योहार को नई फसल के त्योहार के रूप में देखा जाता है। इस दिन लोग गिद्दा और भांगड़ा का नृत्य करते हैं।

लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: 12 या 13 जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है, यह द्योतार्थक (एक्रॉस्टिक) शब्द लोहड़ी की पूजा के समय व्यवहृत होने वाली वस्तुओं के द्योतक वर्णों का समुच्चय जान पड़ता है, जिसमें ल (लकड़ी) + ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = लोहड़ी के प्रतीक हैं। श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवत: लोहड़ी उसी का अवशेष है। पूस-माघ की कडक़ड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है-यही व्यावहारिक आवश्यकता लोहड़ी को मौसमी पर्व का स्थान देती है। पूर्ण परमात्मा की सद्द भक्ति ही सुख दायक है।

हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रों में मनाया जाने वाला लोहड़ी फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह वह समय है जब रबी की कटाई की जाती है और संगीत, नृत्य, मिल-जुलकर और जीवंत उत्सवों द्वारा ट्रिगर किया जाता है। लोग जीवंत रंगों और हल्के सामुदायिक अलावों को खरीदते हैं और तैयार होते हैं और सांस्कृतिक, नस्लीय और किसी भी तरह के मतभेदों को भूलकर एक साथ आते हैं जो उनके रास्ते में खड़े हो सकते हैं। 13 जनवरी को मनाया जाता है, उत्सव एक दिन के लिए आयोजित किया जाता है।


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लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से त्योहार (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में खिचड़वार और दक्षिण भारत के पोंगल पर भी-जो लोहड़ी के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है। लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इक_े करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय लोहड़ी में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।


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जिन परिवारों में लडक़े का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से मोहमाया या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं। शहरों के शरारती लडक़े दूसरे मुहल्लों में जाकर लोहड़ी से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। यह लोहड़ी व्याहना कहलाता है। कई बार छीना झपटी में सिर फुटौवल भी हो जाती है। मँहगाई के कारण पर्याप्त लकड़ी और उपलों के अभाव में दुकानों के बाहर पड़ी लकड़ी की चीजें उठाकर जला देने की शरारतें भी चल पड़ी हैं।


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लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगों का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमाचल में धूमधाम तथा हर्षोलास से मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता है।


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लोहड़ी त्यौहार के उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं जो की पंजाब के त्यौहार से जुडी हुई मानी जाती हैं। कई लोगों का मानना हैं कि यह त्यौहार जाड़े की ऋतु के आने का द्योतक के रूप में मनाया जाता है। आधुनिक युग में अब यह लोहड़ी का त्यौहार सिर्फ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में ही नहीं अपितु राजस्थान, बंगाल तथा उडिय़ा लोगों द्वारा भी मनाया जा रहा है।


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