प्रतीक गांधी, मनीष रायसिंघन, अविका गोर की 'कहानी रबरबैंड की' कॉमेडी के साथ यौन शिक्षा पर आधारित

www.khaskhabar.com | Published : सोमवार, 17 अक्टूबर 2022, 12:51 PM (IST)

फिल्म समीक्षा:- कहानी रबरबैंड की

कलाकार:- प्रतीक गांधी, मनीष रायसिंघन, अविका गोर, गौरव गेरा और अरुणा ईरानी

डायरेक्टर:- सारिका संजोत

हिंदी सिनेमा में यौन शिक्षा और कंडोम को लेकर हालांकि कई फिल्में बनी हैं मगर डायरेक्टर सारिका संजोत की इस सप्ताह रिलीज हुई सोशल कॉमेडी फिल्म 'कहानी रबरबैंड की' काफी बेहतरीन और कई मायनों में अलग कहानी है। इस फिल्म में महिला निर्देशिक ने जिस तरह एक संजीदा विषय को हल्के फुल्के ढंग से पेश किया है, वह देखने लायक है।

फिल्म के पहले हिस्से में आकाश (मनीष रायसिंघन) और काव्या (अविका गोर) की प्यारी सी प्रेम कहानी को दर्शाया गया है। दोनों की नोकझोंक के बाद दोस्ती, प्यार और फिर शादी होती है।

इस कहानी में मोड़ उस समय आता है जब आकाश द्वारा कंडोम का इस्तेमाल करने के बावजूद काव्या गर्भवती हो जाती है। इससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल मच जाती है। आकाश के मन में शक पैदा होता है कि काव्या के करीबी दोस्त रोहन (रोमिल चौधरी) का इसमें हाथ है। आकाश उस पर बेवफाई का इल्जाम लगाता है तो काव्या नाराज होकर और गुस्से में अपने मायके चली जाती है। बाद में जब आकाश को एहसास होता है कि खराब और एक्सपायरी डेट वाला कंडोम होने के कारण वह सुरक्षा देने में सफल नहीं हुआ था तो आकाश कंडोम बनाने वाली कंपनी पर अदालत में मुकदमा दर्ज करवाता है।

यहां से फिल्म की एकदम नई कहानी शुरू होती है। इस केस को उसका करीबी दोस्त नन्नो (प्रतीक गांधी) लड़ता है, जो अपने पिता के मेडिकल स्टोर पर बैठता है मगर उसके पास एलएलबी की डिग्री भी है। जबकि बचाव पक्ष की वकील सबसे विख्यात एडवोकेट करुणा राजदान (अरूणा ईरानी) होती है, जो अब तक एक केस भी नहीं हारी। अब कोर्ट में केस कौन जीतता है, इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। लेकिन यह कोर्ट रूम ड्रामा काफी मजेदार भी है और आंखें खोलने वाला भी।

मून हाउस प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी इस फिल्म में अदाकारी की बात करें तो मनीष के दोस्त नन्नो के रोल में प्रतीक गांधी ने एकदम नेचुरल अभिनय किया है। वहीं दूसरी तरफ स्क्रीन पर मनीष और अविका की केमिस्ट्री और उनके बीच ट्यूनिंग काफी अच्छी है। अरुणा ईरानी का काम बतौर वकील काबिल ए तारीफ है। मनीष का यह संवाद बड़ा प्रभावी लगता है 'काव्या है तभी तो कांफिडेंस है'।

फिल्म का कुछ संवाद कहानी रबरबैंड के मैसेज को आगे बढाते हैं जैसे कंडोम खरीदने वाला छिछोरा नहीं बल्कि जेंटलमैन होता है।

देखा जाए तो ये फिल्म 'कहानी रबरबैंड की' जहां यौन शिक्षा और कंडोम के इस्तेमाल के बारे में खुलकर बात करती है वहीं दवा कंपनियों, डॉक्टर्स द्वारा कमीशन के लिए आम लोगों की जिंदगी में उथल पुथल लाने के बारे में भी बताती है। कैसे एक्सपायरी डेट वाली दवाएं बाजार तक पहुंचाई जाती हैं, इसमे डॉक्टर्स, मेडिकल स्टोर वाले और दवा कम्पनी से जुड़े लोग किस तरह शामिल होते हैं, यह भी दर्शाया गया है।

सारिका संजोत की फिल्म एंटरटेनमेंट और कॉमेडी के साथ महत्वपूर्ण मैसेज देती है। सारिका संजोत का लेखन और निर्देशन प्रभावी है। मीत ब्रदर्स और अनूप भट का संगीत उम्दा है। फारूक मिस्त्री का छायांकन उच्च स्तर का है। फिल्म की एडिटिंग संजय सांकला ने बखूबी की है।

तो अगर आप एक कॉमेडी फिल्म का लुत्फ उठाना चाहते हैं, जिसमें एक सामाजिक सन्देश भी है तो आपको 'कहानी रबरबैंड की' देखनी चाहिए। यह न केवल यौन शिक्षा और कंडोम के उपयोग को लेकर जागरूकता फैलाने का मैसेज देती है बल्कि आपको भरपूर एंटरटेन भी करती है।

--आईएएनएस

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