फिल्म समीक्षा: इमोशन्स के साथ दिल छूती है जर्सी, रुलाएगी

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022, 11:58 AM (IST)

—राजेश कुमार भगताणी

पिछले सप्ताह बहुप्रचारित केजीएफ-2 को देखने के बाद इस सप्ताह एक और रीमेक जर्सी देखने का मौका मिला। लम्बे समय से प्रतीक्षित इस फिल्म को लेकर पूर्वानुमान बना लिया था कि यह मूल तमिल फिल्म जर्सी का मुकाबला नहीं कर पाएगी लेकिन फिल्म देखने के बाद हमें अपनी विचारधारा बदलने को मजबूर होना पड़ा। यदि फिल्म के शुरूआती 30 मिनटों को सम्पादक टेबल पर कम कर दिया जाता तो यह फिल्म अपनी शुरूआत से लेकर अन्तिम दृश्य तक आपको नहीं छोड़ सकती। विशेष रूप से फिल्म मध्यान्तर के बाद से आपको पूरी तरह से अपने साथ जकड़ लेती है। इसी हिस्से में निर्देशक ने जो भावनाओं का ज्वार दृश्यों के मार्फत उकेरा वह आपको रूला देता है। यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है।

अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) एक बेहतरीन बल्लेबाज है लेकिन इसके बावजूद उसका भारतीय क्रिकेट टीम में चयन नहीं होता है। निराश होकर वह क्रिकेट खेलना ही छोड़ देता है। बीवी विद्या तलवार (मृणाल ठाकुर) और बेटा रोहित तलवार (रोनित कामरा) हैं, इसलिए नौकरी करते हैं। लेकिन उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है। जिसके चलते पति-पत्नी में तनाव बढ़ जाता है, लेकिन अर्जुन बेटे पर जान छिडक़ता है। बेटा भी बाप को क्रिकेट की दुनिया का हीरो मानता है। बेटे की खुशी के लिए अर्जुन 36 साल की उम्र में फिर से क्रिकेट खेलना शुरू करता है।

परिपक्व लगे शाहिद, मृणाल में नजर आया ठहराव
शाहिद कपूर की परिपक्वता की दाद देनी पड़ेगी। पद्मावत के बाद से वे अपने आपको पूरी तरह से किरदार के अनुरूप निखारते जा रहे हैं। कबीर सिंह इसका उदाहरण है। और अब जर्सी में उन्होंने एक बार फिर स्वयं को बेहतरीन अभिनेता सिद्ध किया है। अर्जुन तलवार के किरदार में वे ऐसे जमे हैं कि न चाहते हुए उनकी तारीफ मुँह से निकल जाती है। उन्होंने खुशी, गम, मायूसी, हताशा, बेचैनी, मोहब्बत सारे इमोशन्स को बखूबी अपने चेहरे पर अभिव्यक्त किया है। मृणाल ठाकुर ने विद्या के किरदार को एक ठहराव दिया है। हालांकि इन दोनों की कैमिस्ट्री ठीक-ठाक है। कोच के किरदार में पंकज कपूर ने जो कुछ परदे पर पेश किया वह लाजवाब है। बाल कलाकार रोनित कामरा बरबस ही दर्शकों के दिलों में बस जाता है। इस बाल कलाकार की संवाद अदायगी जबरदस्त है।



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लेखक निर्देशक गौतम तिन्ननुरी, जिन्होंने मूल तमिल फिल्म जर्सी को भी लिखा व निर्देशित किया था, की कहानी बढिय़ा है। फिल्म की पटकथा दर्शकों को अपने साथ इस तरह बांधे रखती है जैसे वो इसका हिस्सा हों। गौतम ने फिल्म के भावनात्मक दृश्यों को संजीदगी और खूबसूरती के साथ लिखा है। दो दृश्यों का उल्लेख करना चाहेंगे—पहला दृश्य जब एक पिता अपने बच्चे को उसके जन्म दिन पर थप्पड़ मारता है और दूसरा जब वह अपनी पत्नी के पर्स से 500 रुपये निकालता है और चोर समझा जाता है। ये दो ऐसे दृश्य हैं जो दर्शकों को रुलाने में सफल होते हैं। क्लाइमैक्स से पूर्व तक फिल्म का सस्पेंस बरकरार है जो दर्शकों को यह लगने के बाद भी कि फिल्म खत्म हो गई उठने नहीं देता है। कथा-पटकथा के साथ-साथ गौतम का निर्देशन सराहनीय है। शाहिद कपूर की तरह वे भी इस फिल्म के नायक हैं।

सचेत परम्परा ने संगीत बढिय़ा दिया है। गीतों के बोल वजनदार हैं। दो गीत माहिया मैनु और मेहरम लोकप्रिय होंगे।
कुल मिलाकर जर्सी जबरदस्त पारिवारिक ड्रामा है जिसमें शुरूआती बोरियत के बाद दर्शकों को अपने साथ जोडऩे की क्षमता है। हालांकि केजीएफ-2 के सामने इसे कोई बड़ी ओपनिंग नहीं मिली है लेकिन यह फिल्म दर्शकों के जहन में अर्से से छायी रहेगी। इस फिल्म को धीरे-धीरे माउथ पब्लिसिटी के बूते बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी मिलेगी।