फिल्म समीक्षा : राधेश्याम—दर्शकों ने पहले शो में ही नकारा फिल्म को, लागत निकलना मुश्किल

www.khaskhabar.com | Published : शुक्रवार, 11 मार्च 2022, 6:16 PM (IST)

—राजेश कुमार भगताणी
लेखक-निर्देशक—राधा कृष्ण कुमार
सितारे—प्रभास, पूजा हेगड़े, भाग्यश्री, सत्यराज, मुरली, अनुराधा पटेल, बीना, सचिन खेडकर और कुणाल रॉय कपूर

पिछले दो वर्षों से प्रदर्शन की राह तक रही प्रभास की 4थी पैन इंडिया फिल्म राधेश्याम आज प्रदर्शित हो गई। इस फिल्म को लेकर कहा जा रहा था कि यह बॉक्स ऑफिस पर बड़ा धमाका करने में कामयाब होगी लेकिन फिल्म देखने के बाद पुरानी कहावत याद आई, खोदा पहाड़ निकली चूहिया। लेखक निर्देशक राधा कृष्ण कुमार की कहानी पर बनी राधेश्याम को देखने के बाद महसूस हुआ कि स्वयं लेखक ही कन्फ्यूज रहा कि वह फिल्म को प्रेम कहानी बनाए या फिर यह वह ज्योतिष विद्या को जिन्दगी के लिए जरूरी बताए।
फिल्म का कथानक यह है कि प्रभास और पूजा हेगड़े एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं। पूजा डॉक्टर हैं वहीं प्रभास हाथों की लकीरें पढऩे में माहिर हैं। हाथों की लकीरें पढऩे में माहिर प्रभास जो भविष्यवाणी करता है वह सच साबित होती है। लेखक-निर्देशक राधा कृष्ण कुमार ने फिल्म को प्रेम कहानी के साथ-साथ विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र के जोड़ा है। फिल्म देखते हुए दर्शक यह सोचता है कि निर्देशक फिल्म में दिखाना क्या चाहता है। वह प्रेम को अमर बनाना चाहता है या फिर ज्योतिष विद्या को सर्वोपरि बताते हुए उसे एक सामान्य प्रेम कहानी बनाना चाहता है। फिल्म में ऐसा कुछ विशेष नहीं है जिसे देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों में खिंचे चले आएं। आज की युवा पीढ़ी को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि भविष्यवक्ता क्या बोलते हैं और हाथों की लकीरें क्या बोलती हैं। उनकी सोच यह है कि अपने कर्म के बलबूते पर इंसान अपनी तकदीर खुद बनाता है। हाथों की लकीरें किसी की तकदीर नहीं बनाती हैं। फिल्म का निर्देशन भी बेहद कमजोर है। बात करते हैं अस्पताल के एक दृश्य की जिसमें प्रभास बीमार पूजा को अपनी र भविष्यवाणी का वास्ता देकर आशा की किरण दिखाता है तो पूजा के चाचा नाराज हो जाते हैं और प्रभास को हॉस्पिटल से बाहर निकालने को कहते हैं। ऐसा क्या कर दिया था प्रभास ने जो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, उसने सिर्फ पूजा की हिम्मत ही तो बढ़ाने का प्रयास किया था। क्लाइमैक्स में जहाँ दर्शकों के आंसू निकलने चाहिए थे, लेकिन ऐसा होता नहीं है। डूबते हुए जहाज का दृश्य बोरियत पैदा करता है। प्रेम कहानी के लिए जिस तरह के संवादों की जरूरत होती है उसका यहाँ अभाव है। सितारों का अभिनय अच्छा है लेकिन पटकथा के अनुरूप जो दृश्यों की कल्पना की गई है वह मजा खराब कर देती है। प्रभास ने अपनी फिजिक पर कड़ी मेहनत की है, जिसकी दाद देनी पड़ेगी। उनका अभिनय भी अच्छा है। पूजा हेगड़े भी बहुत खूबसूरत दिखती हैं और उनकी परफॉर्मेंस अच्छी है। सचिन खेडेकर का काम काफी सराहनीय है। प्रभास की मम्मी की भूमिका में भाग्यश्री के पास एक भी सशक्त दृश्य नहीं है। वे युवा माँ के रूप में खूबसूरत दिखाई देती हैं। हास्य दृश्यों को बहुत कमजोर लिखा गया है। एक भी दृश्य ऐसा नहीं है जो दर्शकों को हंसाने में सफल होता है। हालांकि कुणाल रॉय कपूर ने अपने अभिनय से इन दृश्यों में जान डालने का प्रयास किया है। मुरली शर्मा और अनुराधा पटेल न भी होते तो भी चलता। पूजा की दादी से रोल में बीना और परमहंस के रोल में सत्यराज की एक्टिंग औसत है।
राधा कृष्ण कुमार का निर्देशन कुछ विशेष नहीं है। निर्देशक ने बड़े कैनवस की फिल्म बनाई है और शूटिंग बहुत ही खूबसूरत लोकेशन पर की है। लेकिन फिल्म दिलों को नहीं छू पाती है। मिथुन, मनन भारद्वाज और अमाल मलिक के संगीत में मेलोडी है लेकिन प्रेम कहानी की सफलता में सबसे बड़ा हाथ संगीत का होता है जिसका यहाँ अभाव है। गाने हिट नहीं है। कुमार, मनोज मुंतशिर, मिथुन और रश्मि विराग ने गीतों के बोल अच्छे लिखे हैं। वैभवी मर्चेंट की कोरियोग्राफी शानदार है। संचित बल्हारा और अंकित बल्हारा का पाश्र्व संगीत ठीक-ठाक है।
मनोज परमहंस के कैमरावर्क की तारीफ करनी पड़ेगी। जिस तरह फॉरेन लोकेशन आंखों को ठंडक पहुंचाते हैं, उसी तरह कैमरावर्क भी आनंद देता है। निक पॉवेल और पीटर हैंस के एक्शन सीन और स्टंट अच्छे हैं लेकिन थ्रिल एलिमेंट थोड़ा ज्यादा होना चाहिए था। कोतागिरी वेंकटेश्वर राव की एडिटिंग ज्यादा टाइट होती तो पब्लिक का मजा बेहतर होता।

कुल मिलाकर, राधेश्याम के बॉक्स ऑफिस पर असफल होने की सम्भावना ज्यादा है, जिसका कारण कमजोर कहानी और निर्देशन है। 350 करोड़ की लागत से बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपनी लागत नहीं निकाल पाएगी।

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